दुर्गोत्सव सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर देश के कुछ भागों में जगह जगह झाँकियाँ लगा कर उत्सव मनाया जाता है।धार्मिक भावना,हर्षोल्लास और उमंग के इस त्यौहार के साथ अनेक बुराइयाँ भी जुड़ गयीं हैं। उनका निराकरण किया जाना चाहिए। निराकरण के उपाय कैसे अपनाए जाएँ , यह मैं स्वयं नहीं जानता। हाँ उन बुराइयों को इंगित अवश्य किए देता हूँ :-
१- अनेक स्थानों पर आयोजन हेतु जबरन चन्दा वसूली।
२- सार्वजनिक स्थानों पर इस प्रकार झाँकी लगा देना कि यातायात अवरुद्ध हो।
३- लाउड स्पीकरों के प्रयोग से आसपास रहने वालों को असुविधा उत्पन्न होना, जिनमें विद्यार्थी और बीमार भी शामिल हैं।
४- झाँकी स्थल पर ऐसे कार्यक्रम आयोजित होना जो धार्मिक आयोजन के अनुरूप न हों।
५- विशालकाय मूर्तियों का विसर्जन, जो विसर्जन स्थल को प्रदूषित करता है।
- इन बुराइयों के निराकरण हेतु शहर के जिम्मेदार नागारिकों द्वारा स्थानीय स्तर पर त्यौहार समीतियाँ बना कर सभी मुहल्लों की समितियों पर नियंत्रण रखा जा सकता है।
दुर्गोत्सव का सबसे उजला पक्ष कन्या पूजन है।यदि हम कन्या को पूज रहे हैं, तो हमारा कर्तव्य है कि अपने दैनिक जीवन में भी हम कन्या को यथोचित सम्मान दें। अन्यथा एक दिन की हमारी यह पूजा कोरा कर्मकांड और दिखावे की धार्मिकता है.
विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंअसत्य पर सत्य की जीत के पावन पर्व
जवाब देंहटाएंविजया-दशमी की आपको शुभकामनाएँ!
अंत:दृष्टा जो हैं हम
जवाब देंहटाएं"दुर्गोत्सव का सबसे उजला पक्ष कन्या पूजन है।यदि हम कन्या को पूज रहे हैं, तो हमारा कर्तव्य है कि अपने दैनिक जीवन में भी हम कन्या को यथोचित सम्मान दें।"
जवाब देंहटाएंपूर्ण सहमति! विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ!
आपसे पूरी तरह सहमत हैं विजयदशमी की बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंहेम सर जी,
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही बात है, लेकिन लोगों को मना करने पर उनका मिजाज़ देखा कीजिये जैसे कोई अधार्मिक बात कर दी हो |
सबसे बड़ी प्रॉब्लम मुझे तो लाउड स्पीकर कि लगती है, क्योंकि मैं इसका अच्छा भला भुगत भोगी हूँ | आजकल अत्यधिक शक्ति वाले डी जे स्पीकर्स भी प्रयोग किये जाते हैं उनका तो कहना ही क्या !!
हमारे यहाँ कोई हवन कराये, रामायण का पाठ कराये, रात्रि जागरण, या कोई भी बड़ा पूजा पाठ कार्ये हो लाउड स्पीकर के बिना तो कोई पूरा होने कि सोचता भी नहीं |
अब इनको कौन समझाए कि जब 500 या 1000 साल पहले लाउड स्पीकर नहीं था तब क्या धार्मिक कर्म-कांड नहीं होते थे या वो क्या अधूरे समझे जाते थे |
आजकल के पूजा उत्सवों और अम्युज़मेंट पार्कों या मेले में मुझे तो कोई फर्क ही नज़र नहीं आता, भीड़ इतनी कि भक्ति का भाव तो दूर दंगा फसाद होने कि पूरी-पूरी संभावना रहती है |
आप ने बहुत सही गिनवाई आज की बुरईयां,जबरन चंदा बसुलना, शोर शराबा, दिखावा, याता यात ठप... लडाई झगडे, बदमासी क्या कोई त्योहार ऎसे भी मनाया जाता है, लेकिन अब हमारे ज्यादा तर त्योहार ऎसे ही मनते है.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
आप को ओर आप के परिवार को विजयदशमी की शुभकामनाएँ!
हेम जी प्रणाम ...... अपने सच लिखा है समय के साथ साथ कुछ न कुछ आडम्बर हर आयोजन में आ जाते हैं और जागरूक वाई है जो इनको समझ कर सुधार करता रहे ...... हमारे सभी त्योहारों में उनके मनाने के तरीकों में, उनकी श्रधा बनी रहे इस बात को सुनिश्चित करने के लिए सतत प्रयास होने चाहिए और हनारे समाज में ही होने चाहियें जिससे गरिमा बनी रहे ....... आपका लेख बहूत सामयिक है .....
जवाब देंहटाएंदुर्गोत्सव का सबसे उजला पक्ष कन्या पूजन है।यदि हम कन्या को पूज रहे हैं, तो हमारा कर्तव्य है कि अपने दैनिक जीवन में भी हम कन्या को यथोचित सम्मान दें। अन्यथा एक दिन की हमारी यह पूजा कोरा कर्मकांड और दिखावे की धार्मिकता है.
