भोपाल गैस त्रासदी के बारे में हम वह सब कुछ जान रहे हैं, जो हमारी जानकारी के स्रोत (मीडिया) हमें बता रहे हैं। स्पष्ट हो चुका है कि प्रकरण को हल्का करने, हाथ आये आरोपी एंडरसन को देश से बाहर भगाने और हत्यारे यूनियनकार्बाइड को राहत पहुंचाने की कोशिश तत्कालीन सत्तासीन नेताओं एवं अधिकारियों ने की। गैस पीड़ितों की लड़ाई लड़ने वाले संगठन और स्वयं पीड़ितों के लिये भी उस समय आरोपियों को सजा दिलाने से अधिक महत्वपूर्ण कार्य
मुआवजा प्राप्त करना था । २६ साल बाद आये फैसले से पीड़ितों सहित सभी स्तब्ध और क्षुब्ध हैं, ठगे से हैं। लेकिन लाचार हैं। ईश्वर भी या तो 'यदा यदा हि धर्मस्य
ग्लानिर्भवति....' का वादा भूल गए हैं या इससे भी बड़ी 'धर्म की हानि 'की प्रतीक्षा कर रहे हैं।तो अब मनुष्य क्या करे ? मेरे मतानुसार अब यह किया जा सकता है:-
१- गैस त्रासदी के समय संबंधित जिम्मेदार अधिकारियों, सत्तासीन नेताओं के विरुद्ध विशेष अदालत में प्रकरण चला कर उनकी गैर जिम्मेदाराना हरकत के लिये दण्डित किया जाय और इस गैर जिम्मेदारी की सजा मृत्युदंड ( यदि क़ानून में व्यवस्था न हो तो क़ानून में संशोधन किया जाए ) तक हो।
२- वे सारे उत्पाद जिनसे यूनियन कार्बाइड का सम्बन्ध हो (जैसे एवेरेडी सेल)भारत में प्रतिबंधित हों। भ्रष्ट अधिकारियों और नेताओं से यह आशा नहीं की जा सकती कि वे ऐसा करेंगे , क्योंकि वे आसानी से खरीदे जा सकते हैं। इसलिए स्वयंसेवी संगठन लोगों को कार्बाइड के उत्पादों की सूची उपलब्ध करायें और उन्हें प्रेरित करें कि वे इन उत्पादों को न खरीदें। (यह कार्य त्रासदी के तुरंत बाद ही किया जाना चाहिए था)
उपरोक्त कदमों के लिये सरकार पर भरोसा नहीं किया जा सकता। इसलिए इस हेतु दबाव डालने का काम भी स्वयंसेवी संगठन ही कर सकते हैं।
एक बात और गौर करने लायक है। इस प्रकार का फैसला किसी धार्मिक घटना को लेकर आया होता तो अब तक बवाल मच गया होता (याद कीजिये शाहबानो प्रकरण)। लेकिन इस बात पर भी गौर किया जाना चाहिए कि यदि इस फैसले सरीखे प्रकरण बार बार होते रहे तो जनता फैसला अपने हाथ में लेना शुरू कर सकती है और एक दूसरे प्रकार का नक्सलवाद पनप सकता है, जो प्रारम्भ में तो कसूरवार के प्रति होता है लेकिन बाद में बेकसूर भी उसके निशाने पर आते हैं और अराजकता बढ़ती है।