गुरुवार, 9 जुलाई 2009

श्रद्धांजलि

दिवंगत आत्माओं को श्रद्धांजलि देने हेतु लोगों के अपने अपने तरीके हैं. कुछ लोग समाचार पत्रों में विज्ञापन दे कर दिवंगत आत्माओं को श्रद्धांजलि देते हैं. एक परिवार द्बारा अपने दिवंगत आत्मीय की
प्रथम पुण्य तिथि पर श्रद्धांजलि देने हेतु दिए गए विज्ञापन में मैंने एक कविता पढी.मैं न तो उस दिवंगत आत्मा को जानता हूँ. न उनके परिवार को. मुझे यह भी मालूम नहीं कि कविता उस परिवार ने कहीं से उद्धृत की है या परिवार के ही किसी सदस्य ने लिखी है. वह कविता मुझे एक उत्कृष्ट रचना लगी. मैं उसे आप लोगों से साझा करना चाहता हूँ -

पत्र में मैंने लिखी
कुछ वेदना की बात थी,
नम आँखों की दवात में,
स्याही भी पर्याप्त थी |
वर्ष भर लिखता रहा
तुम्हारे विछोह में,
किन्तु पत्र भेज न सका
पते की उहापोह में -
पता भी अज्ञात था,
शहर-गली अज्ञात थी -
सिर्फ नाम लिख दिया पत्र डाल दिया डाक में -
दूसरे ही दिन खड़ा था, देख कर अवाक मैं,
पत्र ले कर मेरे सामने खड़ा था डाकिया
मेरे अन्दर ही तो उसने, तुम्हें था जो पा लिया ||