मंगलवार, 17 फ़रवरी 2009

खड़ी बोली कविता के जनक भारतेंदु नहीं, लोकरत्न पन्त 'गुमानी' थे

इस पोस्ट के माध्यम से मैं हिन्दी साहित्य के इतिहास में रुचि रखने वालों का ध्यान आकृष्ट करना चाहता हूँयह सर्वमान्य तथ्य माना जाता है कि खड़ी बोली में साहित्य रचना सर्व प्रथम भारतेंदु हरिश्चंद्र ने की थी भारतेंदु का जन्म १८५० में और मृत्यु ३५ वर्ष की अल्पायु में १८८५ में हुई थी। १८६८ में उन्होंने' कवि वचन सुधा' का प्रकाशन प्रारंभ किया। १८७३ में 'हरिश्चंद्र मैगजीन' प्रारंभ हुई। १८७३ में ही' वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति प्रकाशित हुई। सम्भवतः' कृष्ण चरित्र' (१८८३) उनका अन्तिम ग्रन्थ थाइस प्रकार खड़ी बोली में सतत लेखन कर उन्होंने हन्दी साहित्य के अंकुर को प्रस्फुटित होने का अवसर दिया और भविष्य के लिए मार्ग दर्शन किया । हिन्दी साहित्य में उनका योगदान अमूल्य है


अत्यन्त विनम्रता से मैं निवेदन करना चाहता हूँ कि भरतेंदु को खड़ी बोली में साहित्य रचना का प्रवर्तक नहीं कहा जाना चाहिए। क्योंकि उनसे पहले कूर्मांचल के कवि ' गुमानी' खड़ी बोली में रचनाएँ कर चुके थे।



कवि 'गुमानी' का नाम पंडित लोकरत्न पन्त था। उनका जन्म १७९० में उत्तराखंड के उपराड़ा गाँव

में हुआ था और मृत्यु ५६ वर्ष की अवस्था में १८४६ में हुई। भारतेंदु के जन्म से चार वर्ष पूर्व ही वे निर्वाण को प्राप्त हो चुके थे.उन्होंने हिन्दी, कुमाऊनी, नेपाली और संस्कृत में रचनाएँ की थीं। उनकी कुछ चतुष्पदियों में पहला पद हिन्दी में, दूसरा कुमाऊनी, तीसरा नेपाली और चौथा संस्कृत में होता था। चूंकि यह लेख हिन्दी से सम्बंधित है, मैं यहाँ उनकी कुछ हिन्दी रचनाएं प्रस्तुत कर रहा हूँ -


दूर विलायत जल का रास्ता करा जहाज सवारी है


सारे हिन्दुस्तान भरे की धरती वश कर डारी है


और बड़े शाहों में सबमें धाक बड़ी कुछ भारी है


कहे गुमानी धन्य फिरंगी तेरी किस्मत न्यारी है


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हटो फिरंगी हटो यहाँ से छोडो भारत की ममता


संभव क्या यह हो सकता है होगी हम तुममें समता?


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विद्या की जो बढती होती, फूट ना होती राजन में।


हिन्दुस्तान असंभव होता, वश करना लख वर्षन में।


कहे गुमानी अंग्रेजन से, कर लो चाहे जो मन में।


धरती में नहिं वीर-वीरता तुम्हें दिखाता रण में।

गुमानी जी उत्तराखंड के अल्मोड़ा शहर में रहे थे। उस शहर का वर्णन उन्होंने इस प्रकार किया है -

खासे कपड़े सोने के तो बने बनाये तोड़े लो

पश्मीने गजगाह चंवर वो भोट देश के घोडे लो

बड़े पान के बीड़े खासे बढ़के शाल दुशाले लो

कहै गुमानी नगदी है तो सभी चीज अल्मोड़े लो

उत्तराखंड के ही काशीपुर शहर में भी उन्होंने कुछ समय बिताया था. वे मजाकिया लहजे में काशीपुर और काशी की तुलना इस प्रकार करते हैं -

यहाँ ढेला नद्दी, उत बहत गंगा निकट में

यहाँ भोला मोटेश्वर,रहत विश्वेश्वर वहाँ

यहाँ सन्डे डंडे कर धर फिरें, सांड उत हैं

फर्क क्या है काशीपुर नगर काशी नगर में

इस तरह हम देखते हैं कि भारतेंदु के जन्म से चार वर्ष पूर्व स्वर्गवासी गुमानी जी ने खड़ी बोली में जम कर कविताई की. इस लिए गुमानी जी को ही खड़ी बोली कविता का जनक माना जाना चाहिए.















29 टिप्‍पणियां:

  1. इसमें कोई शक नहीं, कुमॉंऊ के कवि गुमानी पंत भारतेंदु से वरिष्‍ठ ठहरते हैं। हमारे मित्र व साथी अध्‍यापक डा हरेंद्र असवाल ने विस्‍तार से इन तथ्‍यों को कई बार दिल्‍ली के विद्वत समुदाय के सामने रखा है तथा कमोवेश लोगइसेस्‍वीकार भी करते हैं किंतु इतिहासलिखते समयफिर गोबरपट्टी के साहित्‍यकार अपने क्षेत्र प्रेम में फंस जाते हैं।

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  2. मुझे नहीं मालुम था गुमानी जी के बारे में। आपने परिचय दिया - धन्यवाद।

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  3. गुमानी जी बारे आप से पहली बार जानकारी मिली, बहुत अच्छा लगा यह सब जान कर धन्यवाद

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  4. हेम दाज्यू, इनके बारे में तो मुझे भी नही पता था, आपका बहुत बहुत धन्यवाद ये बताने के लिये।

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  5. बहुत बहुत धन्यवाद गुमानी जी के बारे में जानकारी के लिये.

