गुरुवार, 25 दिसंबर 2008

प्यार किया तो डरना क्या

आज कुछ प्यार मोहब्बत की बातें - किसी शायर ने कहा भी है :
इश्क के मकतब में मेरी आज बिस्मिल्लाह है
मुंह से कहता हूँ अलिफ़, दिल से निकलती आह है.

और शायद इसी प्यार मोहब्बत का मारा कोई शायर कहता है :
नासह मत दे नसीहत जी मेरा घबराय है
मैं उसे समझूं हूँ दुश्मन जो मुझे समझाय है.

तारा शंकर बंदोपाध्याय अपने उपन्यास महाश्वेता में प्रेम के बारे में कहते हैं :
श्रद्धा प्रेम है,स्नेह भी प्रेम है और प्रेम भी प्रेम है.

स्त्री की चाहत के बारे में इला चन्द्र जोशी ने कुछ यों लिखा है :
नारी का मन ऐसा रहस्यमय है कि जिस व्यक्ति के सम्बन्ध में वह समझती है कि वह उससे घृणा करती है, अक्सर उसी को वह अंतस्तल में सबसे अधिक चाहती है.

उधर बेधड़क बनारसी प्यार में कुछ इस तरह तड़पते हैं :
प्रेयसी,चाँद यदि तुम बनोगी, दिल अपोलो बनेगा हमारा
हम गरीबों ने है यह पुकारा , नेशन्लाइजेशन हो हुस्न सारा

प्यार में आहत हो किसी शायर ने यों कहा :
नजर की राह से दिल में उतर के चल देना
यह रास्ता बहुत अच्छा है आने जाने का

मोहब्बत करने वाले की दशा पर शेख गुलाम हमदानी 'मुसहफी' ने कहा :
कुछ तो होते हैं मोहब्बत में जुनूं के आसार
और कुछ लोग भी दीवाना बना देते हैं

आगा जान 'ऐश' मानते हैं कि इश्क छुपाया नहीं जा सकता :
इश्क और मुश्क छुपाये से कहीं छुपता है
दर्दे दिल लाख छुपाया पे छुपाया न गया

शायर अकीन इश्क को लाइलाज मानते हैं :
काबे भी मैं गया, न गया बुतों का इश्क
इस मर्ज की खुदा के घर में भी दवा नहीं

शेफ्ता मोहब्बत की परिभाषा यों देते हैं :
शायद इसी का नाम मोहब्बत है ' शेफ्ता '
इक आग सी है सीने के अन्दर लगी हुई ।
(क्रमशः)