२३ सितम्बर से ३० सितम्बर के बीच और उसके तुरंत बाद का भारत एक अपरिपक्व देश की छवि प्रस्तुत करता है |उच्च न्यायालय द्वारा दिए जाने वाले एक फैसले को शांतिपूर्वक सुनने के लिये हमारे प्रधान मंत्री को जनता से अपील करनी पड़ती है , भारी सुरक्षाबल तैनात करने पड़ते हैं , ३० सितम्बर को शाम तीन बजे से अनेक शहरों में कर्फ्यू का सा माहौल बन जाता है | सभी सम्बंधित पक्ष बार बार कहते हैं कि उन्हें अदालत का फैसला मंजूर होगा ,मानो अदालत का फैसला मान कर वे कोई अहसान कर रहे हों | यह सब अपरिपक्वता की ओर ही इंगित करता है |
अदालत के फैसले के बाद असंतुष्टों को ऊपरी अदालत में जाने का पूरा अधिकार है | लेकिन एक विशेष प्रकार के फैसले की प्रतीक्षा कर रहे लोगों की टिप्पणियाँ अपरिपक्वता को और अधिक उजागर करती हैं | ब्लॉग जगत में तो एक ब्लोगर ने जजों द्वारा दिए फैसले को 'अ-कानूनी' करार दे दिया | मतलब अब उच्च न्यायालय के जजों को क़ानून सीखने के लिये ब्लॉगजगत के दरवाजे खटखटाने पडेंगे ? यह ब्लॉग जगत की अपरिपक्वता (घटियापन)नहीं तो और क्या है ?
वैसे इस मामले में मेरी व्यक्तिगत राय उन हिन्दू-मुसलामानों से मेल खाती है, जो मानते हैं कि अदालत के फैसले के बाद उस स्थान पर राम मंदिर बनाने में मुसलमान सहयोग करें और अन्यत्र मस्जिद बनाने के लिये हिन्दू उससे अधिक सहयोग करें |
ब्लॉग जगत में तो एक ब्लोगर ने जजों द्वारा दिए फैसले को 'अ-कानूनी' करार दे दिया|
जवाब देंहटाएंआंख के बदले आंख वाले जंगली कानून को ऐश्वरीय मानकर सारी दुनिया पर जबरिया थोपने वाले किसी भी (बम-बन्दूक विहीन) कानूनी फैसले को 'अ-कानूनी' ही बतायेंगे।
सत्यमेव जयते नानृतम्!
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंआयी हो तुम कौन परी..., करण समस्तीपुरी की लेखनी से, “मनोज” पर, पढिए!
ब्लाग जगत के बारे में आपकी राय से सहमत हूँ ....दयनीय एवं निराशाजनक स्थिति है !
जवाब देंहटाएंमैं आपकी बात से पूर्णतः सहमत।
जवाब देंहटाएंआपने एक गंभीर मुद्दे की ओर ध्यानाकर्षण किया है। ब्लॉगजगत पहले ही अनेक प्रकार की समस्याओं और आलोचनाओं का सामना कर रहा है। पुरानी बातें अभी ठीक से बिसराई भी नहीं गई होती हैं कि नया बखेड़ा खड़ा हो जाता है।
जवाब देंहटाएंजेसे भाई दुनिया मै तरह तरह के लोग होते है उसी प्रकार यहां ब्लांग जगत मै भी तरह तरह के लोग है, क्या करे सब की अपनी अपनी सोच है, वेसे सब शांत हे, बहुमत से यह बहुत अच्छा संदेश है देश के लिये, बाकी आप की बात से सहमत हे
जवाब देंहटाएंapaki salaah se sahamat hun...
जवाब देंहटाएंहम्म ब्लागजगत में बुद्धिजीवियों की ज़रूरत है
जवाब देंहटाएंआप ऐसा केवल इसलिए कह पा रहे है कोयं फैसला आपके समुदाय के हक में आया है. लेकिन अगर आप कानूनन सोचेंगे तो सोच कुछ और ही होगी. ज़रा बताइए क्या मंदिर तोड़ कर मस्जिद बने गई, यह किसने बताया था जज साहबों को? राम जी वहीँ पैदा हुए था, क्या खुद राम जी ने बताया उन्हें? या बिना सबूत के भी कुछ अदालत में साबित किया जा सकता है? अनेकों सवाल हैं, जिनके जवाब नहीं दिए गए? जवाब नहीं मिलने पर सवाल उठते ही हैं, तो परेशान क्यों हो रहे हैं?
जवाब देंहटाएंशहरयार जी निश्चित रूप से जजों ने दोनों समुदायों के विद्वान वकीलों की दलीलों और सारे गवाहों को सुनने के बाद ही अपना फैसला सुनाया है | फिर भी असंतुष्ट पक्ष सर्वोच्च न्यायालय में जा कर उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दे सकता है - यह मैं अपने लेख में कह चुका हूँ | लेकिन चूंकि फैसला आपको पसंद नहीं है इसलिए न्यायालय का फैसला गलत है यह कहना घटियापन है | यदि न्यायालय का फैसला दूसरे के पक्ष में जाता है तो हमें स्वीकार्य नहीं - यह सोच हो, तो न्यायालय जाने का अर्थ ही क्या है ? यदि सर्वोच्च न्यायालय भी इसी तरह का निर्णय करे तो वह आपको स्वीकार्य होगा या नहीं ? आपकी सोच को देख कर लगता है की शायद वह भी आपको मंजूर नहीं होगा | शाहबानो प्रकरण में भी कुछ ऐसा ही हुआ था |
जवाब देंहटाएं........अदालत के फैसले के बाद उस स्थान पर राम मंदिर बनाने में मुसलमान सहयोग करें और अन्यत्र मस्जिद बनाने के लिये हिन्दू उससे अधिक सहयोग करें |
जवाब देंहटाएंमेरी सहमती दर्ज कीजियेगा ...
