वैसे तो बालकनी में और भी गमले हैं, लेकिन यहाँ मैं केवल दो की कहानी कहूंगा. इनमें से एक गमला सफ़ेद फूल वाला है, जो लगभग बारहों मास फूल देता है, जिन्हें मैं प्रायः नित्य पूजा हेतु तोड़ लिया करता हूँ.इस तरह यह गमला मेरे लिये एक उपयोगी पौधे वाला गमला है. यह किसी न किसी तरह से मेरी सहायता कर रहा है और लाभ पंहुचा रहा है.इसलिए मुझे इससे ज्यादा लगाव होना चाहिए. लेकिन शायद ऐसा है नहीं. यह पौधा नित्य फूल देता है- इसे मैं इसका स्वाभाविक गुण मान लेता हूँ.इसके प्रति कृतज्ञता का भाव मुझमें नहीं है.
दूसरा गमला गुलाब के फूल का है.कुछ वर्ष पूर्व जब मैंने इस गुलाब के पौधे को गमले पर रोपा था और कुछ समय बाद एक सुन्दर गुलाब का फूल खिला था, तो मेरा पूरा परिवार रोमांचित था.तब शायद इसकी सुन्दरता हम लोगों को आकर्षित करती थी. (लगाव का एक कारण सौन्दर्य भी है).आज इस गुलाब में वैसा आकर्षण नहीं है.फूल की गुणवत्ता का ह्रास हुआ है.खिलने के बाद डाली में अधिक टिकता भी नहीं है.अर्थात इसकी उपयोगिता सफ़ेद फूल के मुकाबले कुछ भी नहीं.लेकिन जब मौसम आने पर गुलाब के पौधे में कलियाँ आने लगती हैं तो मेरा पूरा परिवार आज भी रोमांचित होता है, एक दूसरे को वह कली दिखाता है जिसमें कुछ दिनों बाद फूल खिलेगा.हमें गुलाब के खिलने की प्रतीक्षा आज भी रहती है.
आखिर क्यों हम , सफ़ेद फूल की अपेक्षा गुलाब के प्रति अधिक संवेदनशील हैं. क्या इस लिये कि उसकी सुन्दरता सफ़ेद फूल की अपेक्षा अधिक है, या इसलिए कि गुलाब केवल मौसम पर ही खिलता है और फिर अगले मौसम पर आने का वादा कर चला जाता है जबकि सफ़ेद फूल नित्य ही हमारे पास बने रहता है. क्या गुलाब विदेश जा कर नौकरी करने वाला बेटा है, जो कभी कभार आकर दिलासा दे जाता है और सफ़ेद फूल पास में रहने वाली संतान जो हर सुख दुःख में काम आती है?
main sahmat hun
जवाब देंहटाएंगुलाबी रंग हमेशा सफेद पर विजय पाता रहा है।
जवाब देंहटाएंयही दुर्लभता का आकर्षण है !
जवाब देंहटाएंपांडेयजी मेरे दिल कि बात लिखी है आपने. मैं भी मानव स्वभाव कि इस विचित्रता से परेशान रहता हूँ. जो सहजता से उपलब्ध है चाहे वो चीज कितनी ही कीमती क्यों ना हो हमें मूल्यहीन लगती है. बचपन में कभी पढ़ा था "मलयगिर कि भीलनी चन्दन दे जराय ". वस्तुओं के साथ यह व्यव्हार तो ठीक है पर गलती तब होती है जब यही वस्तुगत भावना हम मानवीय संबंधों में प्रकट करते हैं.
जवाब देंहटाएंvichaar shoonya jee से sahmat ...!
