कूर्मांचल में चैत्र का महीना विवाहिता और कुंवारी कन्याओं के लिए विशेष महत्त्व का है. चैत्र माह की संक्रांति को 'फूल देई' का त्यौहार मनाया जाता है. (कूर्मांचल में सौर माह प्रचलित है , जो हर माह की संक्रांति से प्रारंभ होता है.)इस दिन कन्याएं फूल,चावल और गुड़ ले कर मोहल्ले या गाँव के प्रत्येक घर जा कर उनकी देहरी( प्रवेश द्वार) पूजती हैं. और बदले में पैसे और उपहार प्राप्त करती हैं.कन्याओं द्वारा देहरी पूजा जाना शुभ माना जाता है. अनेक लोग अपनी विवाहिता बेटियों से सदैव मायके से विदा होते समय देहरी पुजवाते हैं.
मैं यहाँ चैत्र में विवाहिताओं को दी जाने वाली 'भिटौली' का वर्णन करना चाहता हूँ.'भिटौली' एक ऐसा पर्व है जिसका कूर्मांचल की हर विवाहिता को बेसब्री से इन्तजार रहता है. यह माह अपने मायके वालों से मिलने का माह है. परम्परानुसार भाई अपनी बहन के लिए वस्त्र,पकवान और अन्य उपहार ,जिसे भिटौली कहते हैं, लेकर उसके गाँव जाता है. पुराने समय में जब आवागमन के साधनों का अभाव था(पहाड़ी क्षेत्रों में आज भी आवागमन उतना सुविधाजनक नहीं है ) चैत्र माह विवाहिता के लिए भाई से मिलने की गारेंटी होता था. आज के समय में मिलने जुलने के अन्य मौके उपलब्ध हो गए हैं और भाई बहन केवल पहाड़ी क्षेत्रों में ही नहीं देश-विदेश में निवास कर रहे हैं इस लिए सांकेतिक रूप से भाई बहनों को धन भेज दिया करते हैं.इस माह में घुघूती नाम की एक चिड़िया कूर्मांचल में देखी जाती है, जिसके चहकने से जो ध्वनि उत्पन्न होती है उससे ऐसा लगता है मानो कह रही हो-
भै भुखो मैं सिती, भै भुखो मैं सिती
(भाई भूखा रहा, मैं सोती रही।)
इस सम्बन्ध में एक दंत कथा (लोक कथा) प्रचलित है :एक गाँव में नरिया और देबुली नाम के भाई - बहन रहते थे | उनमें बहुत प्यार था | १५ वर्ष की उम्र में देबुली की शादी हुई ( जो उस समय के अनुसार बहुत बड़ी उम्र थी ) |शादी के बाद भी दोनों को ही एक दूसरे का विछोह सालता रहा | दोनों ही भिटौली के त्यौहार की प्रतीक्षा करने लगे | अंततः समय आने पर नरिया भिटौली की टोकरी सर पर रख कर खुशी - खुशी बहन से मिलने चला | बहन देबुली बहुत दूर ब्याही गयी थी | पैदल चलते - चलते नरिया शुक्रवार की रात को दीदी के गाँव पहुँच पाया | देबुली तब गहरी नींद में सोई थी | थका हुआ नरिया भी देबुली के पैर के पास सो गया | सुबह होने के पहले ही नरिया की नींद टूट गयी | देबुली तब भी सोई थी और नींद में कोई सपना देख कर मुस्कुरा रही थी | अचानक नरिया को ध्यान आया कि सुबह शनिवार हो जायेगा | शनिवार को देबुली के घर जाने के लिये उसकी ईजा ने मना कर रखा था | नरिया ने भिटौली की टोकरी दीदी के पैर के पास रख दी और उसे प्रणाम कर के वापस अपने गाँव चला गया |देबुली सपने में अपने भाई को भिटौली ले कर अपने घर आया हुआ देख रही थी | नींद खुलते ही पैर के पास भिटौली की टोकरी देख कर उसकी बांछें खिल गयीं |वह भाई से मिलने दौड़ती हुई बाहर गयी | लेकिन भाई नहीं मिला | वह पूरी बात समझ गयी |भाई से न मिल पाने के हादसे ने उसके प्राण ले लिये | कहते हैं देबुली मर कर 'घुघुती' बन गयी और चैत के महीने में आज भी गाती है :
