'तुम्हारा एक भी दांत न बचे ताकि तुम भात भी पीस कर खाओ, तुम इतने अशक्त हो जाओ कि शौच जाने के लिये भी लाठी का सहारा लेना पड़े'- यह वाक्य किसी व्यक्ति के लिए गाली की तरह ही प्रयुक्त किया जा सकता है. किन्तु कूर्मांचल के त्यौहार 'हरेला' में कुछ इसी तरह के वाक्यों से आशीष दी जाती है. कूर्मांचल में हरेला त्यौहार का महत्व इस तथ्य से भी पता लगता है कि इस दिन उत्तराखंड में शासकीय अवकाश रहता है.१७ जुलाई संक्रांत को हरेला था.साल भर में तीन हरेला पर्व होते हैं . इस त्यौहार में विभिन्न अनाजों को एक डलिया में ठीक उसी तरह बोया जाता है जैसे कई स्थानों में नवरात्र पर जवारे बोये जाते हैं. पर्व के दिन उन अनाजों के उगे पौधों को काट कर तिलक लगाने के बाद सर पर रखा जाता है. सर पर रखने की एक विशेष पद्धति होती है. पहले पैर. फिर घुटने , फिर कंधे को छुआते हुए अंत में सर पर रखे जाते हैं.त्यौहार की विस्तृत जानकारी के लिये लेख के अंत में , मैं लिंक दे रहा हूँ. यहाँ तो मैं सिर्फ हरेले के टीके के बाद दी जाने वाली आशीष का जिक्र करना चाहता हूँ.
जी रये, जागि रये
धरती जस आगव, आकाश जस चाकव है जये
सूर्ज जस तराण, स्यावे जसि बुद्धि हो
दूब जस फलिये,
सिल पिसि भात खाये, जांठि टेकि झाड़ जाये।
धरती जस आगव, आकाश जस चाकव है जये
सूर्ज जस तराण, स्यावे जसि बुद्धि हो
दूब जस फलिये,
सिल पिसि भात खाये, जांठि टेकि झाड़ जाये।
{जीते रहो,पृथ्वी के समान धैर्यवान,आकाश की तरह प्रशस्त( उदार) बनो,सूर्य के समान तेज, सियार के समान बुद्धि हो,दूब की तरह पनपो, इतने दीर्घायु हो कि ( दांतों से रहित )तुम्हें भात भी पीस कर खाना पड़े और शौच (जंगल) जाने के लिये भी लाठी का सहारा लेना पड़े.}
देखिये कैसे एक गाली सी लगने वाला वाक्य आशीष और शुभकामना में बदल गया. गाली को यह सौभाग्य पर्व के कारण मिल गया. धन्य हैं हमारे ऐसे पर्व जो गाली को भी आशीष में बदल देते हैं.
हरेला त्यौहार के लिंक -
ये आशीष ही है, कान पकड़ा गया है लेकिन हाथ घुमाकर।
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा इस त्यौहार के बार में जानकर।
बहुत खूब! क्या शुभकामनाये हैं!
जवाब देंहटाएंहद हो गई!!! :)
जवाब देंहटाएंवाह आनंद आ गया इस गाली को सुनकर ...इस प्रकार के प्रकरण बेहद आवश्यक हैं ...शुभकामनायें आपको !
जवाब देंहटाएंजीवन को ही महत्व दिया गया है इसलिए आशीष है कि तुम दीर्घायु बनो चाहे लाठी टेककर ही जीना क्यों ना पड़े। वर्तमान में तो कहा जाता है कि जो असमर्थ हो गए हैं वे अब जी कर क्या करेंगे। अच्छा प्रकरण बताया, आभार।
जवाब देंहटाएंवास्तविकता तो यही है!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक प्रथा।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब! क्या शुभकामनाये हैं!
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट में काफी जानकारी नई लगी
जवाब देंहटाएंआभार.
हिंदी ब्लॉग लेखकों के लिए खुशखबरी -
जवाब देंहटाएं"हमारीवाणी.कॉम" का घूँघट उठ चूका है और इसके साथ ही अस्थाई feed cluster संकलक को बंद कर दिया गया है. हमारीवाणी.कॉम पर कुछ तकनीकी कार्य अभी भी चल रहे हैं, इसलिए अभी इसके पूरे फीचर्स उपलब्ध नहीं है, आशा है यह भी जल्द पूरे कर लिए जाएँगे.
पिछले 10-12 दिनों से जिन लोगो की ID बनाई गई थी वह अपनी प्रोफाइल में लोगिन कर के संशोधन कर सकते हैं. कुछ प्रोफाइल के फोटो हमारीवाणी टीम ने अपलोड.......
अधिक पढने के लिए चटका (click) लगाएं
हमारीवाणी.कॉम
हिंदी ब्लॉग लेखकों के लिए खुशखबरी -
जवाब देंहटाएं"हमारीवाणी.कॉम" का घूँघट उठ चूका है और इसके साथ ही अस्थाई feed cluster संकलक को बंद कर दिया गया है. हमारीवाणी.कॉम पर कुछ तकनीकी कार्य अभी भी चल रहे हैं, इसलिए अभी इसके पूरे फीचर्स उपलब्ध नहीं है, आशा है यह भी जल्द पूरे कर लिए जाएँगे.
