हिन्दी गद्य लेखन के शुरूआती दौर के लेखकों में एक महत्वपूर्ण नाम बाल कृष्ण भट्ट का है. भट्ट जी ने प्रेम की व्याख्या इन शब्दों में की है. -
"भक्ति,आदर,ममता,आनंद,वैराग्य,करुणा आदि जो भाव प्रतिक्षण मनुष्य के चित्त में उठा करते हैं,उन सबों के मूल तत्व को एक में मिला कर उसका इत्र निकाला जाय, तो उसे हम 'प्रेम' इस पवित्र नाम से पुकार सकेंगे"
प्रेम ही वेलेंटाइन डे का प्रमुख तत्व है. और प्रेम दिल से किया जाता है. इस लिए इस मौसम में 'दिल' की बात करना गैरमुनासिब न होगा.
वेलेंटाइन डे मनाने वाले दिल तो पहले ही ले दे चुके होते हैं.आज तो वे केवल याद दिलाते हैं कि हमारा दिल तुम्हारे पास और तुम्हारा दिल हमारे पास है.लेकिन वे जानते भी हैं या नहीं कि दिल होता क्या है. यदि नहीं तो जानिए-
बहुत शोर सुनते थे पहलू में दिल का
जो चीरा तो इक कतरा -ऐ- खूँ निकला
यदि हम वेलेंटाइन डे के माहौल में इन प्रेम करने वालों को कुछ नसीहत देना चाहें तो डर है कि लोग हमें बजरंगी न समझने लगें. फ़िर भी इनके भले के लिए शायर 'जौक' के शब्दों में इन्हें बता दें -
दिल को रफीक इश्क में अपना न समझ 'जौक'
टल जायेगा ये अपनी बला तुझ पै टाल के.
नसीहतों पर प्रेम के दीवानों ने कभी ध्यान नहीं दिया, लेकिन नसीहत देने वाले भी पीछे नहीं रहते. जफ़र साहेब की नसीहत की बानगी -
बाजारे मुहब्बत में न दिल बेच तू अपना
बिक जाता है साथ उसके जफ़र बेचने वाला.
बेचारे प्रेम दीवाने इन नसीहतों पर अमल नहीं कर पाते तो उनका दोष भी नहीं. वे बेचारे तो दिल से मजबूर हैं-
दिल की मजबूरी भी क्या शै है, कि दर से अपने
उसने सौ बार उठाया , तो मैं सौ बार आया.
उनका इस तरह सौ बार आने जाने के पीछे भी एक राज है. वे मानते हैं कि -
नज़र की राह से दिल में उतर के चल देना
ये रास्ता बहुत अच्छा है आने जाने का
.
अब इनको कौन समझाए कि बार बार बे आबरू हो कर भी , हो सकता है वे सामने वाले के दिल की थाह न ले पाये हों. लेकिन इन खूबसूरत चेहरों की हकीकत जफ़र साहेब ने तो जान ली –
गुल से नाजुक बदन उसका है लेकिन दोस्तो
ये गजब क्या है कि दिल पहलू में पत्थर सा बना
जफ़र साहेब भले ही अपने तजुर्बे से बरखुदारों को आगाह करते रहें , लेकिन इश्क के मारों का हाल तो आसी साहेब जानते हैं -
हमने पाला मुद्दतों पहलू में, हम कुछ भी नहीं
तुमने देखा एक नज़र और दिल तुम्हारा हो गया .
दिल तो मियाँ गालिब ने भी किसी को दिया. लेकिन वे कहना नहीं भूले -
दिल आपका, कि दिल में जो कुछ है आपका
दिल लीजिये, मगर मेरे अरमाँ निकाल के
ऐ मजनुओ ! इतने सारे ताजुर्बेकारों की बात न मानते हुए भी तुम इश्क के फेर में पड़े हो.लेकिन याद रखना और मानसिक रूप से तैयार रहना क्योंकि ऐसाभी होता है-
जो दिल में खुशी बन कर आए, वह दर्द बसा कर चले गए
जो शमा जलाने आए थे, वह शमा बुझा कर चले गए.
