गुरुवार, 15 जुलाई 2010

दो फूलों की कहानी


वैसे तो बालकनी में और भी गमले हैं, लेकिन यहाँ मैं केवल दो की कहानी कहूंगा. इनमें से एक गमला सफ़ेद फूल वाला है, जो लगभग बारहों मास फूल देता है, जिन्हें मैं प्रायः नित्य पूजा हेतु तोड़  लिया करता हूँ.इस तरह यह गमला मेरे  लिये एक उपयोगी पौधे वाला गमला है. यह किसी न किसी तरह से मेरी सहायता कर रहा है और लाभ पंहुचा रहा है.इसलिए  मुझे  इससे ज्यादा लगाव होना चाहिए. लेकिन शायद ऐसा है नहीं. यह पौधा नित्य फूल देता है- इसे मैं इसका स्वाभाविक गुण मान लेता हूँ.इसके प्रति कृतज्ञता का भाव मुझमें नहीं है.

दूसरा गमला गुलाब के फूल का है.कुछ वर्ष पूर्व जब मैंने इस गुलाब के पौधे को गमले पर रोपा था और कुछ समय बाद एक सुन्दर गुलाब का फूल खिला था, तो मेरा पूरा परिवार रोमांचित था.तब शायद इसकी सुन्दरता हम लोगों को आकर्षित करती थी. (लगाव का एक कारण सौन्दर्य भी है).आज इस गुलाब में वैसा आकर्षण नहीं है.फूल की गुणवत्ता का ह्रास हुआ है.खिलने के बाद डाली में अधिक टिकता भी नहीं है.अर्थात इसकी उपयोगिता सफ़ेद फूल  के मुकाबले कुछ भी नहीं.लेकिन जब मौसम  आने पर गुलाब के पौधे में कलियाँ आने लगती हैं तो मेरा पूरा परिवार आज भी रोमांचित होता है, एक दूसरे को वह कली दिखाता है जिसमें कुछ दिनों बाद फूल खिलेगा.हमें गुलाब के खिलने की प्रतीक्षा आज भी रहती है.

आखिर क्यों हम , सफ़ेद फूल की अपेक्षा गुलाब के प्रति  अधिक  संवेदनशील हैं. क्या इस लिये कि उसकी सुन्दरता सफ़ेद फूल की अपेक्षा अधिक है, या इसलिए कि गुलाब केवल मौसम पर ही खिलता है और फिर अगले मौसम  पर आने का वादा कर चला जाता है जबकि  सफ़ेद फूल नित्य ही हमारे पास बने रहता है. क्या गुलाब विदेश जा  कर नौकरी करने  वाला बेटा है, जो कभी कभार आकर दिलासा दे जाता है और सफ़ेद फूल पास में रहने वाली संतान जो हर सुख दुःख में काम आती है?