रविवार, 24 मई 2009

कविता

कितना बेचैन था
मैं
मेरे बेटे
तेरे आने की प्रतीक्षा में.

तू आया
मगर मुर्दा.

मैं पहले रोया
औ़र फिर हँसा.

और तेरी माँ
नौ महीने की व्यर्थ साधना का फल पा कर
तड़फती रही
बिस्तर पर.

लेकिन मेरे बेटे
तेरी माँ
खुशनसीब है शायद
मेरी माँ की अपेक्षा.

क्योंकि मैं जिंदा हूँ
अब तक.

27 टिप्‍पणियां:

  1. मैं पहले रोया
    औ़र फिर हँसा.
    ------
    न हन्यते हन्यमाने शरीरे!

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  2. पढ़ के रचना यूँ लगा हो जाऊँ बेहोश।
    खुद के जीने पर दिखा बहुत अधिक अफसोस।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.

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  3. ह्रदय को चीरती हुई रचना......हमसे तो टिप्पणी करना भी मुश्किल हो गया.

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  4. हेम जी, बस निःस्तब्ध हूँ
    चीरती सी ये कविता अंदर तक उतरती हुई...उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़!

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  5. इस रचना के बारे में क्‍या कहूं .. शब्‍द नहीं दे सकती।

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  6. निःस्तब्ध ,निशब्द कर दिया आप की कविता ने.
    हृदय विदारक रचना.

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  7. chacha, bahut bariya hai kya kahoon nishabd hoon ye do line parke
    नौ महीने की व्यर्थ साधना का फल पा कर
    mujhko bhi kuch yaad aa gaya.

    Profile parkar laga dajyu se jyada uchit hai chacha kehna :)

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  8. बहुत गहन वेदना महसूस हुई.

    रामराम.

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  9. maangne se jo mout mil jaati to kaun jeetaa is jamaane mai.

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  10. ye kya likh diyaa aapne itni gahari baat aur dard... jo sine ko chirati hui samaahit hoti jaa rahi hai... nisandeh nishabd hun....


    arsh

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  11. दिल में गहरे कहीं पीडा भर गयी ............ भावुक रचना है

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  12. ह्रदय पर गहरा प्रहार करती हुई
    बहुत ही संजीदा रचना .....
    शब्द नहीं मिल पा रहे हैं
    ऐसी सच्ची और मन की गहराईयों से
    निकली हुई रचना पर कोई क्या कह पायेगा भला
    मर्म-स्पर्शी प्रस्तुति

    ---मुफलिस---

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  13. तू आया
    मगर मुर्दा.

    मैं पहले रोया
    औ़र फिर हँसा......
    हृदय विदारक रचना.....

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  14. चार दिन की जिन्दगी है...मार्मिक!

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  15. लेकिन मेरे बेटे
    तेरी माँ
    खुशनसीब है शायद
    मेरी माँ की अपेक्षा.

    क्योंकि मैं जिंदा हूँ
    अब तक.

    आदरणीय पाण्डेय जी ,
    बहुत hee karunapoorn कविता ...एक साथ कई मजबूरियों और दुखों को बयां करती हुयी .
    हेमंत कुमार

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  16. हेम जी
    समझ नहीं पा रहा हूँ कि आप की कविता को भोगा सत्य मान टिप्पणी करूँ या किसी देखे दर्द का सजीव चित्रण मान याsssssss ;आपने तो इतना मार्मिक करुणामय चित्रण कर टिप्पणी के मामलें मेरी ही भावनाएं '' कागज भी पिघलेगा '' की इन पंक्तियों को मूर्त कर दिया ,:------

    क्या कभी देखा नहीं ,

    किसी को भीड़ में भी अकेला,

    किसी का मौन भी मुखर होता है,

    पर कभी पढ़ना तुम किसी की ,

    प्रखर-मुखरता के पीछे का लेखा ||

    तेरे ही आंसू से काग़ज़ भी पिघलेगा,

    लेखनी कांपेगी, शब्द खो जायेंगे , उस पीड़ा से ,

    सारी अनुभूतियाँ सारी सवेदानाएं सारे भाव ,

    फ़िर से निरक्षर हो जायेंगे ||


    मेरी मनोस्थिति को इस स्तर तक पहुचाने वाली इस कविता को अपनी भावनाओं की बोल्ड इटैलिक पंक्तियाँ समर्पित करता हूँ |
    इसका उल्लेख अपने ब्लॉग की इन पंक्तियों के समक्ष शीघ्र कर के वहीँ पर आप की कविता का लिंक भी दूंगा | लिंक के पहले शुरू की दो पंक्तियों को कॉपी-पेस्ट की अनुमति चाहता हूँ ,आशा है निराश नहीं करेंगे |
    इसके आलावा कोई और तरीका मेरी समझ में आ ही नहीं रहा है , जिससे आपकी कलम की और इस कविता की वास्तविक और सटीक प्रशंसा होसके

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  17. कबीराजी ! टिपण्णी के लिए धन्यवाद. आप मेरे ब्लॉग पर प्रस्तुत की गयी सामग्री का उल्लेख कहीं भी कर सकते हैं. आपके अनेक ब्लॉग होने के कारण किस ब्लॉग पर उत्तर दूं यह निश्चित नहीं कर पाया. इसलिए यहीं उत्तर दे रहा हूं.

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  18. हेम जी ,
    कबीरा हूँ तो ज्यदातर '' कबीरा के झोपडे '' पर ही मिलूँगा <>दूसरा स्थान चौपाल है <> आज कल ''.........के बहाने '' से समसामयिक व्यंग लिखना सीख रहा हूँ | <> अन्य सभी ब्लॉग एक प्रकार से तकनीकी प्रकृति के हैं , शुरू में नाजानकारी में '' एक विषय एक ब्लॉग '' का नियम अपना कर ब्लॉग बनाता चला गया ;टैग किस चिडिया का नाम है जनता ही नहीं था ,बहुत बाद में समझ पाया की एक दो या तीन ब्लॉग पर्याप्त थे , उन्ही पर उचित टैग द्वारा द्वारा प्रतेक विषय वस्तु का वर्गीकरण एवं उन्हें समूहकृत किया जा सकता है ,सारा श्रेय गुरु जी आशीष खंडेलवाल को जाता है | वैसे मेरा फ्लैग-शिप '' कबीरा '' ही है |
    अनुमति का धन्यवाद

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