सोमवार, 26 जनवरी 2009

भविष्य के सम्मान

गण तंत्र दिवस पर विशिष्ट कार्यों के लिए पुरस्कार देने की परम्परा है. अर्थात कोई अच्छा काम करने के लिए देश आपको शाबाशी स्वरूप सम्मानित करता है. अब प्रश्न यह है कि शाबाशी के लायक काम क्या हो सकते हैं ? मैं समझता हूँ शाबाशी के लायक काम समय सापेक्ष हैं.मैं विचार कर रहा हूँ कि आने वाले समय में कैसे लोगों को सम्मानित किया जा सकता है.

मुझे अलमारी की सफाई करते हुए एक बहुत पुराने समाचार पत्र का पन्ना मिला.उसमें छपे समाचारों को पढ़ते हुए मेरी नजर एक समाचार पर पड़ी. समाचार था एक ऑटो रिक्शा चालाक के सम्मान का. उसने सम्मान लायक काम यह किया था कि,३२००० रुपये जो उसके ऑटो रिक्शा में किसी मुसाफिर के रह गए थे,अधिकारी व्यक्ति को लौटा दिए.

मैं इस सम्मान पर गहराई से विचार करने लगा.मुझे समझ में आ गया कि वास्तव में ऑटो रिक्शा चालक से अपेक्षा थी कि वह राशि,जो उसकी नहीं थी , उसने अपने पास रख लेना चाहिए थी. चूंकि उसने ऐसा न कर वह राशि उसके वास्तविक अधिकारी तक पहुंचा दी, इस लिए उसका सम्मान किया गया.

तभी मैं समझ पाया कि आने वाले समय में सम्मान योग्य कार्य क्या हो सकते हैं. बानगी देखिये -
-किसी शासकीय अधिकारी द्वारा, शासकीय कार्य हेतु किसी व्यापारी से ख़रीदी गयी सामग्री का यथा समय बिना कमीशन लिए भुगतान कर देना.
- किसी शासकीय पद पर अपने / श्रीमानों के भाई भतीजे या भेंट अर्पित करने वाले उम्मीदवार का चयन न कर प्रतियोगिता के आधार पर सबसे योग्य व्यक्ति का चयन कर लेना.
-थाने में आई किसी महिला की रिपोर्ट बिना बलात्कार किए लिख लेना.
-शासकीय वाहन का उपयोग घर की सब्जी लेने,सिनेमा जाने या सैर सपाटे के लिए न करना.
-बिना अपराधिक रिकार्ड के किसी राजनीतिक दल से चुनाव टिकट प्राप्त कर लेना.

सूची बहुत लम्बी हो सकती है.लगता है भविष्य में सम्मान प्राप्त कर लेना आज की अपेक्षा आसान हो जायेगा.

रविवार, 18 जनवरी 2009

पत्रकारों की नस्ल

वैसे तो पत्रकारों की अनेक श्रेणियां,वर्ग,उपवर्ग, जातियाँ और प्रजातियाँ इस संसार में पाई जाती हैं, जिस पर एक विषद ग्रन्थ तैयार किया जा सकता है., किंतु इनमें से कुछ का वर्णन मैं यहाँ कर रहा हूँ.

एक श्रेणी में वे पत्रकार आते हैं,जिनके पास न पत्र होता है और न कार,फ़िर भी वे किसी न किसी तरह किसी न किसी पत्र से सम्बद्ध कहलाये जाते हैं और यदा कदा या बहुधा कार का उपयोग करते पाये जाते हैं.इस श्रेणी का एक वर्ग अपने को श्रमजीवी कहता किंतु बुद्धिजीवी मानता है.जिसमें जितना अधिक बुद्धितत्व होता है वह अपने से कनिष्ठ के श्रम पर उतना ही अधिक जीता है.कुछ इस लिए भी श्रमजीवी कहलाने के हकदार होते हैं क्योंकि वे तबादले करवाने,रुकवाने, कोटा परमिट दिलवाने आदि में काफी श्रम करते हैं और इन्हीं तिकड़मों के लिए वे पत्र से सम्बद्ध रहते हैं और सेठ साहूकारों,नेता मंत्रियों और अफसरों की कार का उपयोग कर लेते हैं.

