गुरुवार, 9 सितंबर 2010

पाखण्ड अच्छा है

"रमजान में आपसे झूठ नहीं बोलूंगा" एक मेकेनिक ने मुझसे कहा | "रमजान में मैं झूठ नहीं बोलूंगी" एक महिला कर्मचारी बोली | हालांकि उसने यह भी जोड़ा - झूठ तो मैं वैसे भी नहीं बोलती | नवरात्र पर उपवास और अनेक नियमों का पालन करने वाले कुछ लोग उन नौ दिनों में बुरे कहे जाने वाले कामों से विरत पाए जाते हैं | एक व्यक्ति ने फोटो पोस्टर की दुकान में कुछ धार्मिक फोटो पसंद किये और दुकान दार से बोला- कृपया इन फोटो को मेरे लिये सुरक्षित रख दें, मैं बाद में आकर खरीदूंगा, इस समय मेरे पास पाप की कमाई (जुए में जीती राशि ) है, इससे ये फोटो नहीं खरीद सकता | रोजे-नमाज़, व्रत-उपवास आदि कर्मकाण्ड अपनाने वालों को हम बोलचाल में धार्मिक कह देते हैं | हालांकि धार्मिक तो वे हैं जो श्रद्धा,मैत्री,दया,शान्ति आदि गुणों से युक्त हों|ऐसे कर्मकांडी धार्मिकों और पाप की कमाई से धार्मिक फोटो न खरीदने वाले लोगों को हमारे कुछ मित्र (जिनमें से कुछ ब्लॉग जगत में भी मौजूद हैं),पाखंडी भी कह देते हैं |


ऐसे कर्मकांडी या पाखंडी यदि अपनी धार्मिक भावना के वशीभूत थोड़े समय के लिए ही अच्छे कामों में लिप्त हो जाते हैं या उनके मन में अच्छे विचार आ जाते हैं तो ऐसा पाखण्ड भी अच्छा है|गलत कह रहा हूँ ?



26 टिप्‍पणियां:

  1. ऐसे ही एक शादी में गये तो मालूम चला कि दूल्हे का एक दोस्त कुछ खा पी नहीं रहा है। सब ज़िद करके उसे खाने की कह रहे थे लेकिन उसने नहीं खाया। बार बार घड़ी देखता रहा। आखिर रात के बारह बजने के बाद ही पहले पीना और फ़िर खाना शुरू हुआ, आखिर मंगलवार खत्म जो हो गया था। ऐसे ही नवरात्रों में बहुत देखते हैं, इधर अष्टमी की पूजा खत्म होती है और उधर बोतल खुलती है। एक दिन या एक महीना परहेज करके बाकी समय में उसकी कसर पूरी कर लेते हैं लोग, पाखंड ही लगता है जी हमें तो।
    लेकिन फ़िर सोचते हैं तो खुद से तो बेहतर ही लगते हैं कि कुछ समय के लिये ही सही मन में विचार तो आया बुरा न करने का।

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  2. आप सच कह रहे हैं कि ऐसे व्‍यक्ति धार्मिक नहीं होते। धर्म का अर्थ तो है कि इन गुणों को अपने अन्‍दर धारण कर लिया है। जब कोई गुण आपका अंग बन जाता है तब ऐसा नहीं होता कि फला दिन तो सच बोलूंगा और शेष दिन झूठ। हाँ इतना जरूर है कि कम से कम ऐसे लोगों को भान तो है कि वे क्‍या कर रहे हैं? उन्‍हें सच और झूठ का अन्‍तर तो मालूम हैं नहीं तो कुछ लोग तो इसे ही श्रेष्‍ठ आचरण मानते हैं।

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  3. सही बिन्दु उठाया है। यदि कर्मकाण्ड कुछ लगाम लगाते हैं, तो अच्छा ही है।

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  4. .....रोजे-नमाज़, व्रत-उपवास आदि कर्मकाण्ड अपनाने वालों को हम बोलचाल में धार्मिक कह देते हैं | हालांकि धार्मिक तो वे हैं जो श्रद्धा,मैत्री,दया,शान्ति आदि गुणों से युक्त हों|
    ismain koi sandeh nahi. or yahi saty bhi hai.
    रोजे-नमाज़, व्रत-उपवास आदि main viswas nahi krney wala vyaqti yadi श्रद्धा,मैत्री,दया,शान्ति आदि गुणों से युक्त हों to main samajhta hun yahi ek dharmik vyakti ki pahichaan hai.
    aise hi jwalant muddon pr likhtey rahiyega .kya pata kabhi us juwari ki bhanti thodey hi samay keliye hi sahi kisi bhtkey huwe ka marg prashast ho jaay.
    ek achchi post hetu abhaar...