मैं यहाँ चैत्र में विवाहिताओं को दी जाने वाली 'भिटौली' का वर्णन करना चाहता हूँ.'भिटौली' एक ऐसा पर्व है जिसका कूर्मांचल की हर विवाहिता को बेसब्री से इन्तजार रहता है. यह माह अपने मायके वालों से मिलने का माह है. परम्परानुसार भाई अपनी बहन के लिए वस्त्र,पकवान और अन्य उपहार ,जिसे भिटौली कहते हैं, लेकर उसके गाँव जाता है. पुराने समय में जब आवागमन के साधनों का अभाव था(पहाड़ी क्षेत्रों में आज भी आवागमन उतना सुविधाजनक नहीं है ) चैत्र माह विवाहिता के लिए भाई से मिलने की गारेंटी होता था. आज के समय में मिलने जुलने के अन्य मौके उपलब्ध हो गए हैं और भाई बहन केवल पहाड़ी क्षेत्रों में ही नहीं देश-विदेश में निवास कर रहे हैं इस लिए सांकेतिक रूप से भाई बहनों को धन भेज दिया करते हैं.इस माह में घुघूती नाम की एक चिड़िया कूर्मांचल में देखी जाती है, जिसके चहकने से जो ध्वनि उत्पन्न होती है उससे ऐसा लगता है मानो कह रही हो-
भै भुखो मैं सिती, भै भुखो मैं सिती
(भाई भूखा रहा, मैं सोती रही।)
इस सम्बन्ध में एक दंत कथा (लोक कथा) प्रचलित है :एक गाँव में नरिया और देबुली नाम के भाई - बहन रहते थे | उनमें बहुत प्यार था | १५ वर्ष की उम्र में देबुली की शादी हुई ( जो उस समय के अनुसार बहुत बड़ी उम्र थी ) |शादी के बाद भी दोनों को ही एक दूसरे का विछोह सालता रहा | दोनों ही भिटौली के त्यौहार की प्रतीक्षा करने लगे | अंततः समय आने पर नरिया भिटौली की टोकरी सर पर रख कर खुशी - खुशी बहन से मिलने चला | बहन देबुली बहुत दूर ब्याही गयी थी | पैदल चलते - चलते नरिया शुक्रवार की रात को दीदी के गाँव पहुँच पाया | देबुली तब गहरी नींद में सोई थी | थका हुआ नरिया भी देबुली के पैर के पास सो गया | सुबह होने के पहले ही नरिया की नींद टूट गयी | देबुली तब भी सोई थी और नींद में कोई सपना देख कर मुस्कुरा रही थी | अचानक नरिया को ध्यान आया कि सुबह शनिवार हो जायेगा | शनिवार को देबुली के घर जाने के लिये उसकी ईजा ने मना कर रखा था | नरिया ने भिटौली की टोकरी दीदी के पैर के पास रख दी और उसे प्रणाम कर के वापस अपने गाँव चला गया |देबुली सपने में अपने भाई को भिटौली ले कर अपने घर आया हुआ देख रही थी | नींद खुलते ही पैर के पास भिटौली की टोकरी देख कर उसकी बांछें खिल गयीं |वह भाई से मिलने दौड़ती हुई बाहर गयी | लेकिन भाई नहीं मिला | वह पूरी बात समझ गयी |भाई से न मिल पाने के हादसे ने उसके प्राण ले लिये | कहते हैं देबुली मर कर 'घुघुती' बन गयी और चैत के महीने में आज भी गाती है :
भै भुखो मैं सिती, भै भुखो मैं सिती