यह सर्वज्ञात तथ्य है कि होमियोपैथी चिकित्सा पद्धति का जन्म जर्मनी में हुआ था. वहाँ के डाक्टर हैनिमेन ने १७९० में इसका प्रवर्तन किया था.इस पद्धति के बारे में अपने सामान्य ज्ञान से मुझे केवल इतना ज्ञात है कि होमियोपैथी चिकित्सा पद्धति में मरीज में दिख रहे लक्षणों के आधार पर बीमारी का इलाज किया जाता है.यह देखा जाता है कि मरीज के शरीर पर दिख रहे लक्षण किन पदार्थों ( दवाओं) से उपजते हैं.उपचार के लिए वही पदार्थ दवा के रूप में दिए जाते है.संक्षेप में यह पद्धति 'जहर को जहर मारता है' के सिद्धांत पर काम करती है.
मैंने कहीं पढा था कि वैदिक ग्रंथों और कुछ यूनानी ग्रंथों में भी इस पद्धति का उल्लेख मिलता है. मैंने इन ग्रंथों का अध्ययन नहीं किया है और निश्चित रूप से इस बारे में कुछ नहीं कह सकता. लेकिन मेरा विश्वास है कि जहर से जहर को मारने के सिद्धांत द्वारा भारत में अतीत में उपचार किये जाते होंगे. मेरा यह विश्वास श्रीमद्भागवत पुराण के प्रथम स्कंध के पाँचवे अध्याय के तैंतीसवें श्लोक से पक्का बना. वह श्लोक इस प्रकार है –
आमयो यश्च भूतानां जायते येन सुव्रत |
तदेव ह्यामयं द्रव्यं न पुनाति चिकित्सितं ||
-प्राणियों को जिस पदार्थ के सेवन से जो रोग हो जाता है वही पदार्थ चिकित्साविधि के अनुसार प्रयोग करने पर क्या उस रोग को दूर नहीं करता ?
(उपरोक्त श्लोक और उसका अर्थ मैंने गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवत पुराण से उद्धृत किया है)
उत्तराँचल के कूर्मांचल संभाग में किसी भी शुभ कार्य का प्रारंभ "शकुनाखर" गान से होता है. इसीलिये प्रस्तुत है शकुनाखर.....(शगुन के आँखर):
शुक्रवार, 24 जुलाई 2009
रविवार, 19 जुलाई 2009
प्रिंट मीडिया द्वारा हिन्दी की दुर्दशा
यह ज्ञात तथ्य है कि समाचार पत्र और पत्रकारिता ने अनेक नए शब्द दे कर हिन्दी को समृद्ध किया है. पिछले दिनों अजित वडनेरकर जी के 'शब्दों के सफ़र' में संचार माध्यमों द्वारा प्रयुक्त की जाने वाली हिन्दी के बारे में एक पोस्ट आयी थी. मैंने प्रिंट मीडिया द्वारा वर्तमान में हिन्दी की दुर्दशा किये जाने के बारे में उस पोस्ट पर टिप्पणि दी थी, जो संभवतः तकनीकी कारणों से प्रकाशित नहीं हुई. वही बात मैं इस पोस्ट द्वारा व्यक्त कर रहा हूँ. टी वी चेनलों द्वारा हिन्दी की दुर्दशा तो होती ही है.लेकिन समाचार पत्र और पत्रिकाएँ भी इस बात में पीछे नहीं हैं. 'इंडिया टुडे' और 'आउटलुक' के उच्चारण से यह नहीं लगता कि ये हिन्दी की पत्रिकाएँ हैं.संभवतः अपने अंगरेजी संस्करणों की लोकप्रियता और पहचान को बरकरार रखने के लिए इन्होंने हिन्दी में भी इसी नाम को अपनाया. लेकिन इस तरह से हिन्दी का नुक्सान तो कर ही दिया.