जवाब देंहटाएंपाण्डेय जी सादर नमस्कार , बेहतरीन पोस्ट लिखनें हेतु आभार , पाण्डेय जी जहां तक मैं समझता हूँ आपका दोनों फूलों अर्थात गुलाब और अन्य सफ़ेद फुल से समान लगाव है विश्वास नहीं हो तो सफ़ेद फुल को उखाड़ फैंक देख लिजिए, मैं जनता हूँ आप ऐसा नहीं कर सकते हो, .....क्यों ?.......स्वयं से पूछिए तो जवाब मिल जायेगा ,,, रही बात गुलाब के प्रति अधिक संवेदनशील होने की तो पाण्डेय जी प्रोफाइल का ख्याल तो रखना ही पड़ता है, इसमें कोई संदेह नहीं की गुलाब एक हाय प्रोफाइल फूल है , आंखिर प्रोटोकोल भी तो कोई चीज है........... (सब धान बाईस रुपें
जवाब देंहटाएंपसेरी तो नहीं बेच सकते )
टैगोर - दादा रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कालजयी बात कही थी - कि - "डिस्टेंस हैज़ इट्स डिग्निटी - फ़ैमिलियरिटी डिमिनिशेज़ इट";
जवाब देंहटाएंशब्दांतर से वही - "घर की मुर्गी दाल बराबर";
और प्रकारान्तर से गुलाबी की ललक सफ़ेद की क़ीमत पर्।
मानव स्वभाव है यह - प्रेमचन्द ने भी कहा था - कि-
"मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है - जो एक बार दिख कर घटते-घटते लुप्त हो जाता है, असली कमाई तो ऊपर की आमदनी से है"
यानी निष्कर्ष यह कि परदेस जा कर कमाई करने वाला बेटा "ऊपरी कमाई" है।
मगर आप की पोस्ट बहुत अच्छी - सोच से जन्मी हुई है। बधाई!
bahut khoob
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लिखा आप ने दोनो फ़ुलो की अपनी अपनी महता है, सफ़ेद फ़ुल आप को रोज दिखता है जब कि गुलाब के पोधे पर साल मै कुछ ही दिन फ़ुल आता है, अगर सफ़ेद फ़ुल भी इस गुलाब की तरह हो तो क्या आप उसे भी इसी तरह नही निहारेगे? मोह तो दोनो से ही है, दोनो का ख्याल आप ही रखते है
जवाब देंहटाएंऔर क्या कहें सब कुछ आपने कह दिया
जवाब देंहटाएंपांडेयजी
जवाब देंहटाएंक्या कहें
बधाई!
क्या गुलाब विदेश जा कर नौकरी करने वाला बेटा है, जो कभी कभार आकर दिलासा दे जाता है और सफ़ेद फूल पास में रहने वाली संतान जो हर सुख दुःख में काम आती है?
जवाब देंहटाएंbahut sahii mudde ko aapne kahani ke madhyam se samjhaya hai...bahut accha moD diya hai .
आपका तर्क विचारणीय एवं सराहनीय है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना,
जवाब देंहटाएंआभार...
Kaisee duvidha hai ye ??
जवाब देंहटाएंchoti see baat ka kitna ghambheer arth !
Abhaar !
sundar rachna lagi dajyu...................
जवाब देंहटाएंजो सर्वदा सुलभ है, उसे हम ’taken for granted' माने रखते हैं शायद, और जो अपेक्षाकृत दुर्लभ है वही हमारा ज्यादा ध्यान खींच लेते हैं।
जवाब देंहटाएंपोस्ट भी विचारणीय है और सभी टिप्पणियां भी।
आभार स्वीकार करें।
मन को छू गयी आपकी कहानी।
जवाब देंहटाएं................
नाग बाबा का कारनामा।
व्यायाम और सेक्स का आपसी सम्बंध?
...बेहतरीन!!!
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा है जो हमारे पास नहीं रहते कभी कभी मिलते है उन्हें हम मेहमान की तरह ही व्यवहार करते है और सदा साथ रहने वालो के साथ ही तो खुशिया दर्द बँट जाते है और पता ही नहीं चलता |
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
बहुत बड़ी दर्शन की बात है यह तो।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती