पुस्तकें न खरीदने के पीछे एक तर्क उनके मूल्य का अधिक होना दिया जाता है, जिससे मैं पूर्ण सहमत नहीं हूँ | क्योंकि अन्य अनेक मदों में खर्च करते समय हम खर्च की जाने वाली राशि को नजरंदाज कर देते हैं |
वैसे मुझे खुशी है कि हिन्दी जगत में कुछ ऐसी संस्थाएं भी सक्रिय हैं जो सस्ते मूल्य पर पठनीय पुस्तकें उपलब्ध कराती हैं | इस क्रम में गीताप्रेस गोरखपुर का नाम लेने से हमारे धर्मनिरपेक्ष (?) बंधुओं का जायका ख़राब होसकता है , क्योंकि यह प्रकाशन हिन्दू मतावलम्बियों की आवश्यकतानुसार धार्मिक पुस्तकें बहुत सस्ते मूल्य पर लगभग सौ प्रतिशत त्रुटिरहित मुद्रण के साथ उपलब्ध कराता है | किन्तु उन्हें उस संस्था की प्रशंसा तो करनी ही चाहिए जो मात्र १८ रुपये में गांधीजी की संक्षिप्त आत्म कथा १९२ पृष्ठीय पुस्तक में पढ़ा रही है |
मैं वाराणसी के सर्व सेवा संघ प्रकाशन को नमन करता हूँ |
वैसे मुझे खुशी है कि हिन्दी जगत में कुछ ऐसी संस्थाएं भी सक्रिय हैं जो सस्ते मूल्य पर पठनीय पुस्तकें उपलब्ध कराती हैं | इस क्रम में गीताप्रेस गोरखपुर का नाम लेने से हमारे धर्मनिरपेक्ष (?) बंधुओं का जायका ख़राब होसकता है , क्योंकि यह प्रकाशन हिन्दू मतावलम्बियों की आवश्यकतानुसार धार्मिक पुस्तकें बहुत सस्ते मूल्य पर लगभग सौ प्रतिशत त्रुटिरहित मुद्रण के साथ उपलब्ध कराता है | किन्तु उन्हें उस संस्था की प्रशंसा तो करनी ही चाहिए जो मात्र १८ रुपये में गांधीजी की संक्षिप्त आत्म कथा १९२ पृष्ठीय पुस्तक में पढ़ा रही है |
मैं वाराणसी के सर्व सेवा संघ प्रकाशन को नमन करता हूँ |
पुस्तकों का अधिक मूल्य उनके खरीदने में थोड़ी बाधा तो अवश्य करता है. यही अगर पुस्तक सस्ती हो, आपको दोबारा सोचना नहीं पड़ता. जब आपकी आय सीमित हो खर्चे की कटौती, अपने शौक की चीजों में होगी सबसे पहले.
जवाब देंहटाएंगीता प्रेस गोरखपुर का प्रयास सचमुच ही सराहनीय है.
गीता प्रैस तो लाजवाब है ही. वैसे भी हिन्दी पुस्तकें शायद विश्व में सबसे कम कीमत पर मिलाने वाली पुस्तकें हैं.
जवाब देंहटाएंज्ञान को प्रचार मिल रहा है इस प्रकार।
जवाब देंहटाएंsahmati drj kijiyega, abhaar.
जवाब देंहटाएंगीता प्रेस गोरखपुर का प्रयास सचमुच ही सराहनीय है.
जवाब देंहटाएंइस सराहनीय प्रयास को नमन .....
जवाब देंहटाएंसंभवतः पोस्ट लिखते समय मैं यह स्पष्ट नहीं कर पाया कि गान्धीजी की उल्लेखित आत्म कथा वाराणसी के सर्व सेवा संघ प्रकाशन द्वारा प्रकाशित की गयी है | मैं केवल यह बताना चाह रहा था कि गीता प्रेस की तरह ही यह प्रकाशन भी सस्ते मूल्य पर गांधी साहित्य उपलब्ध करा रहा है |
जवाब देंहटाएंसस्ती पुस्तक दिलवाने वाली हर प्रेस का आभार है. गीता प्रेस को कोई कैसे भूल सकता है!
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
80 रूपये किलो प्याज वाले को 50 रूपये में परसाई की किताब महंगी लगे तो कोई क्या करे
जवाब देंहटाएंhaan aajkal log kuch kam important chijon ko kharidane me jyada kharch kar dete hai ..par ek achchi kitab nahi kharidate...
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी दी आप ने जी, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंकाजल कुमार से सहमत !
जवाब देंहटाएंलाभकारी पोस्ट
जवाब देंहटाएंगीता प्रेस, सस्ता साहित्य प्रकाशन, सर्व सेवा संघ, नवजीवन प्रेस --- बहुत सेवा कर रहे हैं ये!
