यह सर्वज्ञात तथ्य है कि होमियोपैथी चिकित्सा पद्धति का जन्म जर्मनी में हुआ था. वहाँ के डाक्टर हैनिमेन ने १७९० में इसका प्रवर्तन किया था.इस पद्धति के बारे में अपने सामान्य ज्ञान से मुझे केवल इतना ज्ञात है कि होमियोपैथी चिकित्सा पद्धति में मरीज में दिख रहे लक्षणों के आधार पर बीमारी का इलाज किया जाता है.यह देखा जाता है कि मरीज के शरीर पर दिख रहे लक्षण किन पदार्थों ( दवाओं) से उपजते हैं.उपचार के लिए वही पदार्थ दवा के रूप में दिए जाते है.संक्षेप में यह पद्धति 'जहर को जहर मारता है' के सिद्धांत पर काम करती है.
मैंने कहीं पढा था कि वैदिक ग्रंथों और कुछ यूनानी ग्रंथों में भी इस पद्धति का उल्लेख मिलता है. मैंने इन ग्रंथों का अध्ययन नहीं किया है और निश्चित रूप से इस बारे में कुछ नहीं कह सकता. लेकिन मेरा विश्वास है कि जहर से जहर को मारने के सिद्धांत द्वारा भारत में अतीत में उपचार किये जाते होंगे. मेरा यह विश्वास श्रीमद्भागवत पुराण के प्रथम स्कंध के पाँचवे अध्याय के तैंतीसवें श्लोक से पक्का बना. वह श्लोक इस प्रकार है –
आमयो यश्च भूतानां जायते येन सुव्रत |
तदेव ह्यामयं द्रव्यं न पुनाति चिकित्सितं ||
-प्राणियों को जिस पदार्थ के सेवन से जो रोग हो जाता है वही पदार्थ चिकित्साविधि के अनुसार प्रयोग करने पर क्या उस रोग को दूर नहीं करता ?
(उपरोक्त श्लोक और उसका अर्थ मैंने गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवत पुराण से उद्धृत किया है)