रविवार, 18 जनवरी 2009

पत्रकारों की नस्ल

वैसे तो पत्रकारों की अनेक श्रेणियां,वर्ग,उपवर्ग, जातियाँ और प्रजातियाँ इस संसार में पाई जाती हैं, जिस पर एक विषद ग्रन्थ तैयार किया जा सकता है., किंतु इनमें से कुछ का वर्णन मैं यहाँ कर रहा हूँ.

एक श्रेणी में वे पत्रकार आते हैं,जिनके पास न पत्र होता है और न कार,फ़िर भी वे किसी न किसी तरह किसी न किसी पत्र से सम्बद्ध कहलाये जाते हैं और यदा कदा या बहुधा कार का उपयोग करते पाये जाते हैं.इस श्रेणी का एक वर्ग अपने को श्रमजीवी कहता किंतु बुद्धिजीवी मानता है.जिसमें जितना अधिक बुद्धितत्व होता है वह अपने से कनिष्ठ के श्रम पर उतना ही अधिक जीता है.कुछ इस लिए भी श्रमजीवी कहलाने के हकदार होते हैं क्योंकि वे तबादले करवाने,रुकवाने, कोटा परमिट दिलवाने आदि में काफी श्रम करते हैं और इन्हीं तिकड़मों के लिए वे पत्र से सम्बद्ध रहते हैं और सेठ साहूकारों,नेता मंत्रियों और अफसरों की कार का उपयोग कर लेते हैं.

एक अन्य श्रेणी में वे पत्रकार आते हैं जिनके पास पत्र होता है लेकिन कार नहीं.इस श्रेणी में एक वर्ग ऐसा है जो वास्तव में श्रमजीवी है.श्रम करना इनकी नियति है.ये बुद्धिजीवी इस लिए नहीं कहे जा सकते क्योंकि तिकड़मी बुद्धि का इनमें नितांत अभाव होता है. ये यदि दैनिक समाचार पत्र में हों तो कभी इस पेज और कभी उस पेज का दायित्व संभालते संभालते इनकी उम्र निकल जाती है. अखबार में होने वाली सारी गलतियों का ठीकरा इन्हीं के सर फूटता है. ये सदैव अपने श्रम के प्रतिफल से वंचित रहते हैं. इन्हीं में से कुछ लोग कुछ रुपट्टी के लिए गुमनाम रह जाते हैं और इनकी जगह उनका नाम छपता है जो केवल दस्तखत करना जानते हैं, लिखना नहीं.

पत्रकारों का एक वर्ग वह है जो छपने या न छपने वाले साप्ताहिकों से सम्बद्ध रहता है और ऊपरी कमाई वाले सरकारी दफ्तरों में घूमता पाया जाता है. इनका मानना है कि ऊपरी कमाई करने वाले दफ्तरों की ऊपरी कमाई में एक हिस्सा इनका भी होता है. कुछ अधिकारी इनसे इतने त्रस्त रहते हैं कि दफ्तर के बजाय घर में बैठ कर सरकारी काम निबटाना अधिक उपयुक्त समझते है.

कुछ पत्रकार 'पत्रकार' नाम को पूर्ण सार्थक करते हैं. अर्थात इनके पास पत्र भी होता है और कार भी. निश्चित ही ये सफल पत्रकार हैं.लेकिन इस सफलता के पीछे एक लंबे संघर्ष की कहानी होती है जिसे बिरले ही जान पाते हैं. इनमें से कई कम्पोजीटर,प्रूफरीडर की सीढ़ी चढ़ कर नेताओं - मंत्रियों , अफसरों की दवा-दारू-दारा का इंतजाम करते हुए यहाँ तक पहुंचे होते हैं.ये वास्तव में बुद्धिजीवी और श्रमजीवी हैं क्योंकि इनमें जोड़-तोड़ की विशिष्ट बुद्धि के साथ उसके लिए दौड़ भाग का श्रम करने की अद्भुत क्षमता होती है. इनमें से कुछ वे लोग भी होते हैं जो लिख भी सकते हैं. ऐसे लोग अपनी लेखनी के दम पर नेताओं मंत्रियों के (भाषण, संदेश आदि लिखने हेतु) चहेते बन जाते हैं.

पत्रकारों की एक विरल प्रजाति उंगली में गिने जा सकने वाले लोगों की पायी जाती है, जिनमें चिंतन-मनन की क्षमता होती है. इनकी लेखनी में इतना दम होता है कि वे सरकारों को हिला दें, जन मानस को झकझोर दें. लेकिन इन्हें भी पत्र से निकाल बाहर करने और कार छीने जाने का खतरा रहता है.