गुरुवार, 20 अगस्त 2009

चेतन भगत ठीक कहते हैं

चेतन भगत युवाओं के लिए एक जाना पहचाना नाम है, अंग्रेजी में लिखे उनके तीनों उपन्यास भारतीय युवाओं ने काफी पसंद किये. आज कल वे अखबारों में लेख लिख कर भी कृषि और रक्षा सहित देश की अनेक समस्याओं पर अपनी राय देने लगे हैं. वे स्वयं आई आई टी और आई आई एम के पढ़े हैं इसलिए मैं शिक्षा के सम्बन्ध में दिए गए उनके विचारों के सम्बन्ध में बात करूंगा.

अपने उपन्यास 'फाइव पॉइंट समवन' में उन्होंने देश के सबसे अधिक प्रतिष्ठित इनजीनिअरींग संस्थान आई आई टी में पढ़ रहे कम अंक (जिसे आई आई टी में पॉइंटर कहा जाता है) पाने वाले छात्रों को ले कर उनकी मनःस्थिति का वर्णन किया है.उनके अनुसार आई आई टी जैसे संस्थान भी केवल बंधे बंधाए ढर्रे से चल रहे हैं. वहाँ भी छात्रों में कुछ मौलिक करने, मौलिक सोचने का माद्दा पैदा नहीं हो पाता. कुछ दिनों पहले 'हिनुस्तान टाइम्स' में छपी उनकी पहली कहानी का पात्र हायर सेकंडरी में ९२ % अंक प्राप्त करने के बाद भी दिल्ली के टॉप कहे जाने वाले कालेज में दाखिला नहीं ले पाता क्योंकि वहाँ कट ऑफ ९५ % पहुँच जाता है.इससे व्यथित हो वह आत्महत्या करने का विचार करने लगता है. इससे पहले उन्होंने एक लेख में इंगित किया था कि सरकार स्टील और कोयला जैसी जिंसों के व्यापार में लिप्त न रह कर शिक्षा की तरफ ध्यान दे. उनके अनुसार आज भी इतने अधिक और अच्छे शिक्षा संस्थान नहीं हैं कि बड़ी तादाद में आने वाले प्रतिभावान छात्रों को आसानी से दाखिला मिल जावे.

वास्तव में स्कूली बच्चों के बस्ते का बोझ कम करने से लेकर परीक्षाएं समाप्त कर ग्रेडिंग सिस्टम लागू करने तक की अनेक बहसें जब तब चलती रहती हैं.गरीब बच्चों के लिए दोपहर भोजन की व्यवस्था शुरू हो ही गयी है. अभी अभी शिक्षा विधेयक लाया गया है जो कानून बनने की तैयारी कर रहा है.लेकिन इन सारे प्रयत्नों के बावजूद शिक्षा संबन्धी सुधार नहीं हो पा रहे हैं. आज के बच्चे का बचपन काफी कुछ आज की शिक्षा ने ही छीना है.होम वर्क और कोचिंग उसे पूरा दिन पढाई में ही व्यस्त रखते हैं. मनोरंजन केवल टी वी के ऊलजलूल कार्यक्रमों और कम्पयूटर गेम्स तक सीमित रह गया है.

आज शिक्षा और स्वास्थ सुविधाओं का पूरी तरह व्यवसायीकरण हो चुका है. गरीब के लिए अच्छे स्कूल में पढ़ना या अच्छे अस्पताल में इलाज करवाना असंभव हो गया है. संभवतः चेतन भगत ठीक कहते हैं. सरकार को उद्योग और होटल चलाने की अपेक्षा शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा को बेहतर और सर्वसुलभ बनाने की ओर अधिक ध्यान देना चाहिए.यदि पब्लिक सेक्टर के बैंक और उद्योग प्राइवेट सेक्टर से प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं तो सरकारी स्कूल और अस्पताल क्यों नहीं ?

17 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय हेम जी,

    श्री चेतन भगत जी को बात बड़ी ही प्रभावी ढंग से रखा है और साथ यह कहना कि " यदि पब्लिक सेक्टर के बैंक और उद्योग प्राइवेट सेक्टर से प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं तो सरकारी स्कूल और अस्पताल क्यों नहीं ? " एक आशा जगाता है कि हमारे दिन फिरसे बदलें।

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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  2. सरकारी स्कूल की तो बात छोडिये, सरकार जो इंडस्ट्री चला रही है वो भी प्र्तिस्पर्धामें नहीं चला पा रही, फिर स्कूल तो गैर व्यवसाई संसथान है. सरकार को चाहिए की हर सरकारी डिपार्टमेंट को प्राइवेट कंपनी की तरह चलाये, हाँ, माप दंड सरकार तय कर सकती है .......... और वो नियम प्राइवेट और सरकारी, सब संस्थानों पर लागो होने चाहियें ..... स्ट्रिक्टली...........

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  3. आपका कथन बिलकुल सही है जब तक शिक्षा ko जीवन की सचइयो से नही जोड़ा जायगा
    समाज के वर्गों में दुरिया बढती ही जावेगी |

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  4. chetan bhagat kee yogyata par mujhe koi sandheh nahi... unke vichaar, lekh aur kahaniyaan bhi utkrishta hai... maine unki tino novel padhi hai... par ek baat jo mujhe khalti hai unke har novel mein sex ka tadka hona...
    baki unhe aur aapko dono ko badhayi dena chahta hun.. achhe prayaas ke liye...

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  5. इसलिए सरकार में ऐसे लोगो का जुड़ना जरूरी है जो जीवन की कुछ मूलभूत आवश्यकताओं को समझते है .इस देश का एक बड़ा हिस्सा भर्ष्टाचार की भेट चढ़ जाता है

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  6. दो सप्ताह पहले चेतन से मेरी मुलाकात हुई थी। जयपुर में। बहुत ही लॉजिकल बात करते हैं। किसानों और आम आदमी के लिए उनकी तर्कसंगत बातें, काफी मायने रखती हैं। अच्छा लिखा है आपने। शुक्रिया।

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  7. आप का यह बा़क्स मेरी लबी चौड़ी तिप्पणी खा गया है

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  9. हम सब भारतीय यहीं उम्मीद करेंगे की सरकार का प्रयास इस ओर जाए..अच्छा लिखा आपने..

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  10. यह पुस्तक अर्से से पड़ी है। आपने मोटीवेट किया कि पढ ली जाये। धन्यवाद।

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  11. Ji Hem ji ..Chetan Bhagat is a good writer .
    Padhi hai ye pustak maine ..sahi varnan
    Saadar !!

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  12. बिलकुल सही लिखा है आपने। लगता है अब ये पुस्तक जरूर पढनी पडेगी आभार्

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  13. बहुत अच्छा लगा ! बढ़िया पोस्ट! मैं ये किताब ज़रूर पढूंगी !

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  14. सही कहा आपने......कुल मिलाकर वर्तमान शिक्षाप्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है। गरीब बच्चों को दोपहर का भोजन जैसे इन कार्यों के पीछे सिर्फ राजनीतिक लाभ प्राप्ति का ही उदेश्य दिखाई देता हैं। इनका शिक्षा से किसी भी तरह से कोई सरोकार नहीं। इसके लिए तो कुछ सार्थक करना होगा।

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