गुरुवार, 27 जनवरी 2011

सस्ती पुस्तक , अच्छी पुस्तक

पुस्तकें खरीदने के पीछे एक तर्क उनके मूल्य का अधिक होना दिया जाता है, जिससे मैं पूर्ण सहमत नहीं हूँ | क्योंकि अन्य अनेक मदों में खर्च करते समय हम खर्च की जाने वाली राशि को नजरंदाज कर देते हैं |

वैसे मुझे खुशी है कि हिन्दी जगत में कुछ ऐसी संस्थाएं भी सक्रिय हैं जो सस्ते मूल्य पर पठनीय पुस्तकें उपलब्ध कराती हैं | इस क्रम में गीताप्रेस गोरखपुर का नाम लेने से हमारे धर्मनिरपेक्ष (?) बंधुओं का जायका ख़राब होसकता है , क्योंकि यह प्रकाशन हिन्दू मतावलम्बियों की आवश्यकतानुसार धार्मिक पुस्तकें बहुत सस्ते मूल्य पर लगभग सौ प्रतिशत त्रुटिरहित मुद्रण के साथ उपलब्ध कराता है | किन्तु उन्हें उस संस्था की प्रशंसा तो करनी ही चाहिए जो मात्र १८ रुपये में गांधीजी की संक्षिप्त आत्म कथा १९२ पृष्ठीय पुस्तक में पढ़ा रही है |

मैं
वाराणसी के सर्व सेवा संघ प्रकाशन को नमन करता हूँ |