रविवार, 10 मई 2009

कवि जो तार सप्तक में नहीं हैं

आज मुझे मेरे छोटे से पुस्तकों के संग्रह के बीच नन्हे कवि कुशाग्र. के नाना श्री भैरव दत्त जोशी, जो इस समय लगभग नब्बे वर्ष के हैं, का एक टंकित कविता संग्रह मिला. खड़ी बाजार, रानीखेत (उत्तराखंड) के निवासी श्री जोशी एक अच्छे चित्रकार भी रहे हैं और उन्हें कुछ पुरस्कार भी मिले हैं, जिनकी पूर्ण जानकारी मेरे पास उपलब्ध नहीं है. बहरहाल यहाँ मैं उनकी कविताओं की बात कर रहा हूँ. यह कविता संग्रह पढ़ कर मुझे लगा कि केवल तार सप्तक और पत्र पत्रिकाओं में छपने वाले, मंच पर कविता पाठ करने वाले और ब्लॉग लिखने वाले ही कवि नहीं होते. कवि और भी हैं जिनमें से एक श्री भैरव दत्त जोशी भी हैं. अफ़सोस यही है कि विभिन्न कारणों से ऐसे कवियों द्वारा रची गयी श्रेष्ठ रचनाओं से अधिकांश पाठक वंचित रह जाते हैं. प्रस्तुत है श्री जोशी की एक कविता जो उन्होंने १९८५ में लिखी थी.


सुबह ने होते ही पहले आकाश को संवारा
और सारा क्षितिज अनुराग से भर दिया.
पर्वतों की चोटियां रक्तिम स्वर्ण हो गयीं
किसी तप्त लालसा से नहीं,
प्यार की पहली लजीली मुस्कराहट से,
जो आशामय दिव्याभा की नवागता किरण थी |

सुबह के होते ही पक्षियों ने स्वागत गीत गाये,
पशुओं ने प्रसन्न नेत्रों से निहारा,
पत्थर सम्मान के लिए जगमगा उठे,
झाड़ियों, वृक्षों तथा अन्यत्र धरती में
हरीतिमा का उल्लास छा गया.
सुगंध बिखराते हुए फूल खिलखिला उठे
अधीर भौंरे तथा तितलियाँ
प्यार के मधुपान को निकल पड़े |

किन्तु इंसान ने, याने प्रबुद्ध मानव जाति ने
सुबह के होने को ललचाई निगाहों से देखा
और निकल पड़े कारोबार के नाम पर
एक दूसरे को ठगने के लिए
अथवा लाठी के बल पर भैंस लाने के लिए
या इस कारोबार शब्द का कोई अन्य अर्थ है
तो मैं नहीं जानता |

मैंने इतना अवश्य देखा
कि सारी लालिमा नष्ट हो गयी.
हरियाली मुरझा गयी.
वातावरण में एक चीखता शोर गूँज उठा
सर्वत्र प्रदूषण की विषाक्त घुटन छा गयी
और शान्ति,सौन्दर्य तथा अनुराग की
वह सुकोमल दिव्याभा,
जो अभी सुशोभित थी
सहसा जाने कहाँ खो गयी |.

20 टिप्‍पणियां:

  1. मैंने इतना अवश्य देखा
    कि सारी लालिमा नष्ट हो गयी.
    हरियाली मुरझा गयी.
    वातावरण में एक चीखता शोर गूँज उठा
    सर्वत्र प्रदूषण की विषाक्त घुटन छा गयी

    आदरणीय हेम जी ,
    यह सब मनुष्य का ही तो किया हुआ है ..इसी की सजा भी आज वह भुगत रहा है...
    आदरणीय जोशी जी की इतनी बढ़िया कविता पढ़वाने के लिए साधुवाद. और सिर्फ जोशी जी ही नहीं ...बहुत से ऐसे कवी ,लेखक,रचनाकार हैं जो किसी खेमेबंदी में नहीं शामिल हुए ...और आज इसीलिए वो साहित्य जगत में हाशिये पर रख दिए गए हैं...
    हेमंत कुमार

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  2. pande ji, bahut hi anupam rachna se parichay karaya aapne,sadhuwaad ke patra hain aap,aisi chhupi hui pratibhaon ko saamne lana aavashyak hai.joshi jo ko hamari or se badhai gyaat ho.

