गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009

आगामी चुनाव हेतु मेरी भविष्यवाणी

लोक सभा चुनाव सन्निकट हैं. मई माह में नयी लोकसभा का गठन हो जायेगा.कौन जीतेगा कौन हारेगा इस की भविष्यवाणी कोई नहीं कर सकता. हाँ एक भविष्यवाणी मैं अवश्य कर सकता हूँ, वह है चुनाव विश्लेषक और स्तम्भ लेखकों के सम्बन्ध में. वे लोग हमेशा की तरह अवश्य अलापेंगे कि मतदाता परिपक्व हो चुका है. अब मतदाता को बरगलाया नहीं जा सकता. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की वाहवाही की जायेगी.

हमारे बुद्धिजीवियों के इस आलाप पर मुझे ऐतराज है. आज भी मतदाता व्यक्ति की योग्यता के बजाय जाति, सम्प्रदाय, व्यक्तिगत स्वार्थ के आधार पर,नोट के बदले या डर कर वोट देता है. यदि ऐसा न होता तो राजनीतिक दल इन्हीं आधारों पर टिकट न बांटते. यदि ऐसा न होता तो मन मोहन सिंह चुनाव न हारते. यदि ऐसा न होता तो चुनाव के लिए ऐसे मुद्दों को न तलाशा जाता जो मतदाताओं को लुभा सकें. और यदि मतदाता लुभावे में आ जाता है तो वह परिपक्व कैसा ?

ठीक इसी तरह मुझे इस बात पर भी ऐतराज है कि दुनिया के सबसे बड़े इस लोकतंत्र को भी परिपक्व बताया जाता है. मैं समझता हूँ कि परिपक्व लोकतंत्र की यह निशानी नहीं है कि किसी विमान उड़ाते पायलट को नीचे उतार कर सीधे प्रधान मंत्री की गद्दी पर बिठा दिया जाय. किसी गृहणी को चूल्हे से उठा कर मुख्यमंत्री बना दिया जाए.हमारी लोक सभा के अनेकों सांसद अपने आचरण से यह प्रकट नहीं होने देते कि वे परिपक्व लोकतंत्र की लोक सभा के सांसद हैं. मैं समझता हूँ कि हमारा तंत्र लोक की चिंता ठीक प्रकार से नहीं कर रहा है इसलिए परिपक्व लोकतंत्र कहलाने का हकदार नहीं है. मैं कामना करता हूँ कि विश्व का सबसे बड़ा यह लोक तंत्र परिपक्व बने.