स्टोर में हूँ और छोटी ( बेटी ) के लिये बर्थ डे गिफ्ट खरीद रहा हूँ - मैंने उत्तर दिया |
क्या खरीद रहे हैं ? - उसने पूछा |
तुम बताओ - मैंने कहा |
आप बुक स्टोर में हैं और छोटी के लिये किताब खरीद रहे हैं - बड़ी बेटी का सही अनुमान था |
मुझे ध्यान आता है कि मैंने अपने बच्चों के जन्म दिन पर अधिकतर पुस्तकें ही भेंट की हैं |.अपने कुछ मित्रों को भी जन्मदिन पर पुस्तक भेंट करना ही मुझे उपयुक्त लगा | मैं तो शादी ब्याह के निमंत्रणों पर भी पुस्तकें भेंट करना चाहता हूँ , लेकिन पत्नी के विरोध के कारण ऐसा नहीं करता | मेरा विचार है भेंट स्वरूप पुस्तकें देना एक अच्छा विकल्प है | आज शायद पुस्तकों के प्रति हमारा मोह कम होता जा रहा है | एक कारण पुस्तकों का मूल्य अधिक होना भी है | लेकिन मूल्य ही एकमात्र कारण नहीं है | हम आउटिंग में, मनोरंजन में, डेकोरेशन में दिल खोल कर खर्च कर सकते हैं, तो पुस्तकों पर क्यों नहीं ? मुझे साठ का वह दशक याद आ रहा है, जब हिन्दी में अनेक स्तरीय पत्रिकाएँ थीं | हिंद पाकेट बुक्स ने घरेलू लायब्रेरी योजना शुरू की थी , जिसमें दस रुपये प्रति माह में बिना डाक खर्च के स्तरीय पुस्तकें प्राप्त कर आप घर पर ही एक छोटी मोटी लायब्रेरी बना सकते थे| मधुशाला, उमर खैयाम की रुबाइयां, शरतचंद्र और प्रेम चन्द्र के उपन्यास, कृशन चंदर की एक गधे की आत्म कथा, एक वायलन समंदर के किनारे आदि अनेक स्तरीय कृतियाँ हमने इसी घरेलू लायब्रेरी योजना के तहत पढी थीं | आज संभवतः कोई प्रकाशक इस प्रकार की योजना नहीं चलाता है | संभवतः प्रकाशकों का ध्यान सीधे पाठकों की ओर न हो कर सरकारी खरीद की ओर अधिक है, जिसके कारण पुस्तकों का मूल्य उन्हें अधिक रखना पड़ता है ताकि दिए जाने वाले कमीशन की भरपाई हो जाए | जहां कमीशन न देना पड़े वहाँ डिस्काउंट दे सकते हैं |
घरेलू लायब्रेरी योजना जैसी योजना चलाना या पुस्तकों का मूल्य कम करना तो हमारे नियंत्रण में नहीं | लेकिन एक दूसरे को पुस्तकें उपहार स्वरूप देकर हम पुस्तकों के प्रचार प्रसार में सहयोगी बन सकते हैं |
आजकल प्रकाशक जन पुस्तकें छाप कर, कुछ लायब्रेरियों में सैट कर देते हैं बाक़ी लेखक को टिका देते हैं कि जाओ मुन्ना लोगों को बेचो, पढ़ाओ और कमाओ-खाओ...(कुछ अच्छी किताबें ग़लती से बिकने भी चली जाती हैं)
जवाब देंहटाएंअलबत्ता किताबों से बेहतर क्या उपहार हो सकता है.
सही कहा...पुस्तक उपहार करना सबसे अच्छा उपहार है.
जवाब देंहटाएंयह बहुत ही अच्छी आदत है। मैं बहुधा पुस्तक ही देता हूँ।
जवाब देंहटाएंपुस्तकें सर्वश्रेष्ठ उपहार हैं और दूसरा विकल्प पौधे हो सकते हैं। बल्कि आज के समय में इन्हें आगे पीछे भी कर सकते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपसे सहमत।
हिंदी द्वारा सारे भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है।
आपकी गिफ्ट से सौ फ़ीसदी सहमत ! ज़माना बदल रहा है सो आपको इ बुक्स के बारे में भी सोचना चाहिए !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी सोच, और बेहतरीन प्रस्तुति, पर कई बार यह भी ध्यान रखना पड़ता है कि जिसे हम भेंट दे रहे हैं उसकी पसन्द पुस्तक पढ़ना है भी या नहीं यह उपहार उन्हीं के लिये श्रेष्ठ हो सकता है, जो इसका महत्व समझते हों ।
जवाब देंहटाएंपुस्तक का उपहार तो कोई पुस्तक प्रेमी ही दे सकता है!
