शुक्रवार, 27 मई 2011

क्या मंदिर और भागवत कथा चोरी की शिक्षा देते हैं ?

तिवारी जी एक संभ्रांत, सज्जन व्यक्ति हैं | लोगों के सुख दुःख में हमेशा शामिल पाए जाते हैं |आस - पड़ोस और पर्यावरण के प्रति अपने उत्तरदायित्व के प्रति भी सजग हैं | धार्मिक प्रवृति के भी हैं |कुल मिला कर उन्हें एक नेक इंसान की संज्ञा दी जा सकती है | एक बार उन्हें प्रवास पर जाना था | सोचा, स्टेशन जाते हुए बीच में पड़ने वाले साईँ बाबा मंदिर में दर्शन करते हुए चलें |जैसे ही दर्शन करके बाहर निकले तिवारी जी के जूते नदारद थे |तिवारी जी दुविधा में पड़ गए |उनकी गाड़ी छूटने का समय होने जा रहा था |घर वापस जाने का समय भी नहीं था |किसी दुकान से नए जूते खरीदने का समय भी नहीं था | तिवारी जी को जो सूझा वह यह था कि पास में ही पड़े हुए उनकी नाप के किसी अन्य व्यक्ति के जूते पहन लिये जाएँ |तिवारी जी ने यही किया | हालांकि समय मिलते ही उन्होंने नए जूते खरीद लिये और किसी अन्य व्यक्ति के जूतों से छुटकारा पा लिया |

इसी प्रकार एक अन्य घटनाक्रम में तिवारी जी की बेटी, जो एक प्रतिष्ठित पद पर नौकरी करती है, भागवत कथा सुनने गई | जब कथा-भवन से बाहर निकली तो उसकी चप्पल गायब थी |उसको चप्पल खोजते देख एक संभ्रांत बुजुर्ग बोले - 'बेटी ! लगता है चप्पल खो गयी |कोई भी चप्पल पहन लो |' बिटिया को राय पासन्द आयी और बिटिया किसी अन्य की चप्पल पहन कर सीधे मार्केट गयी और वह चप्पल दुकान पर ही छोड़ कर नयी चप्पल खरीद लाई |

क्या तिवारीजी और उनकी बिटिया चोर हैं ?