गुरुवार, 13 नवंबर 2008

लघुकथा

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी


आतंकवादी

एक कस्बे में एक मन्दिर और एक मदरसा पास पास थे। एक दिन मन्दिर और मदरसे के बीच में एक बम विस्फोट हो गया। आरोप प्रत्यारोप लगने लगे। कुछ लोग इसे मुस्लिम आतंकवादियों की हरकत बता रहे थे , कुछ हिन्दू आतंकवादियों का कारनामा करार दे रहे थे। तहकीकात के बाद पता चला - एक कुत्ता कचरे के ढेर से एक बिना फटा बम उठा लाया था ।
कुत्ता न मुसलमान था, न हिंदू था, न इंसान था।

रविवार, 9 नवंबर 2008

माँ को नमन


भोपाल में रुचिका नाम की १२ साल की एक बच्ची है जो सामान्य बुद्धि ले कर नहीं जन्मी थी वह ऑटिज्म से पीड़ित पाई गयी जन्म के समय शारीरिक रूप से वह पूर्णत: सामान्य थी, किंतु ढाई - तीन साल बाद लगने लगा कि वह सामान्य बुद्धि की नहीं है वह आवश्यकता से अधिक चपल और सक्रिय थी पल दो पल के लिए भी स्थिर या निष्क्रिय रहना उसके लिए असह्य था माता - पिता को इस बात का भान भी नहीं था कि बच्ची की अत्यधिक चंचलता किसी रोग का कारण हो सकता है जब उन्होंने पाया कि बच्ची किसी भी एक कार्य पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाती तो उन्होंने चिकित्सकों से संपर्क साधा

पिता शरद पांडे और माँ सुमनलता ने हरसम्भव यत्न किया कि उनकी बच्ची सामान्य बच्चों का जीवन जिए पिता की कार्यालयीन व्यस्तता और फ़िर मुंबई पोस्टिंग हो जाने के कारण रुचिका का पूरा दायित्व माँ पर आ पड़ा माँ ने बच्ची की परवरिश को पूजा मान लिया और अपने दायित्व का निष्ठापूर्वक निर्वहन करते हुए उस असामान्य बच्ची को इस योग्य बना दिया कि वह हिन्दी ,अंग्रेजी,गणित आदि सभी विषयों का स्कूली ज्ञान तो प्राप्त कर ही रही है साथ ही गायन की एक अद्भुत प्रतिभा लेकर संगीत के क्षेत्र में अपना कौशल दिखा रही है उसकी प्रतिभा से चमत्कृत हो कर ही दैनिक भास्कर के भोपाल संस्करण के साथ प्रकाशित होने वाले डी बी स्टार ने बहुत बड़ा कवरेज़ दे कर उसकी इस प्रतिभा से पाठकों को रूबरू कराया है मैं भी रुचिका की प्रतिभा और संगीत में उसकी पकड़ का कायल हूँ , किंतु उसकी योग्यता से अधिक महत्त्व उसकी माँ के त्याग को देते हुए नमन करता हूँ उस माँ को जिसने उस असामान्य बच्ची को इस योग्य बना दिया

समाज में असामान्य बुद्धि या असामान्य शारीरिक बनावट के साथ हजारों बच्चे पैदा होते हैं और उनके माँ-बाप यथा सम्भव उनका उपचार भी करवाते हैं लेकिन जिस प्रकार इस माँ ने अपने जीवन का सर्वोपरि लक्ष्य बच्ची की उचित परवरिश को बना कर अपने सारे व्यक्तिगत और सामाजिक दायित्वों को गौण बना दिया वह अनुकरणीय है

प्रारंभ में बच्ची को अनेक मनोचिकित्सकों को दिखाया गया उन्होंने बच्ची को हायपरएक्टिव पाया और सलाह दी कि बच्ची को चौबीसों घंटे व्यस्त रखने की आवश्यकता है माँ ने इस राय को सर माथे लिया आगे चल कर चिकित्सकों ने कुछ दवाएं देने की राय दी माँ ने देखा कि इस प्रकार के बच्चे जो कुछ वर्षों से दवाओं का सेवन कर रहे हैं, अत्यन्त आक्रामक हो गए हैं माँ ने बच्ची को दवाओं का सेवन न करने देने और केवल प्रशिक्षण पर ही निर्भर रहने का निश्चय किया

