शनिवार, 19 जून 2010

मुआवजे से ज्यादा जरूरी दंड.

एक बार फिर भोपाल गैस त्रासदी राजनीति और मुआवजे के चक्रव्यूह में फंसती नजर आ रही है। भाजपा जहां इस त्रासदी के फैसले को मुद्दा बनानेपर तुली है वहीं कांग्रेस योजना आयोग द्वारा गैस पीड़ितों के लिये आनन फानन में दिए गए ९८२ करोड़ रुपये की मदद कोअपने प्रयासों का फल बता रही है। ज्ञातव्य है कि इससे पहले मध्य प्रदेश ने आयोग से ९०० करोड़ की मदद माँगी थी, लेकिन आयोग नेध्यान देने की जरूरत नहीं समझी। हालांकि गैस पीड़ितों के लिये काम करने वाले संगठनों ने भाजपा द्वाराप्रायोजित धरने का विरोध कर यह जताने की कोशिश की कि वे इस राजनीतिक नौटंकी को समझ रहे हैं,किन्तु डर है कि वेभी मुआवजे के भ्रमजाल में फंस कर मुख्य मुद्दे को भूल न जाएँ । गैस त्रासदी के तुरंत बाद भी मुआवजा मुख्य मुद्दा होगया था । स्वयं सेवी संगठनों सहित राजनीतिक पार्टियां और स्वयं पीड़ित भी थोड़ा बहुत मुआवजे के चक्कर में दोषियों को दण्डित करने के मुख्य मुद्दे को भूल गए थे।

निस्संदेह पीड़ितों को दिया गया मुआवजा त्रासदी को देखते हुए बहुत ही कम था,लेकिन यह भी सच है कि मुआवजे की राशि भी भ्रष्टाचार के भंवर में बुरी तरह फंसी। पूरी संभावना है कि भविष्य में भी यह होगा। भोपाल के कुछ विधायक और नेता जिनके वोटर गैस प्रभावित क्षेत्र की परिधि के बाहर हैं, उनको भी मुआवजा दिलाने के लिये प्रयत्नशील हैं.अंधा बांटे रेवड़ी.....

बहरहाल जो भी पीड़ित है उसे मुआवजे की बढ़ी हुई राशि अवश्य मिलनी चाहिए। मेरा अनुमान है कि राज्य और केंद्र सरकारों के अपने अपने गणित (मुआवजे दिलाने का श्रेय)के अनुसार यह काम होगा भी। लेकिन मुआवजे की इस राजनीति में दोषियों को दण्डित करने का काम पिछड़ जाएअब दोषी तत्कालीन सत्तासीन राजनेता और अधिकारी हैं,जिन्होंने तब पीड़ितों का नहीं वरन आरोपियों का पक्ष ले कर आपराधिक कृत्य किया था.