एक पौराणिक कथा के अनुसार राजा परीक्षित ने कलियुग को परास्त कर दिया था, लेकिन उस पर दया कर के उसके रहने के लिए चार स्थान उपलब्ध करा दिए थे - द्यूत, मद्यपान, काम-वासना और हिंसा.कलियुग द्वारा और भी स्थान मांगे जाने पर उन्होंने उसे 'धन' में भी रहने की अनुमति दे दी. पौराणिक कथाएँ प्रतीक रूप में अपनी बात कहने के लिए जानी जाती हैं. इस कथा के अनुसार प्रथम चार स्थान तो सहजता से समझ में आ जाते हैं. लेकिन पांचवा स्थान इतनी सहजता से गले से नीचे नहीं उतरता.
धन में कलियुग के वास की धारणा के सम्बन्ध में मेरा व्यक्तिगत अनुभव कुछ विशेष नहीं है. कुछ विशिष्ट चर्चित हस्तियों की ओर नजर दौड़ाता हूँ तो मुझे बिड़ला घराने की याद आती है. जहाँ परिवार से बाहर के एक विश्वस्त कर्मचारी को वसीयत की सम्पति मिल जाने से परिवार में विखंडन की नौबत आयी थी. दूसरा उदाहरण है - ग्वालियर की राजमाता सिंधिया का सरदार आंग्रे पर मेहरबान हो जाना. ताजे उदाहरणों में मुकेश अम्बानी और अनिल अम्बानी पर आ रही अखबारों की सुर्खियाँ और जयपुर की राजमाता गायत्री देवी की २१५० करोड़ की सम्पति की वसीयत खुलने से पहले ही उठ रहे विवाद की सुगबुगाहट है.
तो क्या 'धन' में भी कलियुग का वास है ? क्या सारी जिम्मेदारी राजा परीक्षित की है ?