सोमवार, 4 अक्तूबर 2010

ब्लॉगजगत का एक और घटियापन

२३ सितम्बर से ३० सितम्बर के बीच और उसके तुरंत बाद का भारत एक अपरिपक्व देश की छवि प्रस्तुत करता है |उच्च न्यायालय द्वारा दिए जाने वाले एक फैसले को शांतिपूर्वक सुनने के लिये हमारे प्रधान मंत्री को जनता से अपील करनी पड़ती है , भारी सुरक्षाबल तैनात करने पड़ते हैं , ३० सितम्बर को शाम तीन बजे से अनेक शहरों में कर्फ्यू का सा माहौल बन जाता है | सभी सम्बंधित पक्ष बार बार कहते हैं कि उन्हें अदालत का फैसला मंजूर होगा ,मानो अदालत का फैसला मान कर वे कोई अहसान कर रहे हों | यह सब अपरिपक्वता की ओर ही इंगित करता है |

अदालत के फैसले के बाद असंतुष्टों को ऊपरी अदालत में जाने का पूरा अधिकार है | लेकिन एक विशेष प्रकार के फैसले की प्रतीक्षा कर रहे लोगों की टिप्पणियाँ अपरिपक्वता को और अधिक उजागर करती हैं | ब्लॉग जगत में तो एक ब्लोगर ने जजों द्वारा दिए फैसले को 'अ-कानूनी' करार दे दिया | मतलब अब उच्च न्यायालय के जजों को क़ानून सीखने के लिये ब्लॉगजगत के दरवाजे खटखटाने पडेंगे ? यह ब्लॉग जगत की अपरिपक्वता (घटियापन)नहीं तो और क्या है ?

वैसे इस मामले में मेरी व्यक्तिगत राय उन हिन्दू-मुसलामानों से मेल खाती है, जो मानते हैं कि अदालत के फैसले के बाद उस स्थान पर राम मंदिर बनाने में मुसलमान सहयोग करें और अन्यत्र मस्जिद बनाने के लिये हिन्दू उससे अधिक सहयोग करें |