जवाब देंहटाएंस्वागत योग्य विचार है। पुस्तक देने की परम्परा शुरू हो जाए तो समझिए,एक प्रकार की सुसुप्त शैक्षिक क्रांति का आगाज़ हो गया।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंपुस्तक से बेहतर उपहार और कोई हो ही नहीं सकता! मैं भी उपहार में पुस्तक देना ही पसंद करती हूँ! बहुत बढ़िया पोस्ट!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर पोस्ट। ...आपके विचार जानकार बहुत अच्छा लगा। निश्चय ही पुस्तकें ही सर्वश्रेष्ठ उपहार हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत ही उत्तम विचार है ...
जवाब देंहटाएंअच्छी पोस्ट ...
जवाब देंहटाएंकुछ लिखा है, शायद आपको पसंद आये --
(क्या आप को पता है की आपका अगला जन्म कहा होगा ?)
http://oshotheone.blogspot.com
मैंने देखा है,कई लोग तुरंत नींद में जाने के लिए भी किताब पढ़ना शुरू कर देते हैं। काश!उन्हें कोई ऐसी पुस्तक गिफ्ट करे जो नींद खोलने वाली हो।
जवाब देंहटाएंपुस्तके उपहार में देना श्रेयस्कर है भले ही जिसे उपहार में दे आज नहीं तो कभी न कभी जरुर पढेगे ऐसा मेरा अनुभव है |
जवाब देंहटाएंकम दाम में भी कुछ प्रकाशन किताबें निकाल रहे हैं आजकल। पर एक मुश्किल ये भी है कि सही में हिंदी के पाठक कम होते जा रहे हैं। बिना मार्केटिंग के कुछ भी नहीं बिक पा रहा है ये एक कटु सच्चाई है। चेतन भगत की जितनी अंग्रेजी कि किताब बिकी उतनी हिंदी संस्करण नहीं। मैने भी दो पुस्तकों का प्रकाशन कराया था। जिसमें से एक किताब साहित्यक भाषा में पुराने भारतीय परिवेश से परिचय कराती थी। पर अफसोस आप माने या न माने पांच हजार लोगो तक खुद किताब भेजने के बाद भी महज 3000 किताबों के पैसे मिले। उनमें से भी आधे से ज्यादा साल भर के बाद। एक मुश्किल ये थी कि कम कीमत की किताब से लोगो को लगा कि शायद ऐसी ही कोई मामूली किताब है। हां अगर उसकी कीमत कुछ ज्यादा रखता तो वो जरुर बिकती। पर कितनी ये नहीं कहा जा सकता। उसके बाद से मैने फिर से किताबों को छापने में तौबा करने में ही भलाई समझी।
जवाब देंहटाएंपुस्तकें सर्वश्रेष्ठ उपहार.......अच्छी पोस्ट ...
जवाब देंहटाएंआपके विचार जानकार बहुत अच्छा लगा।
हेम दाज्यू, पुस्तक के लिये कही आपकी हर बात से सहमत। मैं भी बच्चों को गिफ्ट में पुस्तक देना प्रिफर करता हूँ।
जवाब देंहटाएंआपकी बात से सहमत हूँ. वास्तव में पुस्तकों से बेहतर उपहार हो ही नहीं सकता.
जवाब देंहटाएंबहुत विचारणीय पोस्ट और एक अच्छा सुझाव. मैं बस इतना ही कहूँगी की जो पुस्तक का मान रख सके केवल उसे ही पुस्तक दें
जवाब देंहटाएंsafdar hasmi ki ek ghajal hai wo anayas hi yad aa rahi hai kitabo me chidiya chehchahati hai kitabo ki badi dunia hai isse behtar uphaar shayad kuch nahi ho sakta .............
जवाब देंहटाएंआपको एवं आपके परिवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंपुस्तके पढना और भेंट करना दोनों ही श्र्येश्कर है . जिसे भेंट की जा रही है वह पदता है या नहीं एक अलग बात है भेंट करने वाले को जो उपयुक्त लगता है वही भेंट किया जाता है बहुत सुंदर पोस्ट है
जवाब देंहटाएंघरेलू लायब्रेरी योजना जैसी योजना चलाना या पुस्तकों का मूल्य कम करना तो हमारे नियंत्रण में नहीं | लेकिन एक दूसरे को पुस्तकें उपहार स्वरूप देकर हम पुस्तकों के प्रचार प्रसार में सहयोगी बन सकते हैं |
जवाब देंहटाएंसहमत हूँ!