रविवार, 19 जुलाई 2009

प्रिंट मीडिया द्वारा हिन्दी की दुर्दशा

यह ज्ञात तथ्य है कि समाचार पत्र और पत्रकारिता ने अनेक नए शब्द दे कर हिन्दी को समृद्ध किया है. पिछले दिनों अजित वडनेरकर जी के 'शब्दों के सफ़र' में संचार माध्यमों द्वारा प्रयुक्त की जाने वाली हिन्दी के बारे में एक पोस्ट आयी थी. मैंने प्रिंट मीडिया द्वारा वर्तमान में हिन्दी की दुर्दशा किये जाने के बारे में उस पोस्ट पर टिप्पणि दी थी, जो संभवतः तकनीकी कारणों से प्रकाशित नहीं हुई. वही बात मैं इस पोस्ट द्वारा व्यक्त कर रहा हूँ. टी वी चेनलों द्वारा हिन्दी की दुर्दशा तो होती ही है.लेकिन समाचार पत्र और पत्रिकाएँ भी इस बात में पीछे नहीं हैं. 'इंडिया टुडे' और 'आउटलुक' के उच्चारण से यह नहीं लगता कि ये हिन्दी की पत्रिकाएँ हैं.संभवतः अपने अंगरेजी संस्करणों की लोकप्रियता और पहचान को बरकरार रखने के लिए इन्होंने हिन्दी में भी इसी नाम को अपनाया. लेकिन इस तरह से हिन्दी का नुक्सान तो कर ही दिया.

यहाँ मैं हिन्दी समाचार पत्र 'दैनिक भास्कर', जो उसमें छपने वाली एक पंक्ति के अनुसार 'भारत का सबसे बड़ा समाचार पत्र समूह' है, द्वारा की जाने वाली हिन्दी की दुर्दशा का वर्णन कर रहा हूँ. इस पत्र में छपने वाले कॉलम इस प्रकार हैं - 'मानसून वॉच' और 'न्यूज इनबॉक्स'. अन्य नमूने - सिटी अलर्ट,सिटी इन्फो, डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क,मार्केट डिजिट्स,वर्ल्ड स्पोर्ट्स, सिटी स्पोर्ट्स,आदि. गनीमत है की सिटी भास्कर , सिटी प्लस,सिटी हॉट और वूमन भास्कर में वे देवनागरी का प्रयोग कर रहे हैं. 'भास्कर classified' और 'DB स्टार' में तो उन्होंने देवनागरी को भी नहीं बख्शा है.

इस समाचार पत्र के 'एजुकशन भास्कर' पृष्ठ में छपे एक समाचार की हिन्दी पर गौर फरमाइए -
कैरियर के साथ वेलफेयर भी
नए कोर्स और कॉम्बिनेशन तो स्टूडेंट्स को लुभा ही रहे हैं, साथ ही सोशियोलोजी जैसे ट्रेडिशनल सब्जेक्ट भी ढेरों नये जॉब ऑप्शन अवेलेबल करवा रहे हैं.

क्लिष्ट हिन्दी का विरोध किया जाता है. सरल हिन्दी का प्रयोग किया जाना चाहिए. लेकिन यह कैसी हिन्दी है ?