मेरी नातिन पहली बार स्कूल गयी। स्कूल जाने के नाम पर वह बहुत खुश थी। उसके माता पिता भी खुश थे। आखिर यह उनकी संतान के जीवन का एक महत्वपूर्ण दिन था। मैंने भी उसे आशीर्वाद दिया- खूब पढ़ना, पढ़ - लिख कर अच्छा इंसान बनाना।
क्या नातिन पढ़ लिख कर एक अच्छा इंसान बनेगी ? क्या बहुत पढ़े लिखे व्यक्ति अच्छे इंसान होते हैं और अनपढ़ नहीं ? आखिर नातिन स्कूल क्यों जा रही है ? इस उम्र में सभी बच्चे स्कूल जाते हैं , इसलिए उसका जाना भी जरूरीहै। यदि नहीं जायेगी तो सरकार खुद आकर उसको स्कूल ले जायेगी। स्कूल जा कर नातिन ए से एप्पल से पढ़ना शुरू करेगी। अ से अनार भी पढेगी। वन, टू और एक दो भी। मुझे पूरा विश्वास है कि कुछ समय बाद उसे ए बी सी डी और वन टू तो याद रहेंगे लेकिन क से ज्ञ तक पूरे व्यंजन क्रम से नहीं बोल पायेगी और उनतिस, उनतालीस का फर्क ट्वेंटीनाइन और थर्टीनाइन बोल कर ही समझ पायेगी। वहाँ उसे सामाजिक अध्ययन पढ़ाया जाएगा। वहाँ उसे पढ़ाया जाएगा- हिन्दू मंदिर में जाते हैं, मुसलमान मस्जिद में जाते हैं, ईसाई चर्च में जाते हैं। नातिन ने केवल मंदिर देखा है। लेकिन उसे नहीं मालूम कि वह हिन्दू है। वह हिन्दू मुसलमान का फर्क करने में कन्फ्यूज हो जायेगी। उसकी माँ को समझाना पड़ेगा - उसकी दोस्त सालेहा मुसलमान है और मस्जिद में जाती है। पड़ोसी का बेटा जार्ज ईसाई है और चर्च में जाता है। धीरे धीरे उसकी समझ में आ जाएगा कि सालेहा और जार्ज भले ही उसके दोस्त हैं और उसे बहुत अच्छे लगते हैं, लेकिन वे विधर्मी हैं। यह ज्ञान उसको उसके घर पर नहीं मिल सकता था। क्योंकि जार्ज और सालेहा के मम्मी पापा से नातिन के मम्मी पापा की अच्छी मित्रता है और इन लोगों का एक दूसरे के घरों में जाना, दावतें करना चलता रहता है।सरकार 'स्कूल चलो' का नारा शायद इसी लिये लगाती है ताकि बच्चों को हिन्दू मुसलमान का फर्क अच्छी तरह समझ में आ जाए।
नातिन कुछ और बड़ी होगी तो उसे किसी फॉर्म में जाति भरने को कहा जाएगा। उसके समझ में आने लगेगा कि सालेहा और जार्ज दूसरे धर्म वाले और वर्षा यादव और सीमा बाकोडे दूसरी जाति वाले हैं। स्कूली पढाई की एक जरूरत तो मेरे समझ में आ गयी - जिस धर्म भेद और जाति भेद को समझने में नातिन को वर्षों लग जाते उसे यह शिक्षा कुछ ही वर्षों में सिखा देगी।
धर्म और जाति का भेद यदि समाज मिटाना या कम करना भी चाहे तो सरकार की नीतियाँ उसे ऐसा नहीं करने देगी। वोट बैंक की राजनीति उसका एक बहुत बड़ा कारण है।
मैं कामना करता हूँ कि नातिन वाली पीढ़ी इस राजनीति को समझ सके और इसका प्रतिकार कर सके।
क्या नातिन पढ़ लिख कर एक अच्छा इंसान बनेगी ? क्या बहुत पढ़े लिखे व्यक्ति अच्छे इंसान होते हैं और अनपढ़ नहीं ? आखिर नातिन स्कूल क्यों जा रही है ? इस उम्र में सभी बच्चे स्कूल जाते हैं , इसलिए उसका जाना भी जरूरीहै। यदि नहीं जायेगी तो सरकार खुद आकर उसको स्कूल ले जायेगी। स्कूल जा कर नातिन ए से एप्पल से पढ़ना शुरू करेगी। अ से अनार भी पढेगी। वन, टू और एक दो भी। मुझे पूरा विश्वास है कि कुछ समय बाद उसे ए बी सी डी और वन टू तो याद रहेंगे लेकिन क से ज्ञ तक पूरे व्यंजन क्रम से नहीं बोल पायेगी और उनतिस, उनतालीस का फर्क ट्वेंटीनाइन और थर्टीनाइन बोल कर ही समझ पायेगी। वहाँ उसे सामाजिक अध्ययन पढ़ाया जाएगा। वहाँ उसे पढ़ाया जाएगा- हिन्दू मंदिर में जाते हैं, मुसलमान मस्जिद में जाते हैं, ईसाई चर्च में जाते हैं। नातिन ने केवल मंदिर देखा है। लेकिन उसे नहीं मालूम कि वह हिन्दू है। वह हिन्दू मुसलमान का फर्क करने में कन्फ्यूज हो जायेगी। उसकी माँ को समझाना पड़ेगा - उसकी दोस्त सालेहा मुसलमान है और मस्जिद में जाती है। पड़ोसी का बेटा जार्ज ईसाई है और चर्च में जाता है। धीरे धीरे उसकी समझ में आ जाएगा कि सालेहा और जार्ज भले ही उसके दोस्त हैं और उसे बहुत अच्छे लगते हैं, लेकिन वे विधर्मी हैं। यह ज्ञान उसको उसके घर पर नहीं मिल सकता था। क्योंकि जार्ज और सालेहा के मम्मी पापा से नातिन के मम्मी पापा की अच्छी मित्रता है और इन लोगों का एक दूसरे के घरों में जाना, दावतें करना चलता रहता है।सरकार 'स्कूल चलो' का नारा शायद इसी लिये लगाती है ताकि बच्चों को हिन्दू मुसलमान का फर्क अच्छी तरह समझ में आ जाए।
नातिन कुछ और बड़ी होगी तो उसे किसी फॉर्म में जाति भरने को कहा जाएगा। उसके समझ में आने लगेगा कि सालेहा और जार्ज दूसरे धर्म वाले और वर्षा यादव और सीमा बाकोडे दूसरी जाति वाले हैं। स्कूली पढाई की एक जरूरत तो मेरे समझ में आ गयी - जिस धर्म भेद और जाति भेद को समझने में नातिन को वर्षों लग जाते उसे यह शिक्षा कुछ ही वर्षों में सिखा देगी।
धर्म और जाति का भेद यदि समाज मिटाना या कम करना भी चाहे तो सरकार की नीतियाँ उसे ऐसा नहीं करने देगी। वोट बैंक की राजनीति उसका एक बहुत बड़ा कारण है।
मैं कामना करता हूँ कि नातिन वाली पीढ़ी इस राजनीति को समझ सके और इसका प्रतिकार कर सके।