मेरी सवा साल की नातिन हमेशा खुश रहती है. उसकी खुशी, खिलखिलाहट, चंचलता और शैतानियाँ मुझे भी खुश कर देती हैं. मैं सोचता हूँ - मेरी नातिन की खुशी का राज क्या है ? क्या मेरी नातिन को मेरी तरह कोई तनाव नहीं है ? - है. जब उसको किसी शैतानी करने से रोका जाता है तो वह खीझ जाती है. तब या तो वह उस शैतानी को भूल किसी दूसरी शैतानी मैं व्यस्त हो जाती है या जोर जोर से रो- चिल्ला कर अपना रोष व्यक्त करने लगती है. अर्थात उसने अपने तनाव दूर करने के रास्ते खोज रखे हैं - या तो भूल जाओ कि कोई तनाव पैदा करने वाला कारण भी है या अपना रोष खुल कर प्रकट कर दो.
मैं अपने से तुलना करता हूँ - मैं अपने सारे तनाव अपने पास ही रखता हूँ. किसी एक को भी भूल नहीं पाता और न ही उन तनावों के खिलाफ खुल कर अपना गुस्सा निकाल पाता हूँ. ज्ञानदत्त पाण्डेय जी द्वारा बताया गया नुस्खा मुझे रास नहीं आया. नातिन के खुश रहने का दूसरा कारण छोटी-छोटी बातों में खुशी ढूंढ लेना है. जब डोर बेल बजती है, वह दरवाजे की ओर इशारा कर के और 'वो' शब्द का उच्चारण कर के बताती है- कोई आया है. दरवाजा खोलने पर जब उसके पापा खड़े मिलते हैं तो उसके चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ जाती है. उनके हाथ से हेलमेट ले कर टेबल तक पहुंचाने और उसके बाद उनकी गोद में जाना भी उसकी खुशी का एक स्रोत है.उसको जब दो नन्हीं चूडियाँ पहनाई जाती हैं. वह खुश हो जाती है और हाथ नचा नचा के.'चूई' 'चूई' बोलती हुई अपनी चूड़ियाँ दिखाती है.
क्या मेरे पास नातिन की तरह खुश होने के छोटे छोटे कारण नहीं हैं ?- हैं. मुझे सब कुछ भूल कर खुश होना चाहिए जब मेरी बालकनी में चिड़िया आकर फुदकने लगती है, जब बारिश की बूँदें रिमझिम कर मुझे भिगोने लगती हैं, जब पत्नी के साथ बैठ कर सुकून से चाय की चुस्की ले रहा होता हूँ या परिवार के साथ बैठ कर भोजन कर रहा होता हूँ. लेकिन शायद उस समय भी मेरे मस्तिष्क में मायकल जैक्सन की मौत, रेल बजट या कार्यस्थल के तनावों को लेकर ऊहापोह चल रही होती है.
तो क्या मैं इस लिए खुश नहीं हो सकता क्योंकि मैं बच्चा नहीं बन सकता ? तभी मेरी नातिन अपनी शैतानियों के क्रम में मंदिर से श्रीमद्भग्वद्गीता का गुटका उठा कर ले आती है, मानो कह रही हो - नानाजी आपकी खुशियों का राज इसमें छुपा है.