यहाँ मैं हिन्दी समाचार पत्र 'दैनिक भास्कर', जो उसमें छपने वाली एक पंक्ति के अनुसार 'भारत का सबसे बड़ा समाचार पत्र समूह' है, द्वारा की जाने वाली हिन्दी की दुर्दशा का वर्णन कर रहा हूँ. इस पत्र में छपने वाले कॉलम इस प्रकार हैं - 'मानसून वॉच' और 'न्यूज इनबॉक्स'. अन्य नमूने - सिटी अलर्ट,सिटी इन्फो, डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क,मार्केट डिजिट्स,वर्ल्ड स्पोर्ट्स, सिटी स्पोर्ट्स,आदि. गनीमत है की सिटी भास्कर , सिटी प्लस,सिटी हॉट और वूमन भास्कर में वे देवनागरी का प्रयोग कर रहे हैं. 'भास्कर classified' और 'DB स्टार' में तो उन्होंने देवनागरी को भी नहीं बख्शा है.
इस समाचार पत्र के 'एजुकशन भास्कर' पृष्ठ में छपे एक समाचार की हिन्दी पर गौर फरमाइए -
कैरियर के साथ वेलफेयर भी
नए कोर्स और कॉम्बिनेशन तो स्टूडेंट्स को लुभा ही रहे हैं, साथ ही सोशियोलोजी जैसे ट्रेडिशनल सब्जेक्ट भी ढेरों नये जॉब ऑप्शन अवेलेबल करवा रहे हैं.
क्लिष्ट हिन्दी का विरोध किया जाता है. सरल हिन्दी का प्रयोग किया जाना चाहिए. लेकिन यह कैसी हिन्दी है ?
यहाँ मैं हिन्दी समाचार पत्र 'दैनिक भास्कर', जो उसमें छपने वाली एक पंक्ति के अनुसार 'भारत का सबसे बड़ा समाचार पत्र समूह' है, द्वारा की जाने वाली हिन्दी की दुर्दशा का वर्णन कर रहा हूँ. इस पत्र में छपने वाले कॉलम इस प्रकार हैं - 'मानसून वॉच' और 'न्यूज इनबॉक्स'. अन्य नमूने - सिटी अलर्ट,सिटी इन्फो, डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क,मार्केट डिजिट्स,वर्ल्ड स्पोर्ट्स, सिटी स्पोर्ट्स,आदि. गनीमत है की सिटी भास्कर , सिटी प्लस,सिटी हॉट और वूमन भास्कर में वे देवनागरी का प्रयोग कर रहे हैं. 'भास्कर classified' और 'DB स्टार' में तो उन्होंने देवनागरी को भी नहीं बख्शा है.
इस समाचार पत्र के 'एजुकशन भास्कर' पृष्ठ में छपे एक समाचार की हिन्दी पर गौर फरमाइए -
कैरियर के साथ वेलफेयर भी
नए कोर्स और कॉम्बिनेशन तो स्टूडेंट्स को लुभा ही रहे हैं, साथ ही सोशियोलोजी जैसे ट्रेडिशनल सब्जेक्ट भी ढेरों नये जॉब ऑप्शन अवेलेबल करवा रहे हैं.
क्लिष्ट हिन्दी का विरोध किया जाता है. सरल हिन्दी का प्रयोग किया जाना चाहिए. लेकिन यह कैसी हिन्दी है ?