    यह गोबरपट्टी, लीदपट्टी आदि कौन हैं? कुछ खुलासा किया जाए तो हम जैसे अज्ञानियों का भी कुछ ज्ञानवर्धन हो.

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  6. aapne gumani ji ke sandarbh me jo likha,wah jaankar bahut achha laga aur ek vistrit jaankari mili....
    darasal mukhe malum bhi nahi tha,to isse awgat hui.....

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  7. दूर विलायत जल का रास्ता करा जहाज सवारी है
    सारे हिन्दुस्तान भरे की धरती वश कर डारी है
    और बड़े शाहों में सबमें धाक बड़ी कुछ भारी है
    कहे गुमानी धन्य फिरंगी तेरी किस्मत न्यारी है

    सुन्दर रचना । भारतेन्दु और गुमानी के बारे में जो साहित्यिक बहस आपने की वह तारीफ के योग्य है । शुक्रिया

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  8. आपका प्रयास सराहनीय है और इस तरह के प्रयास होने ही चाहिए. इससे हमें अपनी साहित्य परम्परा के अनुशीलन का अवसर मिलता है और इससे ही किसी साहित्य और समाज के विकास की प्रक्रिया को बल मिलता है. लेकिन एक बात और ग़ौर करने की है. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को खडी बोली में काव्य रचना के लिए नहीं, बल्कि मूल रूप से उन्हें याद किया जाता है हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए. जिस दौर में और जिस तरह उन्होने यह कार्य किया, वह निश्चित रूप से ऐतिहासिक महत्व का है.

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  9. आपकी जानकारी आंखें खोलने वाली है। आभार।

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  10. इष्‍टदेव की बात भी ध्‍यान देने योग्‍य है, उल्‍लेखनीय है कि भारतेंदु की कविता की भाषा तो ब्रजभाषा ही है, खड़ी बोली कविता (गुमानीपंत की उपेक्षा करते हुए) द्विवेदी युग से ही मानी जाती रही है, हॉं भारतेंदु को खड़ी बोली गद्य के लिए अवश्‍य जाना जाता है।

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  11. इष्ट देव जी और मसिजीवी जी आपकी विद्वतापूर्ण टिप्पणियों के लिए धन्यवाद. हिन्दी साहित्य और भाषा के प्रचार प्रसार के लिए भारतेंदु जी का योगदान अविस्मरणीय है, इस बात का उल्लेख मैंने अपनी पोस्ट में किया है. लेकिन जहाँ तक मुझे याद है हमारी पाठ्य पुस्तकों में भारतेंदु जी को खड़ी बोली का प्रवर्तक कहा गया है. मैं केवल यह प्रतिपादित करना चाहता हूँ कि खड़ी बोली में साहित्य रचना गुमानी जी पहले कर चुके थे,इसलिए खड़ी बोली का प्रवर्तक उन्हें ही माना जाना चाहिए. इस लिहाज से मेरी पोस्ट का शीर्षक "खड़ी बोली के प्रवर्तक भारतेंदु नहीं, लोकरत्न पन्त 'गुमानी' थे" होना चाहिए. शीर्षक से भ्रम की स्थिति बनने हेतु मैं क्षमा प्रार्थी हूँ.

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  12. पहले तो ये अद्‍भुत जानकारी लिये हुआ ये आलेख और फिर ये तमाम टिप्पणीयां...

    धन्यवाद आपका हेम जी ’गुमानी’ से परिचय करवाने का और उनकी रचनाओं से मिलाप करवाने का

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  13. gumani ji ke bare men nayee jankari mili achha laga jan kar. age bhi ummid hai gumani ji ke bare men vistrit jankari denge. lekin sahityakaron ke liye masijivi ji ka gobarpatti adi ka prayog achha nahi laga.

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  14. गुमानी जी के बारे मेँ आज ही जानकारी मिली है - आभार आपका !
    - लावण्या

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  15. मेरे लिये बिल्कुल नयी जानकारी है धन्य्वाद्

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  16. यथार्थ से परिचित कराने हेतु साधू वाद

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  17. शुक्रिया गुमानी जी की जानकारी के लिए .......

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  18. आपके माध्यम से गुमानी जी के बारे में जानने का अवसर प्राप्त हुआ.आभार......

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  19. आपका यह आलेख वास्तव में जानकारी पूरक है.......और इससे हन्मारा ज्ञानवर्धन हुआ........आपका बेहद आभार.......!!

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  20. इस लेख के माध्यम से बहुत सी नई बातें पता चली शुक्रिया

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  21. हमारी सांस्कृतिक और साहित्यिक धरोहर की
    गरिमा को बनाये रखने में सहायक
    आपका ये आलेख निसंदेह सटीक जानकारी से पूर्ण है
    आपका परिश्रम और साधना हमेशा सफल होंगी यही प्रार्थना है उस परमेश्वर से ....... अस्तु !
    ---मुफलिस---

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  22. aapke blog par hamesha achhi jankariyon ka sankan milta hai......es baar bhi aapne saabit kiya hai.

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  23. आदरणीय पांडेय जी ,
    मैं खुद हिंदी साहित्य का विद्यार्थी था लेकिन
    गुमानी जी के बारे में मुझे भी जानकारी नहीं थी
    आपके ब्लॉग से ये जानकारी मिली और मेरे ज्ञान में बढोतरी हुई .साधुवाद .
    हेमंत कुमार

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  24. पहली बार जानकारी मिली /खोज करने पर बहुत से नए तथ्यों का प्रकटीकरण हो जाता है /

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  25. बहुत ही अच्छा प्रयास है आपका हिंदी को इसी तरह से और खंगालने की जरुरत है.

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