पक्के मजनू तो ऐसे शमा बुझा के जाने वालों से भी नाराज नहीं होते और दिल पर लगी चोट को सहते हुए अमजद हैदराबादी के शब्दों में कह उठते हैं -
दिल शाद नहीं तो नाशाद सही
लब पर नग्मा नहीं तो फरियाद सही
हमसे दामन छुड़ा कर जाने वाले
जा, जा, गर तू नहीं, तेरी याद सही.
यूँ यादों के सहारे जीने वाले शायद बड़ी तादाद में हैं.लेकिन इन यादों के सहारे जीने में भी.कितनी तकलीफ है,जफ़र साहेब बता रहे हैं -
इक हूक सी दिल में उठती है, इक दर्द सा दिल में होता है
हम रात को उठ कर रोते हैं जब सारा आलम सोता है.
यादों के सहारे जीना इतना आसान नहीं है. जब दिल उदास हो तो फ़िर कुछ भी अच्छा नहीं लगता -
दुनिया की महफिलों से घबडा गया हूँ यारब
क्या लुत्फ़ अंजुमन का, जब दिल ही बुझ गया हो.
ऐसे ही असफल प्रेम के मारे कुछ दीवाने सोचने लगते हैं -
चहक है, महक है, रौनक है, नजारे सब कुछ
दिल में है दर्द तो बहारों से हमें क्या करना
इन्हीं गमों से घबरा कर मियां ग़ालिब गम सहने के लिए कई दिलों की तमन्ना कर उठे -
मेरी किस्मत में गम गर इतने थे
दिल भी यारब कई दिए होते.
ठीक ऐसी ही बात आबिद साहेब ने भी कही है -
गम दिए थे अगर मुहब्बत के
मुझको इक और दिल दिया होता.
गम सहने के लिए दिल चाहे जितने भी दिए हों,रातों की नींद तो हराम हो ही जाती है -
दिन भी गुजारना है, तड़प कर इसी तरह
सो जा दिले हजीं, कि बहुत रात हो गयी.
बहादुर शाह 'जफ़र' के दिल पर लगी चोट का मुलाहिजा फरमाइए -
मेरी आँख झपकी थी एक पल, कहा जी ने मुझसे कि उठ के चल
दिल-ऐ-बेकरार ने आन कर, मुझे चुटकी दे के जगा दिया.
न तो ताब है दिले जार में, न करार है गमे यार में
मुझे सोजे - इश्क ने आखिरश , यूँ ही मिस्ले शामअ घुला दिया
* * * * * * * * * * * * * * * * * * *
लगता नहीं है दिल मेरा उजड़े दयार में
किसकी बनी है आलमे- नापाएदार में
दिल पर लगी यह चोट कभी कभी इतनी गहरी होती है कि आदमी जिन्दगी से ही बेजार हो जाता है -
अभी जिंदा हूँ लेकिन सोचता रहता हूँ यह दिल में
कि अब तक किस तमन्ना के सहारे जी लिया मैंने
-साहिर लुधियानवी
इनसे एक कदम बढ़ कर -
है जनाजा इस लिए भारी मेरा
हसरतें दिल की लिए जाते हैं हम
-गोया
लेकिन दिल केवल देने - लेने या इश्क करने के लिए ही नहीं वरन दूसरों के दुःख - दर्द महसूस करने के लिए भी होता है -
गैर के गम पै भी इस दिल पर असर होता है
कोई रोता है तो दामाँ मेरा तर होता है
- जिगर मुरादाबादी
अंत में वेलेंटाइन डे के दीवाने नौजवानों से, वेलन्टाइन डे से कतई अनभिज्ञ उन नौजवानों के दिल की तमन्ना का जिक्र कर दूँ जिन्हें आज भी देश सलाम करता है -
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में हैदेखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है.
Behtreen collection...
जवाब देंहटाएंbahut achcha. purani chijo ko sahej kar behtreen pryog..
जवाब देंहटाएंye ek umda vicharvano ki pahal he.dhnyavad
achcha laga aapka ye sankalan
जवाब देंहटाएं"उसने सौ बार उठाया , तो मैं सौ बार आया"
जवाब देंहटाएंलाजवाब आलेख सर....इतने शानदार शेरों को इस मज़मुन पे...हाय रे~~~~‘
जो आप अन्यथा न लें तो मेरे ख्याल से ये शेर "इक हूक सी दिल में उठती है, इक दर्द सा दिल में होता है/हम रात को उठ कर रोते हैं जब सारा आलम सोता है" जफ़र साब का न होकर फ़िराक गोरखपुरी साब का है....
