चेतन भगत युवाओं के लिए एक जाना पहचाना नाम है, अंग्रेजी में लिखे उनके तीनों उपन्यास भारतीय युवाओं ने काफी पसंद किये. आज कल वे अखबारों में लेख लिख कर भी कृषि और रक्षा सहित देश की अनेक समस्याओं पर अपनी राय देने लगे हैं. वे स्वयं आई आई टी और आई आई एम के पढ़े हैं इसलिए मैं शिक्षा के सम्बन्ध में दिए गए उनके विचारों के सम्बन्ध में बात करूंगा.
अपने उपन्यास 'फाइव पॉइंट समवन' में उन्होंने देश के सबसे अधिक प्रतिष्ठित इनजीनिअरींग संस्थान आई आई टी में पढ़ रहे कम अंक (जिसे आई आई टी में पॉइंटर कहा जाता है) पाने वाले छात्रों को ले कर उनकी मनःस्थिति का वर्णन किया है.उनके अनुसार आई आई टी जैसे संस्थान भी केवल बंधे बंधाए ढर्रे से चल रहे हैं. वहाँ भी छात्रों में कुछ मौलिक करने, मौलिक सोचने का माद्दा पैदा नहीं हो पाता. कुछ दिनों पहले 'हिनुस्तान टाइम्स' में छपी उनकी पहली कहानी का पात्र हायर सेकंडरी में ९२ % अंक प्राप्त करने के बाद भी दिल्ली के टॉप कहे जाने वाले कालेज में दाखिला नहीं ले पाता क्योंकि वहाँ कट ऑफ ९५ % पहुँच जाता है.इससे व्यथित हो वह आत्महत्या करने का विचार करने लगता है. इससे पहले उन्होंने एक लेख में इंगित किया था कि सरकार स्टील और कोयला जैसी जिंसों के व्यापार में लिप्त न रह कर शिक्षा की तरफ ध्यान दे. उनके अनुसार आज भी इतने अधिक और अच्छे शिक्षा संस्थान नहीं हैं कि बड़ी तादाद में आने वाले प्रतिभावान छात्रों को आसानी से दाखिला मिल जावे.
वास्तव में स्कूली बच्चों के बस्ते का बोझ कम करने से लेकर परीक्षाएं समाप्त कर ग्रेडिंग सिस्टम लागू करने तक की अनेक बहसें जब तब चलती रहती हैं.गरीब बच्चों के लिए दोपहर भोजन की व्यवस्था शुरू हो ही गयी है. अभी अभी शिक्षा विधेयक लाया गया है जो कानून बनने की तैयारी कर रहा है.लेकिन इन सारे प्रयत्नों के बावजूद शिक्षा संबन्धी सुधार नहीं हो पा रहे हैं. आज के बच्चे का बचपन काफी कुछ आज की शिक्षा ने ही छीना है.होम वर्क और कोचिंग उसे पूरा दिन पढाई में ही व्यस्त रखते हैं. मनोरंजन केवल टी वी के ऊलजलूल कार्यक्रमों और कम्पयूटर गेम्स तक सीमित रह गया है.
आज शिक्षा और स्वास्थ सुविधाओं का पूरी तरह व्यवसायीकरण हो चुका है. गरीब के लिए अच्छे स्कूल में पढ़ना या अच्छे अस्पताल में इलाज करवाना असंभव हो गया है. संभवतः चेतन भगत ठीक कहते हैं. सरकार को उद्योग और होटल चलाने की अपेक्षा शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा को बेहतर और सर्वसुलभ बनाने की ओर अधिक ध्यान देना चाहिए.यदि पब्लिक सेक्टर के बैंक और उद्योग प्राइवेट सेक्टर से प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं तो सरकारी स्कूल और अस्पताल क्यों नहीं ?