मेरा मानना है -पाक कला या व्यंजनों के बारे में संजीव कपूर जैसे लोग लिखें तो उसकी अहमियत है। लेकिन जब विभिन्न व्यंजनों के बारे में वीर संघवी और पुष्पेश पन्त के लेख राष्ट्रीय पत्रों में पढ़े तो मुझे लगा जो राजनीति, समाज और साहित्य आदि के बारे में लिख सकता है उसे खाने के बारे में लिखने का भी अधिकार हासिल हो जाता है। इसी नाते मैंने जबरदस्ती यह अधिकार हासिल कर आज एक कूर्मांचलीय व्यंजन और जैन समाज में लोक प्रिय एक चूर्ण के बारे में लिखने का संकल्प कर लिया।
चित्र में दिख रहा व्यंजन कूर्मांचलीय व्यंजन सिंहल है,जो चावल के आटे में शुद्ध घी का मोयन दे कर दही में दो तीन घंटे भिगो कर बनाया जाता है। इसमें शक्कर भी मिलाई जाती है। स्वाद के लिए कुछ लोग इलायची, सौंफ भी मिलाते हैं। इस तरह के पेस्ट को हथेली की मुट्ठी में भर कर घी या तेल में जलेबी के आकार का तल लिया जाता है। कूर्मांचल में त्योहारों में पकवान के रूप में इसे बनाया जाता है। वहां बुजर्ग महिलाएं इसे बनाने में माहिर होती हैं। अब कुछ महिलाएं चावल के आटे के स्थान पर सूजी ( रवा) का प्रयोग करती हैं। अनेक कूर्मांचलीयों की तरह मुझे भी यह व्यंजन बहुत पसंद है। मैं खुश किस्मत हूँ कि मेरी पत्नी इसे बना लेती है और प्रायः नाश्ते के रूप में यह व्यंजन मुझे मिल जाता है। कुछ लोग इसे ककड़ी के रायते में भिगो कर खाना पसंद करते हैं। मुझे 'जीरामन' के साथ सिंहल खाना भी रुचिकर लगा। संभवतः यह व्यंजन सम्पूर्ण भारत में केवल कूर्मांचल में ही बनता है। लेकिन वहां भी इसका स्वाद लेने के लिए किसी घर की शरण लेनी पड़ेगी क्योंकि बाजार में कहीं भी इसका व्यावसायिक उत्पादन नहीं होता।
'जीरामन' एक प्रकार की सूखी चटनी है जो अनेक मसालों को मिला कर बनायी जाती है और जैन समाज में अत्यंत लोकप्रिय है । इसका व्यावसायिक उत्पादन करने वाले एक व्यापारी ने मुझे बताया कि इसमें ८० प्रकार के मसाले मिलाये जाते हैं। लेकिन मुझे केवल १९ वस्तुओं की ही जानकारी मिल पायी। ये हैं - सादा नमक, मिर्च,अमचूर या आंवला,धनिया, हल्दी, काला नमक, जीरा,सौंफ,सौंठ,दाल चीनी, अजवाइन, लौंग,तेजपत्ता,बड़ी इलायची, सिया जीरा, जायपत्री,जायफल, हींग, हर्र। बहरहाल मसालों की संख्या जो भी हो लेकिन उनका उचित अनुपात ही जीरामन को इतना स्वादिष्ट बना पाता होगा। कूर्मान्चाली सिंहल जैनी जीरामन के साथ कुछ और ही स्वाद देता है।
सिंहल और जीरामन की पाक विधियों के लिए शुक्रिया!
जवाब देंहटाएंकूर्मांचलीय व्यंजन सिंहल और जीरामन के बारे में जानकार अच्छा लगा. ऐसी ही अन्य आंचलिक जानकारियों की दरख्वास्त है, आशा है आप लिखते रहेंगे.
जवाब देंहटाएंसिंहल के बारे में पढ़कर अच्छा लगा। कुच वर्ष पहले तक मैं भी हर त्यौहार पर सिंहल बनाती थी।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
बहुत अच्छी जानकारी---इसे बनाने की कोशिश करूंगी।
जवाब देंहटाएंपूनम
वाह अच्छी जानकारी !!
जवाब देंहटाएंआपकी दुकान पर तो सब मिलता है!
जवाब देंहटाएंसाहित्य से लेकर कुर्मांचलीय व्यंजन तक..
सिंघल नेपालियों का भी प्रचलित व्यंजन है इसे वहां सेल कहते हैं..
बनाने का तरीका लगभग समान।
अच्छी जानकारी ....... कभी मौका लगा तो हम भी आनंद लेंगे .........
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी है आज ही कोशिश करते हैं धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंAdarneey Hem ji,
जवाब देंहटाएंAb shreematee ji se aj hee banava kar dekhenge.
svadisht to hona chahiye----
HemantKumar
ऐसे ही चकरीदार व्यंजन देखा था दक्षिण में - शायद मुरक्कू कहते थे!
जवाब देंहटाएं..जो राजनीति, समाज और साहित्य आदि के बारे में लिख सकता है
जवाब देंहटाएंउसे खाने के बारे में लिखने का भी अधिकार हासिल हो जाता है।
Chaliye adhikar to aapne hasil kar liya,ab iska barabar istmaal karte rahiye.
Waise pahla istmal kaphi swadist jaan padta hai.
jeeravan to bna lete hai ab sihnl jarur bnayege bahut sarl vidhi hai .achhi jankari.
जवाब देंहटाएंइस बेहतरीन रचना के लिए आप को
जवाब देंहटाएंबहुत -२ आभार
आपको और आपके परिवार को नए साल की हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा है आपने!
Jai Shri Krishna,
जवाब देंहटाएंNice reading.
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djyu pelag bhal lagi tumari post..............ghughutiya tayohar mubarak
जवाब देंहटाएंमकर संक्रांति की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ!
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