रविवार, 10 अक्तूबर 2010

सरकार की ताकत

मेरा शहर ९२ में दंगों की चपेट में आया थामेरा स्कूटर, जो तब सर्विस सेंटर में था, भी दंगाइयों ने जला डाला था | इस बार २४ सितम्बर से ३०सितम्बर तक भी लोगों में आशंका मौजूद थी |पिछले सबक को याद कर के घरों में राशन, सब्जी आदि का भण्डार जमा किया जाने लगा था | शरारती तत्व अपनी तरह की तैयारी में लगे थे | लेकिन किसी माई के लाल की हिम्मत नहीं हुई कि जरा भी गड़बड़ी कर सके | यही नहीं इन दिनों शहर में होने वाले आम अपराध भी नहीं सुनाई दिए | क्यों ? क्योंकि मुख्यमंत्री ने कलेक्टरों और पुलिस अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दे दिए थे कि उनके क्षेत्र में होने वाली किसी भी गड़बड़ी के लिये ये अधिकारी जिम्मेदार होंगे और राजनीतिक दबाव की दलील नहीं मानी जायेगी | अर्थात जवाबदेही तय कर दी गयी थी और अधिकार दे दिए गए थे | फलतः पुलिस ने गड़बड़ी करने, करवाने वालों , जिनमें राजनीतिक दलों से सम्बद्ध दादा भी थे,को जिलाबदर करने की कारवाई दो दिन में ही कर डाली | सामान्य दिनों में कोई पुलिस अधिकारी इन लोगों की ओर आँख उठा कर देखने की हिम्मत नहीं कर सकता था |


क्या ऐसी व्यवस्था के लिये ३० सितम्बर जैसे हालात होने जरूरी हैं ? क्या ऐसी जवाबदेही सदा तय नहीं की जा सकती ? की जा सकती है और की जानी चाहिए | दृढ इच्छाशक्ति
वर्तमान कानूनों के भीतर ही सुशासन दे सकती है |