(समापन किश्त)
प्यार और गुस्से का भी आपस में गहरा रिश्ता है. 'अमीर' मीनाई उसे इस तरह बयां करते हैं :
उनको आता है प्यार पर गुस्सा
हमको गुस्से पे प्यार आता है.
मियाँ गालिब इश्क पर चुप रहें ,ये हो ही नहीं सकता. बानगी देखिये :
इश्क पर जोर नहीं, है ये वो आतिश 'गालिब'
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने.
मधुशाला के कवि बच्चन जी ने अपने 'एकांत गीत' में कहा :
प्यार तो उसने किया है
प्यार को जिसने छिपाया.
और भी :
प्यार,हाय मानव जीवन की सबसे भारी दुर्बलता है
मेरा जोर नहीं चलता है.
सुदर्शन द्वारा लिखी गयी एक कहानी है- धर्मसूत्र. उसमें वे कहते हैं :
हम जिन्हें प्यार करते हैं उनके बारे में हमें प्रायः भयंकर आशंकाएं ही सताती हैं बेगानों के सम्बन्ध में ऐसे विचार हमारे मन में कभी नहीं आते.
प्रख्यात लेखक गोर्की के उपन्यास 'माँ' का एक वाक्य देखिये :
एक प्रेम ऐसा भी होता है जो मनुष्य के पैर की जंजीर बन जाता है.
कथाकार मार्कंडेय की एक कहानी है - प्रिया सैनी. उसमें वे कहते हैं :
प्रेम का कुछ ऐसा ही बेतुका मर्म है जिसे तर्क और समझ में नहीं बांधा जा सकता.
इस शेर में शायर ने प्रेम का इजहार करने के लिए प्रेयसी से ही मशविरा मांग लिया है. :
इस जज्बए दिल के बारे में ,इक मशविरा आप से लेता हूँ
उस वक्त मुझे क्या लाजिम है जब तुम पै मेरा दिल आ जाए.
डाक्टर भगत सिंह ने अपने शोध प्रबंध 'हिन्दी साहित्य को कूर्मांचल की देन' में प्रेम की व्याख्या कुछ इस तरह से की है :
प्रेम मानव जीवन में सबसे रहस्यमय व्यापार है शायद इसी लिए हजारों काव्य लिखे जा चुकने के बाद भी यह विषय सदैव नया रहता है. साहित्यकार और पाठक दोनों ही इससे नहीं अघाते हैं.वास्तव में प्रेम की दुनिया इतनी विचित्र है, उसका उद्गम और अंत इतना रहस्यमय है कि संसार के महान साहित्यकार भी उसकी पूरी व्याख्या तथा चित्रण नहीं कर पाये हैं.
आवारा मसीहा में विष्णु प्रभाकर प्रेम के प्रतिदान या प्रेम की सफलता को महत्वपूर्ण नहीं मानते.वे प्रेम में समर्पण के महत्व को इस तरह इंगित करते हैं :
क्या एकतरफा प्रेम कम शक्तिशाली होता है ? प्रत्युत्तर न मिलने पर भी क्या प्रेम अपने आप में मधुर नहीं होता ?प्रेम में सफलता ही उसके होने का प्रमाण नहीं है.मन ही मन किसी के लिए अपने को विसर्जित किया जा सकता है.
यशपाल की सुनिए :
अच्छे समझे जाने या प्यार पाने के विश्वास से मस्तिष्क में एक सरूर छा जाता है.
और अब हिन्दी - उर्दू के लोकप्रिय कथाकार कृशन चंदर की रचनाओं से प्रेम के बारे में कहे गए कुछ अंश :
प्रेम की भावना पानी के प्रवाह की तरह होती है.प्रेम को रास्ता दे दो तो वह समाज के खेतों में जज्ब हो जाता है और बच्चों की फसल पैदा करने के काम आता है.रास्ता न दो और बाँध बना कर रोक दो तो पानी की तरह इकठ्ठा हो कर उमड़ता है और बिजली पैदा करता है - वह बिजली जो कभी तो प्रेम करने वालों के घर को ज्योतिर्मय कर देती है और कभी उन्हें जला कर राख कर देती है.(कहानी : आओ मर जाएँ)
शादी के बाद झगड़े इस लिए ज्यादा होते हैं कि दोनों मोटे शीशे के चश्मे लगा कर एक - दूसरे को देखने लगते हैं. थोड़ी सी दूरी रहे, हल्के से प्रेम का धुंधलका रहे तो प्रेम वर्षों सलामत रहता है. निकटता आयी नहीं कि प्रेम गायब.
(आधा रास्ता : उपन्यास)
जब प्रेम ख़त्म हो जाता है तो बदला बेकार हो जाता है. बदला लेने की इच्छा प्रकट करती है कि कहीं पर मोहब्बत की चुभन बाकी है. (आधा रास्ता)
कबीले के प्रेम का एक सिद्धांत था. फ़िर सामंतशाही प्रेम का एक सिद्धांत था और वह कबीले के प्रेम के सिद्धांत से भिन्न था.फ़िर जाति - पाँति के प्रेम का एक नया सिद्धांत बना. आगे शायद इन्सानियत का ज़माना आए जहाँ इससे भी अच्छे प्रकार के पेम का सिद्धांत बनाया जाए. (एक वायलिन समंदर के किनारे : उपन्यास)
अंत में कविवर भवानी प्रसाद मिश्र की पंक्तियाँ उद्धृत करते हुए समाप्त करता हूँ :
कितने भी गहरे रहें गर्त
हर जगह प्यार जा सकता है,
कितना भी भ्रष्ट ज़माना हो
हर समय प्यार भा सकता है,
जो गिरे ह्युए को उठा सके
इस से प्यारा कुछ जतन नहीं,
दे प्यार उठा न पाये जिसे
इतना गहरा कुछ पतन नहीं