एक अन्य श्रेणी में वे पत्रकार आते हैं जिनके पास पत्र होता है लेकिन कार नहीं.इस श्रेणी में एक वर्ग ऐसा है जो वास्तव में श्रमजीवी है.श्रम करना इनकी नियति है.ये बुद्धिजीवी इस लिए नहीं कहे जा सकते क्योंकि तिकड़मी बुद्धि का इनमें नितांत अभाव होता है. ये यदि दैनिक समाचार पत्र में हों तो कभी इस पेज और कभी उस पेज का दायित्व संभालते संभालते इनकी उम्र निकल जाती है. अखबार में होने वाली सारी गलतियों का ठीकरा इन्हीं के सर फूटता है. ये सदैव अपने श्रम के प्रतिफल से वंचित रहते हैं. इन्हीं में से कुछ लोग कुछ रुपट्टी के लिए गुमनाम रह जाते हैं और इनकी जगह उनका नाम छपता है जो केवल दस्तखत करना जानते हैं, लिखना नहीं.

पत्रकारों का एक वर्ग वह है जो छपने या न छपने वाले साप्ताहिकों से सम्बद्ध रहता है और ऊपरी कमाई वाले सरकारी दफ्तरों में घूमता पाया जाता है. इनका मानना है कि ऊपरी कमाई करने वाले दफ्तरों की ऊपरी कमाई में एक हिस्सा इनका भी होता है. कुछ अधिकारी इनसे इतने त्रस्त रहते हैं कि दफ्तर के बजाय घर में बैठ कर सरकारी काम निबटाना अधिक उपयुक्त समझते है.

कुछ पत्रकार 'पत्रकार' नाम को पूर्ण सार्थक करते हैं. अर्थात इनके पास पत्र भी होता है और कार भी. निश्चित ही ये सफल पत्रकार हैं.लेकिन इस सफलता के पीछे एक लंबे संघर्ष की कहानी होती है जिसे बिरले ही जान पाते हैं. इनमें से कई कम्पोजीटर,प्रूफरीडर की सीढ़ी चढ़ कर नेताओं - मंत्रियों , अफसरों की दवा-दारू-दारा का इंतजाम करते हुए यहाँ तक पहुंचे होते हैं.ये वास्तव में बुद्धिजीवी और श्रमजीवी हैं क्योंकि इनमें जोड़-तोड़ की विशिष्ट बुद्धि के साथ उसके लिए दौड़ भाग का श्रम करने की अद्भुत क्षमता होती है. इनमें से कुछ वे लोग भी होते हैं जो लिख भी सकते हैं. ऐसे लोग अपनी लेखनी के दम पर नेताओं मंत्रियों के (भाषण, संदेश आदि लिखने हेतु) चहेते बन जाते हैं.

पत्रकारों की एक विरल प्रजाति उंगली में गिने जा सकने वाले लोगों की पायी जाती है, जिनमें चिंतन-मनन की क्षमता होती है. इनकी लेखनी में इतना दम होता है कि वे सरकारों को हिला दें, जन मानस को झकझोर दें. लेकिन इन्हें भी पत्र से निकाल बाहर करने और कार छीने जाने का खतरा रहता है.

सोमवार, 12 जनवरी 2009

कुशाग्र की कविता

कुशाग्र ११ साल का एक बच्चा है. वह छठी कक्षा में पढ़ता है. उसकी दादी का देहावसान ८८-८९ साल की पूरी आयु में हुआ. उसकी दादी की मृत्यु के तीसरे दिन,जब घर में सम्वेदना जताने वाले लोगों और मेहमानों का तांता लगा था और पढाई का कतई माहौल नहीं था, मैंने उसे एक कापी में कुछ लिखते हुए पाया. जिज्ञासावश मैंने उसके पास जा कर देखा कि आख़िर वह ऐसी विषम स्थिति में कौन सा विषय पढ़ रहा है. वास्तव में वह अपने मन के उद्गार कविता द्वारा प्रकट कर रहा था. मुझे उसकी सम्वेदना, काव्य प्रतिभा और शब्द रचना ने प्रभावित किया. प्रस्तुत है ११ वर्षीय कुशाग्र की रचना :

तोहफे सी मिली थी,
कमल जैसी खिली थी
वह मेरे अपने लिए,
हर चीज़ से बड़ी थी


पाला उसने मुझको ,
जैसे उसका दुलारा
लोरी सुना सुलाती,
कहती तू है प्यारा


मैं उससे बतियाता
वह मुझसे खुश होती
मैं यदि दुःख बतलाता
तो वह ख़ुद से रोती.

