उपभोक्ता के हित हेतु सरकार सजग है। विज्ञापन के जरिये ग्राहक को जगा कर सरकार स्वयं सो जाती है। सरकार का साफ़ साफ़ कहना है कि ग्राहक सरकार की नींद में खलल न डाल कर सीधे उपभोक्ता संरक्षण एजेंसी के पास चला जाए। ग्राहक बेचारा परेशान - किस किस की शिकायत करे। मोबाइल कंपनियों को ही ले लें। अभी कुछ दिन पहले तक तो सरकार ने ही मोबाइल कंपनियों से कह रखा था की ग्राहक की एक सेकण्ड बात के लिए वह एक मिनट का शुल्क (साठ गुना) वसूल सकती है। यदि आप अत्यधिक सजग हैं तो पायेंगे कि कम्पनियां आपके प्रीपेड बेलेंस में से निर्धारित शुल्क से अधिक काट ले रही है। एक उपभोक्ता ने प्रतिष्ठित कंपनी 'आइडिया' का एक प्लान लिया जिसमें १२ घंटे बाद कम दरों में बात होनी थी। जब ३६ घंटों बाद भी दरें कम नहीं हुईं तो ग्राहक ने कंपनी के कॉल सेंटर में शिकायत करी। उसको उत्तर मिला बात करने के पहले स्वयं चेक कर लेना चाहिए कि प्लान लागू हुआ या नहीं। इस बेहूदे उत्तर से कुपित हो ग्राहक ने ई मेल द्वारा कंपनी के ही वरिष्ठ अधिकारी से शिकायत की। लेकिन उसे कोई उत्तर नहीं मिला।लाचार ग्राहक ने दूसरी कंपनी की शरण ले ली।
बाजार में अनेक वस्तुएं उन पर अंकित मूल्य से बहुत कम में बिक रही हैं । अर्थात इन वस्तुओं पर अत्यधिक मार्जिन रखा गया है। ऐसे में कोई दुकानदार अंकित मूल्य पर ही सामग्री बेच देता है तो ग्राहक सारे उपभोक्ता सरंक्षण दावों के बावजूद निरीह ही रहेगा। कुछ दिन पहले घुघूती जी के ब्लॉग पर बाजार में बिक रहे प्रदूषित फलों और सब्जियों के बारे में पढ़ा था। एक अन्य ब्लॉग में रीडर्स डायजेस्ट द्वारा ग्राहकों से की जा रही धोखाधड़ी (जिसका मैं स्वयं भी शिकार हुआ हूँ) के बारे में पढ़ा। नमकीन, बिस्कुटों और अन्य खाद्य पदार्थों, साबुनों आदि की पैकिंग २५० ग्राम से २००,१८५,१८० १७० ग्राम कब हो गयी ग्राहक को यह पता ही नहीं चल पाता। मिलावटी और नकली दूध, मावा और घी ग्राहक खरीदने को मजबूर है।
जागो ग्राहक क्योंकि सरकार हेडली, नक्सली और थरूर को लेकर थक कर सो चुकी है।