पिछले 10-12 दिनों से जिन लोगो की ID बनाई गई थी वह अपनी प्रोफाइल में लोगिन कर के संशोधन कर सकते हैं. कुछ प्रोफाइल के फोटो हमारीवाणी टीम ने अपलोड.......
अधिक पढने के लिए चटका (click) लगाएं
हमारीवाणी.कॉम
ये आशीष ही है, कान पकड़ा गया है लेकिन हाथ घुमाकर।
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा इस त्यौहार के बार में जानकर।
सचमुच..भारतीय पर्व त्योहार अपने आप में कुछ खास विशेषता रखते हैं...
जवाब देंहटाएंउत्तराखंड के आशीष पढ़ कर बहुत अच्छा लगा | जानकारी देने के लिए साधुवाद | उत्तराखंड के त्यौहार अधिकतर संक्रांतियों पर ही आधारित हैं | जिनको यहाँ सबसे अधिक मान्यता है | होली, दीवाली पर यहाँ उतनी रौनक ( लोगों के चेहरों पर ) नहीं दिखती जितनी संक्रांतियों पर , क्योंकि इन पर्वों पर चेली-बेटी अपने मायके जाती हैं या मायके वाले या ससुराल वाले उनके पास आते हैं |
जवाब देंहटाएंपाण्डेय जी हम अगर इन्हें गाली कहेंगे तो भैया हम तो इन्ही गालियों को पाकर बड़े हुए हैं और अब तो ये गालियाँ भी अपने लिए दुर्लभ हो गयी हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी।
जवाब देंहटाएंयह एक तरह से आशिष ही है... यानि सीधी साधी भाषा मै लोग यह कहना चाहते है कि तुम्हारी बहुत लम्बी उम्र हो, सुखी रहो पोतो ओर पड पोतो को खिला कर मरो... बहुत अच्छी आशीष है यह, ओर हमे इन बातो का बुरा नही मानाना चाहिये
जवाब देंहटाएं....जी रये, जागि रये
जवाब देंहटाएंधरती जस आगव, आकाश जस चाकव है जये
सूर्ज जस तराण, स्यावे जसि बुद्धि हो
दूब जस फलिये,
सिल पिसि भात खाये, जांठि टेकि झाड़ जाये।
sunder prastuti.
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंहमारे त्योहार बहुत विभिन्नताएँ लिए हैं ...
जवाब देंहटाएंअच्छी रोचक जानकारी लिए है ये पोस्ट ...
shaandaar galiyan !
जवाब देंहटाएंInteresting...thanks for sharing
जवाब देंहटाएंregards
कितनी मासूम गलियां हैं...वाह...मज़ा आ गया...
जवाब देंहटाएंनीरज
भारतीय संस्कृति के हजारों रंग.
जवाब देंहटाएंआनन्द आ गया. अनूथे आशीर्वाद सुनवाने के लिये धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
आपने विशिष्ट जानकारी है, धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंलोक संस्कृति की यही तो विशेषता है सब कुछ सहज होता है यहाँ |जहां गालियाँ भी आशीष बन जाये सब खुश और सुखी हो जाय|कुछ इसी तरह के त्यौहार हमारे यहाँ भी मनाये जाते है \अगर समय निकल सके तो कृपया देखे \
जवाब देंहटाएंलिंक है
http://shobhanaonline.blogspot.com/2010/03/blog-post_16.हटमल
http://shobhanaonline.blogspot.com/2010/03/blog-post_18.html
aadarniy sir,
जवाब देंहटाएंaapke dwara kiya gaya kurmaanchal pradesh ke ek tyohar ke baare me
varnan se thodi bahut jaankaari mili vaise ham isase anbhigy the. yah tyohar kuchch kuchch hamare maa durga puja ke tyohar se milta hai.is jaan kari ke liye hardik badhai swikaren.
poonam
यह आशीष सुनकर आनन्द आ गया। बचपन याद आ गया। मुझे हरेला की पाँव से सिर तक की यात्रा बहुत लुभाती थी।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
"सिल पिसि भात खाये, जांठि टेकि झाड़ जाये"
जवाब देंहटाएंये गाली नहीं है. मित्रों आप लोग गलत समझ बैठे सो गाली लग रही है.
इसका वास्तविक अर्थ है कि - हे प्रिय बांधव तुम अपना जीवन पूर्ण जिओ, बाल्यावस्था से ब्रुद्धावास्था पर्यंत. अर्थात तुम्हारी अकाल मृत्यु न हो.
अतः मित्रों! जैसे आप ' काला अक्षर भैंस बराबर ' को शाब्दिक अर्थों में न समझकर, गूढ़ अर्थों में समजते हैं, वैसे ही इसे भी समझिये.
मैं लेखक से अनुरोध करता हूँ कि सुधर लेख लिखें.
@ मोहन जोशी, बन्धु यह पूरा लेख केवल यही बताने के लिए है कि गाली जैसा लगने वाला यह वाक्य आशीष है |
जवाब देंहटाएं