भले तुझे हो कष्ट
मुझको सदा बचाया
हर पल तूने बढ़कर
कर्तव्य को निभाया.



मुझे नहीं ये ज्ञान था
होगा अब कुछ ऐसा
हे भगवन यह तूने
कर डाला है कैसा

पंख लगाए तूने
चिड़िया सम उड़ चली
करूंगा पूरे सपने
जो तू देखकर उड़ पड़ी .

सोमवार, 5 जनवरी 2009

नव वर्ष पर ब्लोगों की काव्यात्मक प्रस्तुति

नव वर्ष पर अनेक ब्लोगर बंधुओं ने अपनी प्रस्तुतियां दी थीं. उनमें से जिन काव्य प्रस्तुतियों को मैं पढ़ पाया और मुझे अच्छी लगीं, उन्हें मैं यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ. आशा है जो बन्धु इन प्रस्तुतियों को नहीं पढ़ पाये थे, वे लाभान्वित होंगे.

सबसे पहले मैं उल्लेख कर रहा हूँ गौतम राजरिशी जी का. उन्होंने नव वर्ष पर एक बहुत सुंदर गजल दी है. कुछ शेर प्रस्तुत हैं :

दूर क्षितिज पर सूरज चमका, सुबह खड़ी है आने को
धुंध हटेगी,धूप खिलेगी,साल नया है छाने को.

प्रत्यंचा की टंकारों से सारी दुनिया गूंजेगी
देश खड़ा अर्जुन बन कर गांडिव पे बाण चढाने को.

साहिल पर यूँ सहमे सहमे वक्त गंवाना क्यों यारो
लहरों से टकराना होगा पार समंदर जाने को.
* * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * *
साल गुजरता सिखलाता है, भूल पुरानी बातों को
साज नया हो, गीत नया हो, छेड़ नए अफ़साने को

कवि योगेन्द्र मौदगिल की प्रस्तुति में उन्होंने नए साल के स्वागत में होने वाली अनेकों कुरूपताओं का वर्णन करते हुए अंत में बहुत मोहक बात कही है :

संभव है तो रखो बचा कर, थोड़ी शर्म उजाले की
अंधेरे आ कर समझाएं नए साल के स्वागत में.

परमजीत बाली ने अपने ब्लॉग 'दिशाएं' में पुराने साल की विदाई और नए साल का स्वागत अपनी प्रभावी प्रस्तुति से इस प्रकार किया :
मेरे सपनों को
साथ लेकर,
मेरे अपनों की
यादें देकर,
देखो !
वह जा रहा है...............
नया साल आ रहा है.

देव की प्रस्तुति 'नव वर्ष है नव प्रभात है' नाम से आई, जिसमें कुछ संकल्प लिए गए हैं, जिन्होंने मुझे प्रभावित किया :

पथ में कुछ मुश्किल तो होगी
कुछ बाधाएं सरल न होंगी
अंधियारों में चलना होगा
गम भी हमको सहना होगा
गीत नए फ़िर भी गढ़ना है
स्वपन सुनहरे सच करना है.

अभिव्यक्ति ने नए साल से पूछा है कि पिछले साल के इतने घावों के बीच भला उसका स्वागत कैसे किया जा सकता है. उन्होंने कामना की है :
दे देना
सवालों के जवाब
मुरझाये चेहरों को
संभावनाओं का आकाश
बुझी आंखों में
आशा है और विश्वास
सपनों को देना पंख
जो भर सके ऊंची उड़ान
दे दो ऐसा स्वर्णिम विहान.

पंडित डी. के. शर्मा "वत्स" ने अपने ब्लॉग में सुश्री संध्या की अनुभूति पत्रिका में प्रकाशित रचना प्रस्तुत की. उस रचना के कुछ अंशों से ही रचना की मादकता का अंदाजा लग जाता है :

फिर से उम्मीद के नए रंग
भर लाएँ मन में नित उमंग

खुशियाँ ही खुशियाँ बेमिसाल
हो बहुत मुबारक नया साल

उपहार पुष्प मादक गुलाब
मीठी सुगंध उत्सव शबाब

शुभ गीत नृत्य और मधुर ताल
हो बहुत मुबारक नया साल


मुझे खुशी है कि ब्लॉग जगत में प्रभावी रचनाएं पढने को मिल रही हैं. भविष्य में भी कोशिश करूंगा कि जो अच्छा लगे उसे यहाँ प्रस्तुत करुँ.