सोमवार, 13 जुलाई 2009
अंधविश्वास पर विश्वास कीजिये
अन्धविश्वासी या रूढिवादी व्यक्ति अच्छी नजर से नहीं देखा जाता. उदाहरणस्वरूप यदि बिल्ली रास्ता काट जाए और इसे अपशकुन मान कोई व्यक्ति अपना कोई कार्य स्थगित कर दे तो वह पिछड़ा माना जाएगा.लेकिन मैं यहाँ, अंधविश्वास पर विश्वास न करते हुए भी उसके पक्ष में लिखने जा रहा हूँ.हमें ठीक ठीक यह मालूम नहीं है कि बिल्ली का रास्ता काटना अपशकुन(बुरा) क्यों है. लेकिन यदि बिल्ली के रास्ता काटने पर कोई व्यक्ति अपना प्रस्थान स्थगित कर देता है और ऐसा करने से उसकी कोई हानि नहीं होती तो इसमें बुराई क्या है. पिछले दिनों एक ब्लॉग में समाचार पत्रों में छपने वाले दैनिक या साप्ताहिक भविष्य फल की आलोचना की गयी थी. इन भविष्य फलों पर अविश्वास करने के बावजूद मैं यह कहना चाहता हूँ कि यदि आपके भविष्य फल में लिखा है कि नीला रंग शुभ फल दायक है. आपके पास नीली शर्ट है. उसे आप पहन लेते हैं तो हानि क्या है. मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि अन्धविश्वासी बातों पर अंधविश्वास तो मत कीजिये लेकिन यदि उन बातों को मानने से किसी का कोई नुक्सान न होता हो तो उन्हें मानने में हर्ज नहीं. हाँ ये अंधविश्वास उपजे कैसे इसकी तर्क संगत खोज की जानी चाहिए. ऐसा न हो कि गहराई में जाने पर हमें मालूम पड़े कि जिसे हम अंधविश्वास मानते थे वह एक वैज्ञानिक सच्चाई है.
एक सत्य घटना देकर अपनी बात समाप्त करता हूँ.- मेरी बेटी, जो अब एक बच्ची की माँ है,जन्म के कुछ दिन भीतर ही पीलिया से पीड़ित हो गयी और उसके गले के पास एक फोड़ा हो गया,जिसका आपरेशन २०-२५ दिन की आयु के भीतर ही करना पडा था. बच्ची अस्पताल में थी और उस के जीवित रहने की आशा बहुत कम थी.हमारे एक पारिवारिक मित्र ( जिनका अहसान मैं आज भी मानता हूँ ) ने राय दी कि बच्ची की झाड़ फूंक की जावे.इन बातों पर विश्वास न होने के कारण मैंने विशेष रूचि नहीं ली.अधिक आग्रह करने पर मैं यह उपाय भी आजमाने को राजी हो गया. मैं यह नहीं मानता कि मेरी बेटी उस झाड़ फूंक से बच गयी. लेकिन यह मानता हूँ कि यदि झाड़ फूंक न की होती और उसका अनिष्ट हो जाता तो आजीवन मलाल रहता.
एक सत्य घटना देकर अपनी बात समाप्त करता हूँ.- मेरी बेटी, जो अब एक बच्ची की माँ है,जन्म के कुछ दिन भीतर ही पीलिया से पीड़ित हो गयी और उसके गले के पास एक फोड़ा हो गया,जिसका आपरेशन २०-२५ दिन की आयु के भीतर ही करना पडा था. बच्ची अस्पताल में थी और उस के जीवित रहने की आशा बहुत कम थी.हमारे एक पारिवारिक मित्र ( जिनका अहसान मैं आज भी मानता हूँ ) ने राय दी कि बच्ची की झाड़ फूंक की जावे.इन बातों पर विश्वास न होने के कारण मैंने विशेष रूचि नहीं ली.अधिक आग्रह करने पर मैं यह उपाय भी आजमाने को राजी हो गया. मैं यह नहीं मानता कि मेरी बेटी उस झाड़ फूंक से बच गयी. लेकिन यह मानता हूँ कि यदि झाड़ फूंक न की होती और उसका अनिष्ट हो जाता तो आजीवन मलाल रहता.