जवाब देंहटाएंअमृतलाल वेगड़ जी की "सौन्दर्य की नदी नर्मदा" को मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी 30 रुपये में और पेंगुइन 135 रुपये में उपलब्ध कराते हैं! :)
बसंत पंचमी की शुभकामनाएँ...........
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ज्ञानदत्तजी इस सार्थक और ज्ञान वर्धक टिपण्णी के लिए | सस्ता साहित्य उपलब्ध कराने वाले प्रकाशनों की सूची में वाराणसी की ही एक और संस्था का नाम और जोड़ना चाहूंगा - हिन्दी प्रचारक | मैंने इनके द्वारा प्रकाशित लगभग तेरह सौ पृष्ठीय 'देवकी नंदन खत्री समग्र' पुस्तक १९९९ में मात्र अस्सी रुपये में खरीदी थी |
जवाब देंहटाएंbahut sundar..... nayi post daliye. kai dino se blog update nahi kiya hai aapne.......
जवाब देंहटाएंनिश्चित ही स्तुत्य है यह.
जवाब देंहटाएंपांडेय साहब,
जवाब देंहटाएंकाजल कुमार जी की टिप्पणी भी अपनी जगह ठीक है, हम लोगों की प्राथमिकतायें बदल गई हैं। वैसे मेरी राय में रीडिंग हैबिट्स ही बहुत कम हो रही हैं अब।
इस बार काफ़ी समय के बाद आना हुआ है आपके ब्लाग पर, लेकिन आना हमेशा की तरह सुखद ही लग रहा है।
गीता प्रेस तो सबके द्वारा जाना पहचाना नाम है, हिन्दी प्रचारक जैसी संस्थाओं के बारे में और जानकारी मिले तो अच्छा लगेगा।
आभार।
@ संजय जी हिंदी प्रचारक का पता इस प्रकार छपा है - प्रचारक ग्रंथावली परियोजना,हिंदी प्रचारक पब्लि. प्रा. लि., सी २१/३० पिशाचमोचन. वाराणसी-२२१ ०१० |
जवाब देंहटाएंइसके प्रकाशन मैंने १९९९ में एक पुस्तक मेले में देखे थे |
@ हर्षजी, व्यक्तिगत कारणों से ब्लॉग्गिंग में कम समय देने को बाध्य हूँ | इसी कारण टिप्पणियाँ भी नहीं दे पा रहा हूँ |
Bilkul sahi baat hai
जवाब देंहटाएंspariwaar holi ki hardik shubhkaamnayen..
जवाब देंहटाएंहोली पर आप को परिवार के साथ शुभ कामनाएं ।
जवाब देंहटाएंये त्यौहार सबके जीवन में कमसेकम सौ बार आये ॥
......
दोबारा...
जवाब देंहटाएंजब बच्चा स्कूल नहीं जाना चाहता तो पेट पकड़ कर दिखाता है.
बहाने हज़ार हैं न पढ़ने.
होली का त्यौहार आपके सुखद जीवन और सुखी परिवार में और भी रंग विरंगी खुशयां बिखेरे यही कामना
जवाब देंहटाएंपहले तो मुझे भी लगा कि गीता प्रैस और गांधीजी ? बाद में आपने स्पष्ट किया धन्यबाद। कीमते तो बहुत बहुत ज्यादा होगई है आप यकीन मानिये सन 75 में उपन्यास रागदरवारी की कीमत 20/ थी आज तलाश करें ।किसी भी प्रसिध्द लेखक की किताब देख लीजिये । आप भलेही अधिक मूल्य की बात से सहमत न हो किन्तु सच मानिये 100पेज की किताव के 300रुपये ?। भैया अब आप जो भी कहो लायब्रेरी से इश्यु करा लाते है और पढ लेते है
जवाब देंहटाएंगीता प्रेस गोरखपुर का कार्य सचमुच ही सराहनीय है। इस दिशा में ‘सस्ता साहित्य मण्डल’ नई दिल्ली भी उल्लेखनीय है।
जवाब देंहटाएंविचारणीय प्रस्तुति के लिए बधाई।
sach me achchhi baat batayee aapne
जवाब देंहटाएंबहुत सी जानकारियाँ मिली ....
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट से और टिप्पणियों से भी ....
खासकर ज्ञान रंजन जी की .....
आभार ....!!
Kash sabhi prakashak aisakarte to padhane valon ki sankhya avashy badhti..sundar post...
जवाब देंहटाएंसर्व सेवा संघ प्रकाशन का यह कार्य प्रशंसनीय व अन्य के लिए प्रेरक है।
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने। सहमत हूँ मै भी आपसे !सर्व सेवा संघ प्रकाशन का यह कार्य प्रशंसनीय है।
जवाब देंहटाएंशुभ कामनाएं ।