बुधवार, 29 अक्टूबर 2008

दोहे




दीवाली की धूम है , सजे धजे बाज़ार
बनिया मक्खी मार रहा, चोर करे व्यापार

दीवाली की हाट में , खूब चला व्यापार
झूठ नगद में बिक रहा, सच्चा बिके उधार

शेयर गिरे धड़ाम से , हो गयी हाहाकार
अरब रुपै के मालिक थे, पाये कुछेक हजार

बीबी घर में पिस रही, मना रही त्यौहार
शौहर जेवर ले गया , गया जुआरी हार

खूब पटाखे फोड़ रहे , बच्चे हैं गुलजार
पापा मन में सोच रहे , कैसे चुके उधार

दरवाजा जगमग हुआ , जगमग है संसार
घर में देखा झाँक कर,पसर रहा अंधियार

धन की देवी दे रही, सब को प्रिय उपहार
एक झपट कर ले रहा , दूजा है लाचार

आओ कुछ ऐसा करें , ऐसा हो संसार
जिसका जैसा हक़ बने,पाये उस अनुसार


तभी बनेगी दीवाली जन - जन का त्यौहार
लाभ मिलेगा सब जन को,शुभ होगा व्यवहार