कुछ दिनों पहले एक समाचार पढ़ा था - आइ आइ टी और आइ आइ एम से निकलने वाले स्नातक अब मोटा वेतन देने वाली प्राइवेट कंपनियों के मुकाबले पी एस यू को तरजीह देने लगे हैं । समाचार के अनुसार हाल ही में मंदी का दौर देख चुके इन लोगों को मोटी तनख्वाह के मुकाबले नौकरी का स्थायित्व अधिक लुभा रहा है।
दो दिन पूर्व एक सरकारी दफ्तर में कार्यवश जाना हुआ। वहाँ मुझे पंद्रह मिनट रुकना पडा। इस दौरान मैं वहाँ के कुछ कर्माचारियों का वार्तालाप सुनता रहा-
एक मैडम - हमारे पड़ोसी की लड़की प्राइवेट कंपनी में काम करती है। सुबह सात बजे निकल जाती है रात के नौ बजे तक आती है। बड़ी खराब नौकरी है प्राइवेट की।
दूसरी मैडम - ये लोग पैसे तो अच्छे देते हैं, लेकिन खून चूस के रख लेते हैं।
तीसरे बाबू जी - इसके अलावा कभी भी नौकरी से छुट्टी कर सकते हैं। सरकारी नौकरी में जॉब सिक्युरिटी तो है।
पहली मैडम -जो प्राइवेट में नौकरी करता है वह ४० साल की उम्र में ही बीमारियों से घिर जाता है.
मेरे पिताजी ने रिटायरमेंट के बाद १३ साल तक पेंशन ली। उनकी मृत्यु के ३७ साल बाद तक मेरी माता जी ने मृत्युपर्यंत पिताजी की सरकारी सेवा के कारण पेंशन प्राप्त की ।
सारांश यही कि सरकारी नौकरी के अनेक सुख हैं । सरकार अपने सेवकों को सुविधायें दे रही है, यह एक अच्छी बात है,लेकिन सरकारी कर्मचारियों की जवाबदेही तय होनी चाहिए। यदि कोई परमानेंट सरकारी कर्मचारी अपना काम नहीं करता तो उसको नौकरी से निकालना तो दूर सख्त कार्यवाही करना भी आसान नहीं। यदि कोई कर्मचारी किसी कारणवश निलंबित हो जाय तो उसकी बहाली ९९% निश्चित जानिये।
जिन दफ्तरों का कार्यकाल १०-३० से ५-३० तक है वहां कर्मचारी ११ बजे बाद आना शुरू होते हैं। पूरी उपस्थिति १२-१२.३० बजे बाद ही दिखाई देती है। कुछ कर्मचारी तो कुछ दिनों में एक बार केवल हस्ताक्षर करने और वेतन लेने आते हैं। एक कार्यालय में एक महिला कर्मचारी न केवल अत्यधिक विलम्ब से आती थी वरन अपना निर्धारित काम भी पूरा नहीं करती थी। अधिकारी ने अनेक बार मौखिक चेतावनी दी।लेकिन महिला के कान पर जूँ भी नहीं रेंगी । अंत में उसको लिखित चेतावनी दी गयी। जवाब में महिला ने अनुसूचित जाति थाने में रिपोर्ट कर दी - चूंकि मैं अनुसूचित जाति की हूँ और मेरा लड़का इंजीनियरिंग की परीक्षा में उत्तीर्ण हो गया है और अधिकारी सवर्ण है ,इस लिये चिढ़ कर मुझे परेशान कर रहा है। हार कर अधिकारी ने महिला का काम अन्य कर्मचारी को सौंप दिया। यह सब मैं सुनी सुनाई बातों या कपोल कल्पना के अनुसार नहीं बल्कि अपनी व्यक्तिगत तथ्यात्मक जानकारी के आधार पर लिख रहा हूँ।
मैं निश्चित नहीं कर पा रहा हूँ कि नयी पीढी को प्रायवेट नौकरी में हाड़ तोड़ मेहनत करने की सलाह दूं या सरकारी नौकरी में जा कर निकम्मा बन जाने की ?