बुधवार, 2 जून 2010

जाति और स्वेटर

जाति आधारित जनगणना का मुद्दा आजकल चर्चा में है। जातिवादी राजनीति और आरक्षण इस देश का काफी नुक्सान कर चुके हैं । आगे और क्या होगा, यह देखना है। राज्य द्वारा विभिन्न जाति में भेद किये जाने का क्या दुष्परिणाम हो सकता है ,इसकी एक झलक मध्य प्रदेश राष्ट्र भाषा प्रचार समिति की द्वैमासिक पत्रिका 'अक्षरा' में प्रकाशित दिल्ली की कुहेली भट्टाचार्य की इस लघुकथा से मिलती है :

दो ही जातियों के लोग इस गाँव में रहते हैं.दोनों की ही आर्थिक स्थिति अत्यंत खराब है। पर्वतीय जनजातीय विभाग की ओर से स्वेटर दिए गए हैं स्कूली बच्चों में बांटने के लिये -पर केवल 'बैगर' जाति के छात्रों को, जबकि जरूरत सभी बच्चों को है। सर्दी के मौसम में सारे छात्र एक दूसरे से चिपक कर बैठे हुए थे और सामने शिक्षक खड़े थे। उनके हाथ में स्वेटरों का भारी बोझ था, पर वे उन्हें बाँट नहीं पा रहे थे। उनके लिये सारे बच्चे एक सामान थे। वे जानते थे- ये बच्चे जिनकी उम्र ७-८ साल है, जिन्हें अपनी जात - पात के बारे में कुछ नहीं पता, जो आपस में दोस्त हैं, एक दूसरे से चिपके बैठे हुए हैं,स्वेटर बंटते ही अलग हो जायेंगे। एक दल स्वेटर वाला, एक बिना स्वेटर वाला। शिक्षक किंकर्त्तव्यविमूढ़ थे।




15 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढिया कथा। लेकिन सरकार को यह सब नजर कहाँ आ रहा है जो एक शिक्षक को नजर आ रहा है....

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  2. बहुत बढिया कथा। लेकिन सरकार को यह सब नजर कहाँ आ रहा है जो एक शिक्षक को नजर आ रहा है....

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  3. बहुत मार्मिक सत्य को उजागर करती लघुकथा।

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  4. मार्मिक सच्चाई बयक्त की है आपने।

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  5. aapke sare lekh bade hi marmik hote hain.pandey ji apka lekhan sarahneey hota hai. badhai!!

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  6. ek achchi post ke liye badhai......laghu katha ka sahi jagh pr sahi upyog kiya aapne..........

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  7. .सर आपकी पोस्ट बहुत अच्छी लगी.लघुकथा बहुत अच्छी है आज कल तो हर तरफ यही बन्दर बाँट है.नाम दूसरे का और फ़ायदा सिर्फ उन्ही का जिनका आज तक होता आया है

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  8. ओह! सच में समस्या बहुत बड़ी है। यदि बड़ी नहीं है तो सरकार से बड़ा बना देगी।
    घुघूती बासूती

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