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  5. सब से ज्यादा गंदे लोग यही होते है, जो बहुत ज्यादा दिखावा करते है, सच्चा आदमी मस्टी से चलता है अपने रास्ते कोई दिखावा नही कोई पाखंड नही, इस लिये मे धार्मिक लोगो को दुर से ही सलाम कर देता हुं.आप से सहमत है जी

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  6. ये बात सिर्फ धार्मिक कर्मकांड व्रत आदि ही नहीं किसी भी प्रकार के दिखावे पर भी लागू होती है. इसी को प्रवंचना भी कहते हैं

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  7. आपकी बात से सहमत हूँ ... कुछ समय के लिए भी अगर इंसान अच्छा हो सके या बदल सके अच्छाई की तरफ तो वो भी एक अच्छी शुरुआत है ....

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  8. कई लोगों को देखा है जो कहते है की आज मंगलवार है या फला फला दिन है नानवेज नहीं खायेंगे पर मुझे समझ नहीं आता है की सातों दिन ही किसी न किसी देवी देवता का होता है तो फिर एक दो दिन का पाखंड क्यों ? वैसे भी लोग रोज तो नानवेज खाते नहीं है झूठ में ही उसे भगवान के नाम पर मढ़ देते है | ऐसे पाखंड से कोई फायदा नहीं होने वाला है जो बकरा मंगलवार को काटने वाला होगा वो बढ़ कर बुधवार को काट जायेगा पर जीव हत्या तो तय है ना फिर इस पाखंड का क्या मतलब है |

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  9. बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !

    आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।

    आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें

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  10. पाण्डेय ज्यू बहुत गहरा विचार है. बहुत बार उलझा हूँ इसमें पर कभी नतीजे पर नहीं पहुँच पाया. एक बार एक दोस्त ने कहा था की जिस प्रकार कछुआ हमेशा जल में रहते हुए कभी कभी साँस लेने जल से बाहर आता है ये क्षण भर के लिए की गयी उपासना, ईश्वर का नाम लेना,मंगल वार के दिन परहेज करना आदि आदि ठीक उसी तरह का प्रयास है. इस उदहारण से संतुष्ट तो नहीं पर फ़िलहाल के लिए काम चलाऊ तो है ही .....

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  11. "ढोंग ही सही कुछ देर को, मैं संतुष्ट तो हुआ"| जिंदगी भर पाप किये फिर गंगाजी में नहा लिए | बहुत अच्छी पोस्ट के लिए बधाई |

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  12. आपको एवं आपके परिवार को गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें ! भगवान श्री गणेश आपको एवं आपके परिवार को सुख-स्मृद्धि प्रदान करें !
    बहुत सुन्दर !

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  13. बात एकदम दुरुस्त है। कुछ समय के लिए ही सही किया गया अच्छा विचार कभी जीवनपर्यंत के लिए लागू हो जाता है। खुद मेरा अजमाया हुआ है। कुछ इंसान को कोई न कोई प्रेरणा की जरुरत होती है। प्रेरणा लोगो से जाने क्या-क्या करा देती है। अगर कुछ दिनों की पूजा के बहाने ही सही अच्छा विचार उत्पन होता है तो उसमें कोई बुराई नहीं है। वैसे भी कहते हैं कि एक क्षण के लिए भी सच्चे दिल से की गई दुआ हमेशा कामयाब होती है। भगवान को याद करने से पाप नष्ट हो जाते हैं। वैसे भी अध्यात्म की नजर से नहीं तो भी स्वास्थ के लिए साल में दो बार के नवरात्र जो मौसम के संधिकाल में आते हैं, काफी अच्छा होता है। साप्तहिक उपवास तो अत्यंत बेहतर है। वैसे रोगी को किसी भी तरह के किसी भी व्रत औऱ उपवास की मनाही है। जिसका मतलब है कि इसमें स्वास्थय का महत्व भी छिपा हुआ है।

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  14. बहुत अच्छी लगी आपकी प्रस्तुति । पाखण्ड का जीवन में कोई स्थान नहीं है।

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  15. मान्यवर
    नमस्कार
    बहुत सुन्दर
    मेरे बधाई स्वीकारें

    साभार
    अवनीश सिंह चौहान
    पूर्वाभास http://poorvabhas.blogspot.com/

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