दोहे
दीवाली की धूम है , सजे धजे बाज़ार
बनिया मक्खी मार रहा, चोर करे व्यापार
दीवाली की हाट में , खूब चला व्यापार
झूठ नगद में बिक रहा, सच्चा बिके उधार
शेयर गिरे धड़ाम से , हो गयी हाहाकार
अरब रुपै के मालिक थे, पाये कुछेक हजार
बीबी घर में पिस रही, मना रही त्यौहार
शौहर जेवर ले गया , गया जुआरी हार
खूब पटाखे फोड़ रहे , बच्चे हैं गुलजार
पापा मन में सोच रहे , कैसे चुके उधार
दरवाजा जगमग हुआ , जगमग है संसार
घर में देखा झाँक कर,पसर रहा अंधियार
धन की देवी दे रही, सब को प्रिय उपहार
एक झपट कर ले रहा , दूजा है लाचार
आओ कुछ ऐसा करें , ऐसा हो संसार
जिसका जैसा हक़ बने,पाये उस अनुसार
तभी बनेगी दीवाली जन - जन का त्यौहार
लाभ मिलेगा सब जन को,शुभ होगा व्यवहार
हेम दाज्यू, बहुत सही लिखा है आपने, अंत की ४ लाईना बहुत कुछ कह देती हैं। आप अपना ब्लोग ब्लोगवाणी, चिट्ठाजगत और नारद में रजिस्टर करवा लें।
जवाब देंहटाएंआ कर के इस ब्लाग पर मन में हुआ उछाह.
जवाब देंहटाएंअभिव्यक्ति-नव रूप में प्राप्त करे नव राह.
हेमजी, बहुत बढ़िया दोहे लिखे हैं. मन रमा रहा।
जवाब देंहटाएंसफर पर आने का शुक्रिया। हमें भी यहां आकर अच्छा लगा.
sir ji , aapke dohe bahut pasand aaye .. aapke comments ke liye dhanyawad.
जवाब देंहटाएंvijay