वाह! वेलेंटाइन डे के बहाने बढिया साहित्य चर्चा हो गई.
जवाब देंहटाएंदिल आपका, कि दिल में जो कुछ है आपका
जवाब देंहटाएंदिल लीजिये, मगर मेरे अरमाँ निकाल के
हेम जी, " दिल कि बात " अच्छी लगी और ये भी अच्छा लगा कि " दिल केवल देने - लेने या इश्क करने के लिए ही नहीं वरन दूसरों के दुःख - दर्द महसूस करने के लिए भी होता है - "
जवाब देंहटाएं- विजय
गौतम जी मेरी डायरी में यह पंक्तियाँ जफ़र साहेब के नाम से नोट हैं. लेकिन यदि आप अपनी जानकरी के प्रति आश्वस्त हैं, तो सही जानकारी देने के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंबढिया साहित्य चर्चा
जवाब देंहटाएंसमयचक्र: चिठ्ठी चर्चा : वेलेंटाइन, पिंक चडडी, खतरनाक एनीमिया, गीत, गजल, व्यंग्य ,लंगोटान्दोलन आदि का भरपूर समावेश
बहुत बढ़िया लेख लिखा है रोचक लगा इसको पढ़ना
जवाब देंहटाएंbahut achha likha hai......
जवाब देंहटाएंPrem ka vaastavik arth bataya hai aapne.
जवाब देंहटाएंमनोरंजक चर्चा के लिए बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा आलेख है।बहुत बेहतरीन संकलन प्रेषित किया है।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लेख लिखा है.
जवाब देंहटाएंहिन्दी साहित्य .....प्रयोग की दृष्टि से
desr pande ju
जवाब देंहटाएंtumar post me bahut asal laagi
bhal laagu jab tum jas log myar blog me aabher comment karne
likhte rahoo
behtareen sankalan. badhai
जवाब देंहटाएंजी हेम जी ये फ़िराक़ साब की ही गज़ल है। इसी गज़ल के एक-दो शेर यूँ हैं:-
जवाब देंहटाएंरात आधी से ज्यादा गयी थी सारा आलम सोता था
नाम तेरा ले-ले कर कोई दर्द का मारा रोता था
कुछ का कुछ क जाता था मैं फुर्क़त की बेताबी में
सुनने वाले हँस पड़ते थे होश मुझे तब होता था
उसके आँसू किसने देखे उसकी आहें किसने सुनीं
चमन-चमन था हुस्न भी लेकिन दरिया-दरिया रोता था
पिछला पहर था हिज्र की शब का जागता रब सोता संसार
तारों की छाँव में कोई ’फ़िराक़’-सा जैसे मोती पिरोता था.....
अंत में वेलेंटाइन डे के दीवाने नौजवानों से, वेलन्टाइन डे से कतई अनभिज्ञ उन नौजवानों के दिल की तमन्ना का जिक्र कर दूँ जिन्हें आज भी देश सलाम करता है
जवाब देंहटाएंvery nicely expressed
बहुत सुंदर रचना .
जवाब देंहटाएंबधाई
इस ब्लॉग पर एक नजर डालें "दादी माँ की कहानियाँ "
http://dadimaakikahaniya.blogspot.com/
Hem Bhai
जवाब देंहटाएंKya baat hai.apni baat bahut hi khoob surat andaj se pesh ki.
dil ko jhakjhoda bhi
dil ko nichoda bhi
pyar se sahi rah par
deewano ko moda bhi.
sunder rachna ke liye,badhaai ho.
आपकी टिप्पणियाँ बहुत उत्साहवर्धन करती है; कृपया अपना सहयोग आगे भी बनाये रखे !
जवाब देंहटाएंमहेश प्रकाश पुरोहित
dil me rakhi hai tasveer-e-yaar,
जवाब देंहटाएंjab jara gardan jhukaai dekh li,
bahut vistrat aalekh