बुधवार, 3 दिसंबर 2008

कहानी

(-३दिसम्बर ८४ की रात, उस समय भोपाल शहर में रहने वाले कभी नहीं भूल सकते. प्रस्तुत है उसी घटना को आधार बना कर ८५ - ८६ में लिखी यह कहानी)




मुआवजा










हरी सिंह जितनी गहरी नींद सोता था,उसकी पत्नी देबुली की नींद उससे अधिक गहरी होती थी. ठण्ड की उस रात दोनों ही निश्चिंत हो गहरी नीद में थे . पास ही भांजा इंदर भी उसी बेफिक्री से सो रहा था .पाँच दिन पहले ही आया था इंदर अपने गाँव काफलीगैर से . हरी सिंह को आशा थी कि वह इंदर को कहीं कहीं नौकरी से चिपका देने में सफल हो जायेगा .अनाथ इंदर की अपने गाँव में अपने ही चाचा के यहाँ दुर्गत हो रही थी . इसी लिए उसने इंदर को अपने पास भोपाल बुला लिया था .

इंदर जीवन में पहली बार अपने गाँव से बाहर आया था .आश्चर्य-विस्फरित थे उसके नेत्र एक नयी दुनिया देख कर .मात्र दो पटरियों पर इतनी बड़ी रेलगाडी को चलते देखना एक अचम्भा था . मीलों लंबे खेत भी उसने पहली बार देखे थे . वह मनसूबे बनाने लगा था - जब गाँव लौटेगा तो अपने दोस्त रमुआ और शेरुआ से किस प्रकार अपने अनुभव बांटेगा .





इंदर को वर्षों बाद देख कर हरी सिंह खुश ही हुआ था. हरी सिंह की घरवाली देबुली अलबत्ता मन में विचार करने लगी थी कि अब इंदर का भार हम पर गया क्योंकि इंदर का छोटा मामा तो गाँव की छोटी सी खेती और छोटी - मोटी मजदूरी पर निर्भर था और कमाई से ज्यादा पी जाता था . उससे इंदर का दायित्व संभालने की अपेक्षा करना मूर्खता थी .




इन पाँच दिनों में इंदर ने भोपाल के तीन स्थान देख पाये थे - मामी के साथ गुफा मन्दिर, पड़ोसी बचे नाथ के लड़के सुरेन्द्र के साथ बड़ा तालाब और खड़क सिंह के साथ यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री.खड़क सिंह यूनियन कार्बाइड में ड्रायवर था और उसने इंदर को फैक्ट्री में डेली वेजेज में लगाने का आश्वासन दे दिया था. फैक्ट्री देखने के बाद इंदर के मन में अजीब सी गुदगुदी हुई थी.वह सोचने लगा नौकरी में लगने के बाद वह जल्दी ही छुट्टी लेकर अपने गाँव जायेगा और रमुआ और शेरुआ को दिखा देगा कि वह क्या से क्या हो गया है. चाचा - चाची यद्यपि उसके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते थे, लेकिन गाँव जाने की कल्पना में वह उनके प्रति सारी दुर्भावना भुला चुका था और कका के लिए कुरता - पायजामा और चाची के लिए लाल फूलों के प्रिंट वाली साड़ी ले जाने के मनसूबे बनाने लगा था. लेकिन कका की छोटी लडकी रूपा के लिए वह क्या ले जायेगा - यह निश्चय नहीं कर पा रहा था.उस रात यही सब सोचते वह सोया था और रात भर सपने में भी वह कभी अपने को कार्बाइड की बड़ी - बड़ी टंकियों के पास खडा पाता, कभी . ट्रेन में साफ़ सुथरे पैंट - कमीज पहने आंखों में धूप का चश्मा लगाए वापस गाँव जाता हुआ और कभी गाँव में रमुआ - शेरुआ के बीच अपने अनुभवों की डींग हांकता. (क्रमशः)