गुरुवार, 9 जुलाई 2009
श्रद्धांजलि
दिवंगत आत्माओं को श्रद्धांजलि देने हेतु लोगों के अपने अपने तरीके हैं. कुछ लोग समाचार पत्रों में विज्ञापन दे कर दिवंगत आत्माओं को श्रद्धांजलि देते हैं. एक परिवार द्बारा अपने दिवंगत आत्मीय की
प्रथम पुण्य तिथि पर श्रद्धांजलि देने हेतु दिए गए विज्ञापन में मैंने एक कविता पढी.मैं न तो उस दिवंगत आत्मा को जानता हूँ. न उनके परिवार को. मुझे यह भी मालूम नहीं कि कविता उस परिवार ने कहीं से उद्धृत की है या परिवार के ही किसी सदस्य ने लिखी है. वह कविता मुझे एक उत्कृष्ट रचना लगी. मैं उसे आप लोगों से साझा करना चाहता हूँ -
पत्र में मैंने लिखी
कुछ वेदना की बात थी,
नम आँखों की दवात में,
स्याही भी पर्याप्त थी |
वर्ष भर लिखता रहा
तुम्हारे विछोह में,
किन्तु पत्र भेज न सका
पते की उहापोह में -
पता भी अज्ञात था,
शहर-गली अज्ञात थी -
सिर्फ नाम लिख दिया पत्र डाल दिया डाक में -
दूसरे ही दिन खड़ा था, देख कर अवाक मैं,
पत्र ले कर मेरे सामने खड़ा था डाकिया
मेरे अन्दर ही तो उसने, तुम्हें था जो पा लिया ||
प्रथम पुण्य तिथि पर श्रद्धांजलि देने हेतु दिए गए विज्ञापन में मैंने एक कविता पढी.मैं न तो उस दिवंगत आत्मा को जानता हूँ. न उनके परिवार को. मुझे यह भी मालूम नहीं कि कविता उस परिवार ने कहीं से उद्धृत की है या परिवार के ही किसी सदस्य ने लिखी है. वह कविता मुझे एक उत्कृष्ट रचना लगी. मैं उसे आप लोगों से साझा करना चाहता हूँ -
पत्र में मैंने लिखी
कुछ वेदना की बात थी,
नम आँखों की दवात में,
स्याही भी पर्याप्त थी |
वर्ष भर लिखता रहा
तुम्हारे विछोह में,
किन्तु पत्र भेज न सका
पते की उहापोह में -
पता भी अज्ञात था,
शहर-गली अज्ञात थी -
सिर्फ नाम लिख दिया पत्र डाल दिया डाक में -
दूसरे ही दिन खड़ा था, देख कर अवाक मैं,
पत्र ले कर मेरे सामने खड़ा था डाकिया
मेरे अन्दर ही तो उसने, तुम्हें था जो पा लिया ||
शनिवार, 4 जुलाई 2009
सवा साल की नातिन ने दिया ज्ञान
मेरी सवा साल की नातिन हमेशा खुश रहती है. उसकी खुशी, खिलखिलाहट, चंचलता और शैतानियाँ मुझे भी खुश कर देती हैं. मैं सोचता हूँ - मेरी नातिन की खुशी का राज क्या है ? क्या मेरी नातिन को मेरी तरह कोई तनाव नहीं है ? - है. जब उसको किसी शैतानी करने से रोका जाता है तो वह खीझ जाती है. तब या तो वह उस शैतानी को भूल किसी दूसरी शैतानी मैं व्यस्त हो जाती है या जोर जोर से रो- चिल्ला कर अपना रोष व्यक्त करने लगती है. अर्थात उसने अपने तनाव दूर करने के रास्ते खोज रखे हैं - या तो भूल जाओ कि कोई तनाव पैदा करने वाला कारण भी है या अपना रोष खुल कर प्रकट कर दो.
मैं अपने से तुलना करता हूँ - मैं अपने सारे तनाव अपने पास ही रखता हूँ. किसी एक को भी भूल नहीं पाता और न ही उन तनावों के खिलाफ खुल कर अपना गुस्सा निकाल पाता हूँ. ज्ञानदत्त पाण्डेय जी द्वारा बताया गया नुस्खा मुझे रास नहीं आया. नातिन के खुश रहने का दूसरा कारण छोटी-छोटी बातों में खुशी ढूंढ लेना है. जब डोर बेल बजती है, वह दरवाजे की ओर इशारा कर के और 'वो' शब्द का उच्चारण कर के बताती है- कोई आया है. दरवाजा खोलने पर जब उसके पापा खड़े मिलते हैं तो उसके चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ जाती है. उनके हाथ से हेलमेट ले कर टेबल तक पहुंचाने और उसके बाद उनकी गोद में जाना भी उसकी खुशी का एक स्रोत है.उसको जब दो नन्हीं चूडियाँ पहनाई जाती हैं. वह खुश हो जाती है और हाथ नचा नचा के.'चूई' 'चूई' बोलती हुई अपनी चूड़ियाँ दिखाती है.
