सोमवार, 22 दिसंबर 2008

कहानी

मुआवजा
(अन्तिम कड़ी)

शहर का माहौल उन दिनों असमंजसपूर्ण चल रहा था.हादसे में मरने वालों की संख्या रेडियो जहाँ हजार - डेढ़ हजार बता रहा था वहीं समाचार पत्र पाँच से दस हजार के बीच बताते थे.हरी सिंह और देबुली अपने को भाग्यशाली समझते थे कि वे लोग न तो मरे और न अत्यधिक गंभीर रूप से बीमार हुए.इंदर अलबत्ता कुछ ज्यादा परेशान हुआ था और उसे उल्टी भी हुई थी, लेकिन जहाँ हजारों लोग मर गए हों,असंख्य उल्टी और आँखों की जलन के शिकार हो गए हों,वहाँ इतनी छोटी सी तखलीफ़ से छुट्टी मिल जाना खुशकिस्मती ही थी. लेकिन स्वयं इंदर इतना घबरा गया था कि जब 'आपरेशन फेथ' के दौरान हरी सिंह सपरिवार भोपाल छोड़ कर अपने गाँव तक हो आया तो इंदर ने अपनी चाची के दुर्व्यवहार के बावजूद उन्हीं के पास रहने की इच्छा प्रकट की और हरी सिंह इंदर को काफलीगैर ही छोड़ आया.

हरी सिंह जब कभी सपरिवार अपने गाँव जाता तो बचे नाथ को अपने क्वार्टर की जिम्मेदारी सौंप जाता.लेकिन इस बार तो बचे नाथ क्या कोई भी आस पड़ोस में नहीं बचा था.सभी अपने अपने परिचितों - सम्बन्धियों के पास जा चुके थे.इस लिए हरी सिंह जितने दिन अपने गाँव रहा उसे यही चिंता सताती रही कि कहीं उसके क्वार्टर का ताला टूट न जाए और वर्षों की मेहनत से जमी गृहस्थी, जिसमें एक सोफा, गैसचूल्हा,कुकर,एक रेडियो,अलमारी और कुछ स्टील के बर्तन थे,उजड़ न जाए. लेकिन जब लौटने पर उन्हें अपनी गृहस्थी सही सलामत मिली तो हरी सिंह और देबुली ने ईश्वर को धन्यवाद दिया. देबुली ने तो गुफा मन्दिर में प्रसाद चढ़ाने का संकल्प भी कर लिया.

दिन बीतते गए. गैस काण्ड की चर्चा तो होती रहती लेकिन लोगों के दिल से सदमा उतरने लगा था. इधर सरकार ने राहत देने की कवायद शुरू कर दी.मुफ्त राशन दिया जाने लगा.जब पहले महीने हरी सिंह मुफ्त राशन लाया तो देबुली की खुशी का ठिकाना न था और साल के अंत में जब राशन मिलना बंद हुआ तो मायूस हुई थी वह, लेकिन उसने हिसाब लगा लिया था कि अगले तीन - चार महीने और वह जमा राशन से काम चला लेगी. देबुली की खुशी तब और बढ़ी जब शासन की तरफ़ से पन्द्रह सौ रुपये राहत राशि की घोषणा की गयी. इस बीच मुआवजे हेतु क्लेम फॉर्म भरे जाने लगे और जब हरी सिंह पन्द्रह हजार रूपये का क्लेम भर कर आया तो देबुली ने उसकी मोटी बुद्धि पर खूब लानत भेजी. पड़ौसी लोग पचास हज़ार और एक लाख तक का क्लेम लगा आए थे और एक हरी सिंह था कि पन्द्रह हज़ार पर संतोष कर रहा था.

पन्द्रह सौ रूपये भी हरी सिंह को अब तक नहीं मिल पाये थे. इस कारण भी देबुली हरी सिंह से रुष्ट थी.वास्तव में गलती हरी सिंह की ही थी. जब सर्वे हो रहा था तो हरी सिंह ने अपनी आय सात सौ पिचहत्तर रुपये लिखवा दी थी जो उसकी वास्तविक आय थी,जबकि राहत पाने के लिए आय पाँच सौ रूपये होनी चाहिए थी. अंत में इसका भी निराकरण हो गया. देबुली ने ही ख़बर दी -'पन्द्रह सौ रूपये के लिए पुतली घर में फ़िर से नंबर लग रहे हैं बल.जाओ, छुट्टी ले कर नंबर लगा आओ. हाँ इस बार राजा हरिश्चंद्र मत बन जाना. और जब हरी सिंह के पास पन्द्रह सौ रूपये की पर्ची आ गयी तो देबुली ने इसे अपनी बुद्धिमत्ता का प्रसाद माना.

जब पन्द्रह सौ रूपये प्राप्त करना देबुली के दिमाग की उपज थी तो उसका उपयोग करने के लिए भी वह स्वतंत्र थी. बहुत दिनों से देबुली की इच्छा एक टी वी लेने की थी, लेकिन पैसों का जुगाड़ नहीं बन पाता था. अंततः गैस देवी की कृपा से हरी सिंह ने एक टी वी खरीद ही लिया. बुधवार को टी वी आया था और आज सेकंड सेटरडे था. हरी सिंह और देबुली बड़ी प्रसन्नता से टी वी में दिन का कार्यक्रम देख रहे थे. इसी समय तारवाला एक टेलीग्राम दे गया. तार काफलीगैर से था - इंदर की मौत का.

भोपाल से जाने के बाद से ही इंदर सहमा सा रहता . थका - थका बीमार सा रहता. यद्यपि प्रकट में ज्वर आदि नहीं रहता.गाँव में कभी कभार वैद्य जी से दवा ले लेता. एक - दो बार झाड़ फूंक भी की. लेकिन सब व्यर्थ. इंदर बच न सका. हरी सिंह गहरे सोच में डूब गए - कहीं गैस का ही असर तो नहीं ? कहीं हम लोग भी अन्दर से खोखले तो नहीं होते जा रहे ?

रात हुयी . हरी सिंह को नींद नहीं आ रही थी. देबुली को भी. हरी सिंह का दुःख गहराता जा रहा था. देबुली हरी सिंह की दशा देख कर कुछ बोलने का साहस न जुटा पायी,लेकिन सोच रही थी - इंदर को भी गैस लगी थी, कुछ लिखा - पढी करके इंदर का मुआवजा नहीं मिल सकेगा क्या ?

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