जवाब देंहटाएं....बिलकुल सही
बन्धु, आपने तो मेरे विचारों को भाषा दे दी. पहली बार आपके ब्लॉग पर आया और शुक्र है खाली हाथ नहीं लौटा हूँ. दरअसल, धर्म का कोई भी वह रूप, जो चौराहे पर आ जाये, समाज के लिए घातक होता है. दुर्गा पूजा, काली पूजा, सरस्वती पूजा, गणेशोत्सव, मुहर्रम, बारावफात आदि से जहाँ चंदा वसूली, ध्वनि प्रदूषण जैसे मामले उभरते हैं वहीं साम्प्रदायिक माहौल भी.....आपके लेखन से प्रार्थी प्रसन्न हुआ.
जवाब देंहटाएंदुर्गोत्सव का सबसे उजला पक्ष कन्या पूजन है।यदि हम कन्या को पूज रहे हैं, तो हमारा कर्तव्य है कि अपने दैनिक जीवन में भी हम कन्या को यथोचित सम्मान दें। अन्यथा एक दिन की हमारी यह पूजा कोरा कर्मकांड और दिखावे की धार्मिकता है.
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही. विजयदशमी की बहुत बहुत बधाई!!
aapki baat se poorntah sahmat hun.
जवाब देंहटाएंaapki hr baat se sehmat hooN
जवाब देंहटाएंzaroorat hai jaagruktaa ki...
apne-apne adambar chhor kr apne
andar jhaankne ki . . .
bhivadan .
---MUFLIS---
विचारणीय आलेख है|
जवाब देंहटाएं.यहाँ बेंगलोर में अष्टमी और नवमी को बली कि प्रथा है जिसमे भूरे कद्दू कि बलि दी जाती है मेरा पहला अवसर ही था देखने का| सारे बाजार क्द्दुओ से भरे पडे थे घर घर में क्द्दुओ को लाल करके उन्हें काटकर दरवाजे के आजू बाजु सड़क के बीचों बीच रखा जाता है और दूसरे दिन वही कद्दू सारी सडको पर आ जाते है सब जगह गंदगी ही गंदगी दिखाई देती है |
आइ टी कि इस नगरी में बाहर से आने वाले लोग भी इस प्रथा को अपनाने लगे है \
दुर्गापूजा की कमियाँ तथा इसके उज्ज्वल पक्ष को प्रकाशित कर आपने एक नेक काम किया है।
जवाब देंहटाएंसाधुवाद।
मैं भी आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हुं---इन बुराइयों पर रोक लगनी चाहिये।
जवाब देंहटाएंपूनम
आपकी बातों से सहमत हूं---इन बुराइयों पर रोक लगनी चाहिये।
जवाब देंहटाएंपूनम
bilkul sahi aisa hi hota hai....
जवाब देंहटाएंआपने बहुत बढ़िया और सठिक लिखा है ! मैं आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ! विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंहेम जी सही ध्यान आकर्षित कराया.....सच्चाई है दिखावे या अंधविश्वास की आड़ में कब तक ??
जवाब देंहटाएंबात तो बहुत सही है !!! पर इसे अमल में लायें तब तो हो !!
जवाब देंहटाएंहास्यास्पद लगता है जब साल के बाकी दिन तो चौराहों पर कुकर्मों का नंगा नाच होता रहा हो और एक दिन या फिर चाँद दिन उन्हीं च्जौरहों पर धार्मिक आयोजन, क्या ये आयोजन हमारे कुकर्मों का गंगा मियाँ जैसी मान्यता के अनुरूप तर्पण कर सकते हैं........ मौज मस्ती के लिए है, मतलब साधने के लिए है, दिखावे की परंपरा निभाने के लिए तो मुझे कुछ भी नहीं कहना
जवाब देंहटाएंमैं लेख की सभी बैटन का पुरजोर समर्थन करता हूँ.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
Aastha ke naam par vikriti phailane ka prayas nahin hona chaiye.
जवाब देंहटाएंआदरणीय हेम जी,
जवाब देंहटाएंधार्मिक त्यौहारों पर बढ़ आये हुये आड़म्बरों को बेनक़ाब कर चिंतन जगाते हुये आलेख में जिस बात अने दिल छू लिया :-
" दुर्गोत्सव का सबसे उजला पक्ष कन्या पूजन है।यदि हम कन्या को पूज रहे हैं, तो हमारा कर्तव्य है कि अपने दैनिक जीवन में भी हम कन्या को यथोचित सम्मान दें। अन्यथा एक दिन की हमारी यह पूजा कोरा कर्मकांड और दिखावे की धार्मिकता। "
यह हमार दुर्भाग्य ही है कि यत्र नारि पुज्यन्ते.... के भावों से भरे देश में देवि के प्राणस्वरूप में कन्या पूजी जाती हो उसी देश में गर्भस्थ कन्या शिशु की हत्या पहचानकर भ्रूणस्वरूप में ही कर दी जा रही है, राह चलते उठाकर चलती गाड़ी में बलात्कार कर देना शायद कोई नया शिगूफा/मनोरंजन का साधन बन रहा है वहां नवरात्रि में कन्या पूजन, भोजन आदि दिखावा ही कहा जा सकता है।
बहुत अच्छा आलेख।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
इन बुराइयों को दूर किया जाना चाहिए।
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आपने जो जो बातें लिखी है वे और बढ्ती ही चली जा रही है ,अब तो एक एक मोहल्ले मे दो दो झांकियां- किसी से कुछ कह भी तो नही सकते
जवाब देंहटाएंयही तो हमारे देश की विडंबना है की लोग धर्म के नाम पर भी जेबे गर्म करने की ताक में रहते है..दुर्गा पूजा और रामलीला इसका बहुत बढ़िया उदाहरण है बढ़िया प्रसंग पर जब तक समाज के ठेकेदार ख़त्म नही होते यह प्रक्रिया निरंतर चलती रहेगी...
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