विभिन्न कारणों से लगभग पिछले दो माह से ब्लॉग जगत से दूर रहा. आगे भी कितना नियमित रह पाऊंगा निश्चित नहीं. इस बीच अनेक विचार उपजे, अनेक घटनाएं घटीं जिन्हें ब्लॉग में देने की इच्छा है. इस निमित्त अपना ब्लॉग खोला तो उसमें प्रिंट मीडिया द्वारा की जा रही हिन्दी की दुर्दशा पर मेरे
लेख
पर श्री शैलेश की टिपण्णी मिली, जिसके द्वारा इसी विषय पर श्री प्रभु जोशी द्वारा लिखे गए गंभीर लेख का
लिंक मिला. लेख पढने के लिए थोड़ा समय और थोड़ा धीरज मांगता है.लेख में कुछ गंभीर बातों का जिक्र किया गया है. श्री जोशी के अनुसार मध्य प्रदेश के एक समाचार पत्र के सम्पादकीय विभाग के कर्मचारियों को बाकायदा निर्देश दिए गए थे कि वे समाचारों में शुद्ध हिन्दी की अपेक्षा हिंग्लिश को तरजीह दें. उनके अनुसार इस हिंग्लिश का प्रयोग अनायास ही नहीं हो रहा है अपितु एक षडयंत्र के तहत सायास हो रहा है और धीरे धीरे देवनागरी के स्थान पर रोमन लिपि प्रयोग किये जाने का षडयंत्र रचा जा रहा है. यदि वास्तव में ऐसा है तो यह एक गंभीर बात है. इसका प्रतिरोध किया जाना चाहिए. श्री जोशी ने इस प्रतिरोध का तरीका भी बताया है, जिसे उन्होंने स्वयं भी अपनाया. उनके अनुसार हिन्दी प्रेमियों को व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से ऐसे समाचार पत्रों को पत्र लिख कर अपना विरोध जताना चाहिए.
हिन्दी ब्लोगर भी अपना विरोध इसी तरह से दर्ज करा सकते हैं. बल्कि वे अपने ब्लॉग में भी इस षडयंत्र के विरुद्ध अवश्य लिखें. आखिर हिन्दी के बचे रहने पर ही हिन्दी ब्लोगिंग बची रहेगी.
उनके अनुसार इस हिंग्लिश का प्रयोग अनायास ही नहीं हो रहा है अपितु एक षडयंत्र के तहत सायास हो रहा है और धीरे धीरे देवनागरी के स्थान पर रोमन लिपि प्रयोग किये जाने का षडयंत्र रचा जा रहा है.
जवाब देंहटाएंसारे लोग देश के दुश्मन ही बन गए हैं क्या ??
बहुत बढीया लिखा है आपने, सटीक निसाना।
जवाब देंहटाएंहिंग्लीश का प्रयोग बहुत ज्यादा हो रहा है क्यों की बहुत कम लोग शुद्ध हिन्दी का प्रयोग करते हैं और कई तो जानते भी नही हैं।
ईसी कमेंट को हिंग्लीश मे:
हिग्लीस का यूज एक्स्ट्रा हो रहा है क्यो की बहोत कम पीप्लस प्योर हिन्दी का यूज करते हैं एन्ड लोट्स आफ पिपल डान्ट नो प्योर हिन्दी
सही बात
जवाब देंहटाएंजो हम अपने को बचाने के लिये करते है,
जवाब देंहटाएंलालाओं के अखबार जब धंधा बन जाएंगे तो यही होगा
जवाब देंहटाएंसही बात कही आपने
जवाब देंहटाएंइनकी पता नहीं, हमें तो यह लगता है कि हम अपने सम्प्रेषण के प्रति सचेत रहें। जिस भी प्रकार से हम अपने को समझा पायें, वह प्रयोग करें। उससे हिन्दी की सेवा हो जाये तो वह घेलुआ में!
जवाब देंहटाएंहम तो भरसक प्रयास करते हैं।
जवाब देंहटाएंअन्यों की क्या कहें?
स्वच्छ सम्प्रेषण का माध्यम कायम रहे.
जवाब देंहटाएं- सुलभ जायसवाल 'सतरंगी'
बहुत अच्छी बात लिखी है आपने ।मेरा विचार थोडा भिन्न है आपसे -रोमन के वाबत । देवनागरी की जगह रोमन का प्रयोग -यह रोमन क्या हिन्दी, इंगलिश , उर्दू ,फ़ारसी की तरह कोई भाषा है ?आदमी के लिये हिन्दी मे मानव , इंगलिश मे मेन - रोमन मे क्या लिखेंगे ? आपका लेख प्रभाव शाली व असरदार है इसका प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि नौ टिप्पणियां ही हिन्दी मे आई है ,ऐसा अन्य किसी ब्लोग पर मैने नही देखा। कुन्नू सिंह जी का व्यंग्य भा गया ।इसे आप प्रतिकूल टिप्पणी न समझें क्योकि इस टीप का पहला शब्द ""बहुत " लिखने मे मुझे बी ए एच यु टी टाइप करना पडा है .तब यह्शब्द परिवर्तित हुआ ।
जवाब देंहटाएंyah baat sahi hai hum aapke saath khade hai............
जवाब देंहटाएंआपकी चिंता वाजिब है. लेकिन यह भी सत्य है कि समय के साथ भाषा का स्वरुप बदलता रहा है और कुछ अखबारों के मठाधीश इसकी दिशा तय नहीं कर सकते हैं.
जवाब देंहटाएंहिंदी की दुर्दशा किसी और ने नहीं...हमने खुद की है!जब आज पूरे विश्व में हिंदी को पसंद किया जा रहा है,तो हमारे यहाँ अंग्रेजी को बढ़ावा दिया जा रहा है.. !अंग्रेजी भले ही बोलिए,लेकिन हिंदी की कीमत पर नही...
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