प्राय: देखा गया है कि इस प्रकार के बच्चों के माता-पिता अपने बच्चों को किसी प्रशिक्षण गृह में भेज कर अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेते हैं लेकिन इस माँ ने प्रशिक्षण गृह में पल रहे बच्चों के आचरण का अध्ययन कर निष्कर्ष निकाला कि केवल प्रशिक्षण गृह में भेज देना समस्या का समाधान नहीं है अपितु बच्ची की चौबीसों घंटे निगरानी आवश्यक है

बच्ची को लेकर माँ ने स्कूलों के चक्कर काटे कुछ ने लेने से मना कर दिया, कुछ ने फीस लेकर एडमिशन दिया और हायपरएक्टिव बताकर निकाल दिया अंत में एक स्कूल ने सहानुभूति दिखाई उस स्कूल में माँ को बच्ची के साथ ही क्लास में बैठने की अनुमति दी गयी ताकि बच्ची को नियंत्रण में रखा जा सके यह क्रम तीन वर्षों तक चला

इसी बीच बच्ची की गायन प्रतिभा और संगीत की उसकी समझ का पता चला महसूस किया गया कि बच्ची का संगीत के प्रति लगाव ईश्वर प्रदत्त है बस क्या था - माँ ने उसकी इस प्रतिभा को निखारने का निश्चय किया जाने माने संगीत शिक्षकों से संपर्क साधा बच्ची को लेकर माँ स्कूल जाती उसके बाद तीन अलग अलग दिशाओं में अलग अलग शिक्षकों के पास जा कर बच्ची को संगीत का अभ्यास करवाती अंतत: बच्ची की संगीत के प्रति रूचि बढ़ती ही गयी यही नहीं संगीत के साथ साथ अब पढ़ाई में भी उसकी रूचि बढ़ने लगी

इस सारी भाग दौड़ में माँ को अपने व्यक्तिगत और सामाजिक दायित्वों से मुँह मोड़ना पड़ा माँ योग प्रशिक्षक थी उस कार्य को तिलांजलि दी दैनिक पूजा पाठ भी यदि नियमित न हो पाई तो बच्ची की सेवा को ही पूजा मान लिया -
ऐ खुदा मेरी बख्श दे खता
फूल पूजा के तुझ पे चढ़ा न सका
हाथ बन्दों की खिदमत में मशगूल थे
हाथ बंदगी के लिए उठा न सका
परिचितों, रिश्तेदारों के यहाँ आना जाना, उनके सुख - दुःख के कार्यक्रमों में शामिल होना छोड़ना पड़ा और उनकी नाराज़गी झेलनी पड़ी

कुल मिला कर माँ ने सब कुछ भूल कर केवल बच्ची को सामान्य बनाने के लिए अपना जीवन होम कर दिया और उसी का फल है कि बारह साल पहले जन्मी एक असामान्य बच्ची सामान्य लोगों को पीछे छोड़ कर संगीत - क्षितिज पर उभर रही है वह ध्रुपद का प्रशिक्षण ले रही है आठ भाषाओं में गा सकती है उसकी प्रतिभा से प्रभावित हो विकलांगों के लिए काम करने वाले दिल्ली के एक एन. जी. ओ. ने उसके गानों का एल्बम बनाया है जो तीन दिसम्बर को रिलीज होगा

यह सबक है उन माता - पिताओं के लिए जिनकी संतानें किसी प्रकार की असामान्यता से ग्रसित हैं यदि वे इस प्रकार की संतान के लिए स्वयं के जीवन को उत्सर्ग करने के लिए तैयार हैं तो संतान का भविष्य सुधर सकता है