आज जब लोग मित्रता दिवस की बात करते हैं तो मुझे तो इसके पीछे भी बाजारवाद झांकता नजर आता है. जब मेरे मित्र कहते हैं कि इसका प्रारंभ तो अमेरिकी शासन की पहल पर १९३५ में ही हो गया था तो मेरा तर्क होता है कि अमेरिका तो सदा से ही बाजारवादी रहा है.हम हिन्दुस्तानियों को न तो मदर्स डे, फादर्स डे मनाने की जरूरत है और न फ्रेंडशिप डे. हम तो नित्य ही ये रिश्ते निभाते रहते हैं.
हम जानते हैं कि दोस्ती का रिश्ता तो कृष्ण ने निभाया था. यद्यपि सुदामा मानते थे कि कृष्ण से उनकी कोई समानता नहीं –
आपकी दुनिया से मेरी दुनिया की निस्बत नहीं
आप रहते हैं चमन में और मैं वीराने में.
पत्नी को उन्होंने समझाने की कोशिश भी की थी कि कृष्ण के पास जाने का कोई औचित्य नहीं. शायद उस समय उनकी मनःस्थिति नवाब मिर्जा खां 'दाग' के शब्दों में इस तरह की रही होगी-
कहीं दुनिया में नहीं इसका ठिकाना ए 'दाग'
छोड़कर मुझको कहाँ जाय मुसीबत मेरी.
लेकिन बाल सखा कृष्ण ने सच्ची दोस्ती निभाते हुए उन्हें वह सब दिया जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी.कृष्ण के मन की अभिव्यक्ति 'अमीर' मीनाई के इन शब्दों में मिलती है –
खंजर चले किसी पे तड़पते हैं हम 'अमीर'
सारे जहाँ का दर्द हमारे जिगर में है.
दोस्ती और दुश्मनी की हकीकत शायद 'माइल' देहलवी से बेहतर और कोई नहीं जानता –
लड़ते हैं बाहर जाके ये शेख और बिरहमन
पीते हैं मयकदे में सागर बदल बदल के.
वैसे दोस्तों की नसीहत से संभवतः मिर्जा गालिब भी परेशान थे. तभी तो उन्हें कहना पड़ा –
ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह
कोइ चारासाज होता, कोई गमगुसार होता.
'अमीर' मीनाई का सच्चा दोस्त दर्द था –
जब कहा उसने शबे गम को गमख्वार न था
दर्द ने उठ के कहा 'क्या ये गुनहगार न था ?'
लेकिन कुछ दोस्त ऐसे उबाऊ भी होते हैं जिनके खिसक लेने से ही राहत मिलती है -
गुजरा जहाँ से मैं तो कहा हँस के यार ने
"किस्सा गया,फिसाद गया, दर्दे- सर गया."
- पंडित दया शंकर 'नसीम' लखनवी
फिलहाल तो मैं भी इस पोस्ट से खिसक लेने में ही खैर समझता हूँ. नमस्कार !
wwaah wwah wwah wah wah wah wa wa wa wa a a a
जवाब देंहटाएंसुबहान-अल्लाह. बहुत खूब. क्या खूब शे’अर लेकर आये हैं.
जवाब देंहटाएंवाह्! जी वाह्! दोस्ती पर क्या बेहतरीन शेर प्रस्तुत किए हैं!!!!
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया!!
वैसे ये डे संस्कृ्ति अंग्रेजों को ही मुबारक!!
अब मित्रता ही ऐसी हो गईं हैं कि विशेष दिवस की आवश्यकता आ पड़ी है। :)
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
लड़ते हैं बाहर जाके ये शेख और बिरहमन
जवाब देंहटाएंपीते हैं मयकदे में सागर बदल बदल के.
hemji,
aapki post aapke vicharon se main sahmat hoon.
sarahneey.badhai!
विचारों में पूर्ण समानता.
जवाब देंहटाएंआपने तो मेरे दिल की ही बातों को लिख मारा.
विशेष प्रसन्नता हुई दिल और मन की बाते आप के ब्लाग पर देख कर.
हार्दिक आभार.
मित्र दिवस की शुभकामना के साथ
जवाब देंहटाएंबढ़िया पोस्ट के लिए बधाई.
और सब शायरों के नाम तो लिख दिए (आपके सारे शेर मैंने उतर लिए है )' आपकी दुनिया से मेरी दुनिया ' यह शेर किन का है ?
जवाब देंहटाएं@ BrijmohanShrivastava खेद है कि इस शेर के शायर का नाम मुझे स्वयं भी मालूम नहीं है.
जवाब देंहटाएंवाह बहुत बढ़िया! बहुत खूब लिखा है आपने!
जवाब देंहटाएंbahut khub .aabhar.
जवाब देंहटाएंjust amazing post sir , ksaare sher gazab ke hai ji , bus badhai hi badhai
जवाब देंहटाएंregards
vijay
please read my new poem " झील" on www.poemsofvijay.blogspot.com
रोचक लेख हेम जी ..
जवाब देंहटाएंऔर लाजवाब शेर पढने का आनंद भी साथ में
आभार !!
देर से आया पढ़ने हेम जी,...शुक्र है आ गया वर्ना एक अद्भुत प्रस्तुति रह जाती..
जवाब देंहटाएंबहुत खूब और इन शेरों ने मन मोह लिया!
ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह
जवाब देंहटाएंकोइ चारासाज होता, कोई गमगुसार होता.
शुक्रिया अच्छे शेर पेश किये आपने..