शनिवार, 8 मई 2010

हाड़ तोड़ प्रायवेट नौकरी या निकम्मी सरकारी ?

कुछ दिनों पहले एक समाचार पढ़ा था - आइ आइ टी और आइ आइ एम से निकलने वाले स्नातक अब मोटा वेतन देने वाली प्राइवेट कंपनियों के मुकाबले पी एस यू को तरजीह देने लगे हैं । समाचार के अनुसार हाल ही में मंदी का दौर देख चुके इन लोगों को मोटी तनख्वाह के मुकाबले नौकरी का स्थायित्व अधिक लुभा रहा है।

दो दिन पूर्व एक सरकारी दफ्तर में कार्यवश जाना हुआ। वहाँ मुझे पंद्रह मिनट रुकना पडा। इस दौरान मैं वहाँ के कुछ कर्माचारियों का वार्तालाप सुनता रहा-
एक मैडम - हमारे पड़ोसी की लड़की प्राइवेट कंपनी में काम करती है। सुबह सात बजे निकल जाती है रात के नौ बजे तक आती है। बड़ी खराब नौकरी है प्राइवेट की।
दूसरी मैडम - ये लोग पैसे तो अच्छे देते हैं, लेकिन खून चूस के रख लेते हैं।
तीसरे बाबू जी - इसके अलावा कभी भी नौकरी से छुट्टी कर सकते हैं। सरकारी नौकरी में जॉब सिक्युरिटी तो है।
पहली मैडम -जो प्राइवेट में नौकरी करता है वह ४० साल की उम्र में ही बीमारियों से घिर जाता है.

मेरे पिताजी ने रिटायरमेंट के बाद १३ साल तक पेंशन ली। उनकी मृत्यु के ३७ साल बाद तक मेरी माता जी ने मृत्युपर्यंत पिताजी की सरकारी सेवा के कारण पेंशन प्राप्त की ।

सारांश यही कि सरकारी नौकरी के अनेक सुख हैं । सरकार अपने सेवकों को सुविधायें दे रही है, यह एक अच्छी बात है,लेकिन सरकारी कर्मचारियों की जवाबदेही तय होनी चाहिए। यदि कोई परमानेंट सरकारी कर्मचारी अपना काम नहीं करता तो उसको नौकरी से निकालना तो दूर सख्त कार्यवाही करना भी आसान नहीं। यदि कोई कर्मचारी किसी कारणवश निलंबित हो जाय तो उसकी बहाली ९९% निश्चित जानिये।

जिन दफ्तरों का कार्यकाल १०-३० से ५-३० तक है वहां कर्मचारी ११ बजे बाद आना शुरू होते हैं। पूरी उपस्थिति १२-१२.३० बजे बाद ही दिखाई देती है। कुछ कर्मचारी तो कुछ दिनों में एक बार केवल हस्ताक्षर करने और वेतन लेने आते हैं। एक कार्यालय में एक महिला कर्मचारी न केवल अत्यधिक विलम्ब से आती थी वरन अपना निर्धारित काम भी पूरा नहीं करती थी। अधिकारी ने अनेक बार मौखिक चेतावनी दी।लेकिन महिला के कान पर जूँ भी नहीं रेंगी । अंत में उसको लिखित चेतावनी दी गयी। जवाब में महिला ने अनुसूचित जाति थाने में रिपोर्ट कर दी - चूंकि मैं अनुसूचित जाति की हूँ और मेरा लड़का इंजीनियरिंग की परीक्षा में उत्तीर्ण हो गया है और अधिकारी सवर्ण है ,इस लिये चिढ़ कर मुझे परेशान कर रहा है। हार कर अधिकारी ने महिला का काम अन्य कर्मचारी को सौंप दिया। यह सब मैं सुनी सुनाई बातों या कपोल कल्पना के अनुसार नहीं बल्कि अपनी व्यक्तिगत तथ्यात्मक जानकारी के आधार पर लिख रहा हूँ।

मैं निश्चित नहीं कर पा रहा हूँ कि नयी पीढी को प्रायवेट नौकरी में हाड़ तोड़ मेहनत करने की सलाह दूं या सरकारी नौकरी में जा कर निकम्मा बन जाने की ?

23 टिप्‍पणियां:

  1. सरकारी नौकरी में जा कर हाड़्तोड़ मेहनत करने की सलाह दीजिए। बहुत अच्छी पोस्ट है..."

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  2. निकम्मे बनने की ही सलाह दो इससे देश और आपसे सलाह मांगने वालों, दोनों का ही भला होगा.

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  3. आप की बात ठीक है, लेकिन जब भारत मै कोई कानून बन जाये कि प्रायवेट कम्पनियों मै भी कर्मचारियों को सरकारी सेवा वालिया ही सहुलियत मिले तो ओर काम के घंटे निशचित हो तो सब ठीक रहेगा, सरकारी नोकरी ने ही देश का सत्या नाश कर दिया है, ऊपर से यह आरक्षण

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  4. अगर निकम्मे नहीं होंगे तो देश कैसे चलेगा, जो निकम्मे नहीं बन पाये वो मजबूरी में प्राईवेट में नौकरी कर रहे हैं और करते रहेंगे।

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  5. सभी बराबर के दोषी हैं. प्राईवेट कम्पनियां भी भ्रष्टाचार फैलाने का मौका नहीं छोड़तीं और सरकारी कर्मचारी भी..

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  6. विकास प्राधिकरण और नगर निगम टैप के अर्ध-सरकारी विभागों में तो हाल और भी खराब है. कुल मिलाकर दुर्गति तो बेचारे ग्राहकों/ उपभोक्ताओं की ही होती है. मैंने लम्बे समय तक एक सरकारी बैंक में काम किया है और वहां के तब के माहौल को कई गैरसरकारी बैंकों से बेहतर पाया था.

