बुधवार, 31 दिसंबर 2008

प्रिये कहो ना..........

तुमने मेरे उर की सूनी वीणा को झंकृत कर डाला
तुमने मेरे मन की ऊसर बगिया को सिंचित कर डाला.
तुमने ही तो मुझ मूरख को सरस प्रेम का पाठ पढ़ाया
फ़िर क्यों छीन लिया मुझसे,तुमने यह प्याला, ओ मधुबाला.

मैं तो तट पर बैठा,सागर की लहरों को ही गिनता था
उन लहरों में खो कर मैं अपने प्रिय को देखा करता था
तुमने पार लगाने का कह, मुझको नैया पर बिठलाया
फ़िर क्यों आज डुबोया मुझको, मैं क्या तेरा अरि लगता था?

मैं डूबा हूँ, तुम उतराते, जाओ पैरो, पार लगो ना
मेरा तो अब ह्रास हुआ है, जाओ मुझसे दूर, बचो ना.
किंतु सोचता हूँ यह मन में, तुम सुख से रह पाओगे क्या?
पछताओगे नहीं कभी क्या, इस करनी पर प्रिये, कहो ना.