रही बात ब्लॉग जगत में घटियापन की तो पांडेयजी मैं पूर्णत श्री राज भाटिया जी की उपरोक्त टिपण्णी का समर्थन
करता हूँ ,हाँ ब्लॉग जगत की गरिमा को बनाये रखने हेतु आवश्यक है की किसी भी मुद्दे पर लिखने या टिपण्णी करने से पूर्व
पूर्ण संतुलन एवं निष्पक्षता का ध्यान ब्लोगर एवं पाठक को रखना होगा तभी ब्लोगिंग की सार्थकता को कायम रखा जा सकता है , और यह भी ध्यान रखना होगा की ब्लोगर किस मानसिकता में पोस्ट लिख रहा है उसे समझना होगा ताकि किसी भी प्रकार की गलतफहमी की गुंजाईश न रहे ,सोशल नेट्वर्किंग से जब आप जुड़ जाते हैं तो आप यह मान के चलिए की यहाँ पर आपका स्वागत सदेव फूलों से ही नहीं होगा बल्कि पत्थरों से भी हो सकता है , इन तत्वों को ज्यादा अहमियत न दी जाय तो बेहतर होगा.,
आभार.................................
jai ho........
जवाब देंहटाएंaadarniy sir
जवाब देंहटाएंmain aapki baat se purntaya sahamat hun.
bahut hi viharniy tathy aapne prastut kiya ha.
aabhar sahit ---------
poonam
यह लड़ाई कभी खतम नहीं होगी शायद ...
जवाब देंहटाएंआपकी बातें समसामयिक हैं...सच्ची और खरी...अच्छा लगता है पढ़ कर...
जवाब देंहटाएंनीरज
पता नहीं ये अदालतें होती ही क्यों हैं |
जवाब देंहटाएं@ शहरयार जी से पूछना चाहूँगा कि गुलामी या आक्रान्ता की निशानी को मिटाना ठीक है या नहीं ? दूसरी बात क्या भारत में रहने वाले मुसलमानों के पूर्वज बाबर के पहले के नहीं थे ? क्या जब बाबर ने भारत पर आक्रमण किया था तो उसे इब्राहीम लोदी ने नहीं रोका था ? और इब्राहीम लोदी देश भक्त मुस्लमान नहीं था ?
वैसे पाण्डे जी आपका लेख एक-दम सही है | ब्लोगर भी इतना नीचे न गिर जाएँ की टी.वी. पत्रकार बन जाएँ |
बिल्कुल सही कहा । पर हमारी सरकार के सांसद ही जब बुझती आग में घी डालने का करें तो आप क्या कहें जनता को इनकी चालाकियां समजनी चाहिये कि ये वोटों की राजनीती कर रहे हैं ।
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आ कर टिप्पणी करने का अनेक धन्यवाद स्नेह बनाये रखें ।
sekmat hun aapse.
जवाब देंहटाएंवैसे इस मामले में मेरी व्यक्तिगत राय उन हिन्दू-मुसलामानों से मेल खाती है, जो मानते हैं कि अदालत के फैसले के बाद उस स्थान पर राम मंदिर बनाने में मुसलमान सहयोग करें और अन्यत्र मस्जिद बनाने के लिये हिन्दू उससे अधिक सहयोग करें |
जवाब देंहटाएंपूरी तरह से इस बात से इत्तिफाक रखता हूँ
..
रही बात परिपक्क्वता की तो ...पहले भी और आज भी एक बड़ी जनशंख्या ऐसे लोगो की रही है जिन्हें मानव शारीर तो मिला है लेकिन आत्मा दानव की .
नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
जवाब देंहटाएंमुझे ब्लोगजगत से नही पर देश की सरकार से शिकायत है। देश की सरकार एक आम नागरिक को सामाजिक सुरक्षा के अलावा कुछ नही देती और सेवाओं के लिए तो वह शुल्क वसूलती ही है। पर अदालत के फ़ैसले पर सरकार धार्मिक नेताओं और संगठनो के आगे जिस प्रकार गिड़गिड़ाती और जनता से शान्ति की अपील करती नजर आयी उससे उसकी लाचारी झलकती है। सरकार को कढ़ी चेतावनी देते हुये यह कहना चाहिये था कि अदालत के फ़ैसले के बाद अगर किसी ने भी कानून अपने हाथ में लेने या सदभाव बिगाड़ने की कोशिश की तो ऎसे लोगों के खिलाफ़ कड़ी कार्यवाही की जायेगी। धन्य हो इस देश की लाचार सरकार और लाचार प्रधानमंत्री!
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