मंगलवार, 16 दिसंबर 2008

कहानी



मुआवजा

रात के डेढ़ - दो बजे, जब इंदर गहरी नींद में सो रहा था और सोते हुए मुस्कुरा रहा था (शायद वह यूनियन कार्बाइड में अपनी नौकरी लग जाने पर मिलने वाली खुशी के सपने देख रहा था ) ,हरी सिंह की नींद दरवाजे में पड़ी जोरदार थापों और बचे नाथ की आवाज़ - हरदा ,अबे हरदा उठ ; बोजी,ओ बोजी की आवाज़ से बमुश्किल टूटी.उसने बेखबर सोयी देबुली को जगा कर सचेत किया और लाइट जला कर दरवाजा खोलने को बढ़ा.'बचे नाथ की बीबी को पीड़ उठने लगी है शायद ' हरी सिंह ने सोचा. उसे नौवां महीना चल रहा था.
दरवाजा खोलने पर पता चला बचे नाथ के साथ छोटेलाल भी खडा था . 'जल्दी से अपना सिलेंडर चैक कर' बचे नाथ बिना किसी भूमिका के खांसते खांसते हड़बड़ाये स्वर में बोला.दरवाजा खोलते ही गैस का एक भभका सा हरी सिंह ने भी महसूस किया.गैस लीकेज की आशंका से मन ही मन देबुली को गाली देते हुए वह गैस सिलेंडर की ओर बढ़ा. सिलेंडर ऑफ़ था.चूल्हे की नॉब भी बंद थी.उसने राहत की साँस ली.'यार बचदा गैस तो बंद है लेकिन स्साली बास आ रही है.'वह बोला. अब तक छोटे लाल और बचे नाथ कालोनी के सभी क्वार्टरों के सिलेंडर चैक करा चुके थे.उनकी आँखों से बेतहाशा पानी आ रहा था और जलन हो रही थी.तभी सायरन की तेज आवाज सुनाई दी. 'ओ हो यूनियन कार्बाइड में फ़िर आग लग गयी होगी.'छोटेलाल ने कहा.पहले भी वहाँ एक - दो दुर्घटनाएं हो चुकी थीं.कोई तेजाब का टैंक जल गया होगा उसी की गैस फ़ैल गयी है- हरी सिंह ने अनुमान लगाया. इसी बीच आस पास सड़क पर दौड़ने-भागने-खाँसने की आवाजें आने लगीं. बहुत से लोग शायद सड़क पर निकल आए थे. छोटेलाल खाँसते खाँसते अपने क्वार्टर की तरफ बढ़ा.देबुली ने बचे नाथ और हरी सिंह को भीतर बुला कर दरवाजा बंद कर लिया.दरवाजा खोलने से गैस का तीखापन कमरे में घुस आया था और बचे नाथ,हरी सिंह,देबुली सभी दम घुटा सा महसूस करने लगे. इंदर भी उठ चुका था. खाँस खाँस कर उसके बुरे हाल थे. आख़िर उल्टी हो जाने पर ही उसे राहत मिली. उस ठण्ड में हरी सिंह ने पंखा फुल पर चला दिया. बचे नाथ और हरी सिंह किन्कर्तव्यविमूढ़ से मंत्रणा कर रहे थे - बाहर जाएँ या न जाएँ. कहीं कमरे में ही दम न घुट जाए. अंत में दोनों ने तय किया कि बाहर जाने से बेहतर भगवान भरोसे रह कर बच्चों के साथ अपने अपने क्वार्टरों में ही रहा जाए. बचे नाथ ने अपने क्वार्टर जाना चाहा. हरी सिंह ने बचे नाथ के लिए दरवाजा खोला तो इस बार गैस का भभका कम मालूम पड़ा. थोड़ी देर में बाहर कुछ लोगों की चर्चा से आभास हुआ कि गैस का असर कम हो चुका है.हरी सिंह ने खिड़की - दरवाज़े खोल दिए. दिसम्बर की उस ठण्ड की रात में उन्हें हवा के झोंकों और फुल पर चल रहे पंखे से राहत महसूस हुई.(क्रमशः)