क्या मेरे पास नातिन की तरह खुश होने के छोटे छोटे कारण नहीं हैं ?- हैं. मुझे सब कुछ भूल कर खुश होना चाहिए जब मेरी बालकनी में चिड़िया आकर फुदकने लगती है, जब बारिश की बूँदें रिमझिम कर मुझे भिगोने लगती हैं, जब पत्नी के साथ बैठ कर सुकून से चाय की चुस्की ले रहा होता हूँ या परिवार के साथ बैठ कर भोजन कर रहा होता हूँ. लेकिन शायद उस समय भी मेरे मस्तिष्क में मायकल जैक्सन की मौत, रेल बजट या कार्यस्थल के तनावों को लेकर ऊहापोह चल रही होती है.
तो क्या मैं इस लिए खुश नहीं हो सकता क्योंकि मैं बच्चा नहीं बन सकता ? तभी मेरी नातिन अपनी शैतानियों के क्रम में मंदिर से श्रीमद्भग्वद्गीता का गुटका उठा कर ले आती है, मानो कह रही हो - नानाजी आपकी खुशियों का राज इसमें छुपा है.
मैं अपने से तुलना करता हूँ - मैं अपने सारे तनाव अपने पास ही रखता हूँ. किसी एक को भी भूल नहीं पाता और न ही उन तनावों के खिलाफ खुल कर अपना गुस्सा निकाल पाता हूँ. ज्ञानदत्त पाण्डेय जी द्वारा बताया गया नुस्खा मुझे रास नहीं आया. नातिन के खुश रहने का दूसरा कारण छोटी-छोटी बातों में खुशी ढूंढ लेना है. जब डोर बेल बजती है, वह दरवाजे की ओर इशारा कर के और 'वो' शब्द का उच्चारण कर के बताती है- कोई आया है. दरवाजा खोलने पर जब उसके पापा खड़े मिलते हैं तो उसके चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ जाती है. उनके हाथ से हेलमेट ले कर टेबल तक पहुंचाने और उसके बाद उनकी गोद में जाना भी उसकी खुशी का एक स्रोत है.उसको जब दो नन्हीं चूडियाँ पहनाई जाती हैं. वह खुश हो जाती है और हाथ नचा नचा के.'चूई' 'चूई' बोलती हुई अपनी चूड़ियाँ दिखाती है.
क्या मेरे पास नातिन की तरह खुश होने के छोटे छोटे कारण नहीं हैं ?- हैं. मुझे सब कुछ भूल कर खुश होना चाहिए जब मेरी बालकनी में चिड़िया आकर फुदकने लगती है, जब बारिश की बूँदें रिमझिम कर मुझे भिगोने लगती हैं, जब पत्नी के साथ बैठ कर सुकून से चाय की चुस्की ले रहा होता हूँ या परिवार के साथ बैठ कर भोजन कर रहा होता हूँ. लेकिन शायद उस समय भी मेरे मस्तिष्क में मायकल जैक्सन की मौत, रेल बजट या कार्यस्थल के तनावों को लेकर ऊहापोह चल रही होती है.
तो क्या मैं इस लिए खुश नहीं हो सकता क्योंकि मैं बच्चा नहीं बन सकता ? तभी मेरी नातिन अपनी शैतानियों के क्रम में मंदिर से श्रीमद्भग्वद्गीता का गुटका उठा कर ले आती है, मानो कह रही हो - नानाजी आपकी खुशियों का राज इसमें छुपा है.
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