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  7. हेम जी ,
    बहुत सोचने वाली बात कही है आपने ....

    दरअसल हमारा तंत्र ही कुछ ऐसा हो गया है | जब युवा लोग सरकारी नौकरी में आते हैं तो वो काम करने के लिए आते हैं और वो जी तोड़ काम कर सकते हैं परन्तु इस तंत्र में इतनी खामियां हैं की काम करने वाले को हर दिन नयी अड़चन का सामना करना पड़ता है | और कुछ दिन बाद या तो वह हार कर सरकारी तंत्र से अलविदा कह देता है या फिर तंत्र से सामंजस्य बना लेता है |
    और आरक्षण का मुद्दा तो अहम् है | यदि कोई आपका जूनियर कुछ दिन बाद आपसे कम योग्य होते हुए भी आपका बॉस बन जाये तो आप कैसे काम कर पाएंगे !
    इसके विपरीत प्राइवेट नौकरी में भी कुछ जगह तो काम है कभी कभी बाकी अगर आप लोगों से पूछें तो बस दिखाने के लिए | मेरे अपने क्षेत्र में तो अपने मित्रों से यही सुनता हूँ की काम जैसा काम तो निजी क्षेत्र में भी नही | बस बैठना है तो रुकना है .....:)

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  8. ऐसा नहीं है कि सरकारी नौकरी में सभी काहिली में डूबे हैं पर निश्चय ही परिस्थितियाँ उत्प्रेरक हैं ।

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  9. आपने सही मुद्दे को लेकर बहुत ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है! बढ़िया पोस्ट!

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  10. समस्या तो आपने एकदम वाजिब उठाई है. मेरे विचार से अगर हम समस्या के साथ अपनी तरफ से कुछ समाधान भी सोचे तो ज्यादा उत्तम होगा. हम सब जानते है कि ये हमारे सड़े हुए तंत्र की कारगुजारी है. मेरे विचार से जब तक सरकारी कर्मचारियों की जवाबदेही तय नहीं होती, उनके वेतन इत्यादि उनकी कार्यकुशलता पर नहीं निर्धारित होतें, तब तक कुछ ठोस निष्कर्ष निकलना मुश्किल ही है.

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  11. बहुत अच्छा आलेख। इससे ज़्यादा क्या कहें हम भी सरकारी कर्मचारी हैं।

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  12. मैं निश्चित नहीं कर पा रहा हूँ कि नयी पीढी को प्रायवेट नौकरी में हाड़ तोड़ मेहनत करने की सलाह दूं या सरकारी नौकरी में जा कर निकम्मा बन जाने की ?
    aapki chinta apni jagah par bilkul sahi hai .is samay sabhi mata pita ke liye bhi yah ek behad chinta ka vishhy bana hua hai ki apne bachchon ko kis lain me bhejain.kyon ki aaj kal har koi jyada sejyada aur jald sejald paise kamane ki ikchh rakhta hai.
    aapne sai baba ki photo apne desk top par laga di hai yah jankar hardik prasannta hui.dhanyvaad.
    poonam

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  13. SH. Praveen pandey ji se 100 fisadi sahamat ......lakin nikkmey logon ki tadat adhik hai....aapka anubhav or aapka sochna apni jagh pr uchit hai.sarkari naukri paakr bhi yadi koi kolhu ke bail kitrh pista hi rahega toh chain ki bansi kb bajayega...... ?

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  14. इस मामले में कोई न कोई प्रावधान ज़रूर होना चाहिए सरकारी नौकरी वालों के लिए ... बस आत्मविश्वास की कमी है .. वरना लागू करना मुश्किल नही ...

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  15. Sarkari naukarion me bhi jawabdehi tay karne ki jaroorat hai.

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  16. इस दौरान मैं वहाँ के कुछ कर्माचारियों का वार्तालाप सुनता रहा-
    एक मैडम - हमारे पड़ोसी की लड़की प्राइवेट कंपनी में काम करती है। सुबह सात बजे निकल जाती है रात के नौ बजे तक आती है। बड़ी खराब नौकरी है प्राइवेट की।
    दूसरी मैडम - ये लोग पैसे तो अच्छे देते हैं, लेकिन खून चूस के रख लेते हैं।
    तीसरे बाबू जी - इसके अलावा कभी भी नौकरी से छुट्टी कर सकते हैं। सरकारी नौकरी में जॉब सिक्युरिटी तो है।
    पहली मैडम -जो प्राइवेट में नौकरी करता है वह ४० साल की उम्र में ही बीमारियों से घिर जाता है.
    ....Sarkari daftar ka yatharth chitran kiya hai aapne...

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  17. आप सिर्फ ये सलाह दीजिये की ...वो जहाँ भी जाएँ अपने काम के प्रति वफादार और समर्पित रहें

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  18. मुश्किल तो दोनों तरफ है......नौकरी सरकारी हो या प्राईवेट......हर जगह कल्चर तो वही रहेगा.....आदमी तो सब यहीं के हैं न....!

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  19. यदि कोई कर्मचारी किसी कारणवश निलंबित हो जाय तो उसकी बहाली ९९% निश्चित जानिये।
    >>>
    ओह, कुछ कर्मचारी तो निलम्बित होना चाहते हैं कोई घरेलू काम निपटाने को। पता नहीं, फ्लिम्जी ग्राउण्ड पर निलम्बित होने के लिये घूस न चलती हो! :(

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  20. सभी जगह का अलग अलग वातावरण होता है..कुछ कुछ उच्चाधिकारी पर भी निर्भर करता है!सरकारी हो या प्राइवेट युवा लोग अक्सर भृष्ट तंत्र से ज्यादा परेशां होते है..बहुत अच्छा लिखा!

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