कुशाग्र ११ साल का एक बच्चा है. वह छठी कक्षा में पढ़ता है. उसकी दादी का देहावसान ८८-८९ साल की पूरी आयु में हुआ. उसकी दादी की मृत्यु के तीसरे दिन,जब घर में सम्वेदना जताने वाले लोगों और मेहमानों का तांता लगा था और पढाई का कतई माहौल नहीं था, मैंने उसे एक कापी में कुछ लिखते हुए पाया. जिज्ञासावश मैंने उसके पास जा कर देखा कि आख़िर वह ऐसी विषम स्थिति में कौन सा विषय पढ़ रहा है. वास्तव में वह अपने मन के उद्गार कविता द्वारा प्रकट कर रहा था. मुझे उसकी सम्वेदना, काव्य प्रतिभा और शब्द रचना ने प्रभावित किया. प्रस्तुत है ११ वर्षीय कुशाग्र की रचना :
तोहफे सी मिली थी,
कमल जैसी खिली थी
वह मेरे अपने लिए,
हर चीज़ से बड़ी थी
पाला उसने मुझको ,
जैसे उसका दुलारा
लोरी सुना सुलाती,
कहती तू है प्यारा
मैं उससे बतियाता
वह मुझसे खुश होती
मैं यदि दुःख बतलाता
तो वह ख़ुद से रोती.
भले तुझे हो कष्ट
मुझको सदा बचाया
हर पल तूने बढ़कर
कर्तव्य को निभाया.
मुझे नहीं ये ज्ञान था
होगा अब कुछ ऐसा
हे भगवन यह तूने
कर डाला है कैसा
पंख लगाए तूने
चिड़िया सम उड़ चली
करूंगा पूरे सपने
जो तू देखकर उड़ पड़ी .