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  3. साहित्‍य और कला की दुनिया में भी स्‍वार्थपरता और फरेब कम नहीं है। जो इनमें निपुण नहीं हुआ, पहचान बनाना उसके लिए मुश्किल है।

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  4. किन्तु इंसान ने, याने प्रबुद्ध मानव जाति ने
    सुबह के होने को ललचाई निगाहों से देखा
    और निकल पड़े कारोबार के नाम पर
    एक दूसरे को ठगने के लिए
    अथवा लाठी के बल पर भैंस लाने के लिए
    या इस कारोबार शब्द का कोई अन्य अर्थ है
    तो मैं नहीं जानता |....
    ....सत्य का स्वरुप कितना दुखद है,सौन्दर्य के साथ दर्द की अभिव्यक्ति बहुत सही ढंग से किया है

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  5. prkrti ke sondry ke sath manv ke bhotik rup ka
    acha chitran .
    किन्तु इंसान ने, याने प्रबुद्ध मानव जाति ने
    सुबह के होने को ललचाई निगाहों से देखा
    और निकल पड़े कारोबार के नाम पर
    एक दूसरे को ठगने के लिए
    अथवा लाठी के बल पर भैंस लाने के लिए
    या इस कारोबार शब्द का कोई अन्य अर्थ है
    तो मैं नहीं जानता |

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  6. श्री जोशी जी की इस कविता में जहाँ एक और बखूबी भोर का सुन्दर चित्रण है..जो मन हर्षा देता है वहीँ अंत आते मनुष्य के स्वार्थ का परिचय देती है..

    कि सारी लालिमा नष्ट हो गयी.
    'हरियाली मुरझा गयी.
    वातावरण में एक चीखता शोर गूँज उठा
    सर्वत्र प्रदूषण की विषाक्त घुटन छा गयी'
    -मनुष्य प्रकृति के रूप को बनाये रखना भूल प्रगति की दौड़ में खो गया है.-
    जोशी जी की इस कविता को आप ने पढ़वाया ,आभार.

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  7. सारी लालिमा नष्ट हो गयी.
    हरियाली मुरझा गयी.
    वातावरण में एक चीखता शोर गूँज उठा
    सर्वत्र प्रदूषण की विषाक्त घुटन छा गयी
    .............ham hi jimmedaar hai....

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  8. जोशी जी की रचना पढ कर अचछा लगा। आभार।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary- TSALIIM / SBAI }

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  9. जिसके पास भी संवेदना है, अपना दृष्टिकोण है वह कवि है। लामबन्‍द होकर किसी पत्रिका में छप जाने से कोई कवि नहीं होता। बहुत ही श्रेष्‍ठ कविता के लिए बधाई।

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  10. किन्तु इंसान ने, याने प्रबुद्ध मानव जाति ने
    सुबह के होने को ललचाई निगाहों से देखा
    और निकल पड़े कारोबार के नाम पर
    एक दूसरे को ठगने के लिए
    अथवा लाठी के बल पर भैंस लाने के लिए
    या इस कारोबार शब्द का कोई अन्य अर्थ है
    तो मैं नहीं जानता |

    वर्तमान आर्थिक युग में कारोबार का इसके अतिरिक्त और कोई अर्थ मैं भी नहीं जनता, क्योंकि अब तो लोकतान्त्रिक जनप्रतिनिधि ही नहीं बल्कि लोकतात्रिक सरकारें भी कारोबार पर उतर आयी हैं.
    नब्बे वर्षीय माननीय जोशी जी तक मेरा सादर प्रणाम पहुंचा कर अनुग्रहीत करें

    आपका भी आभार की आपने एक खोई से प्रतिभा से रु-ब-रु करवाया

    चन्द्र मोहन गुप्त

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  11. साहित्य और कला की दुनिया में आज आपने एक अनुपम रचना प्रस्तुत किया है । खासकर किसी कोने में बंद प्रतिभा को आपने उजागर करने का काम किया है धन्यवाद

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  12. कहते है न एक कवि शायद एक दुसरे मनुष्य की अपेक्षा अधिक संवेदन शील होता है .....सच कहते है

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  13. आपने सच कहा हेम जी कि इस तरह से हम कई बेमिसाल रचनाकारों, कवियों को पढ़ने से वंचित रह जाते हैं...
    जोशी जी से परिचय करवाने का शुक्रिया सर

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  14. प्यार की पहली लजीली मुस्कराहट से,
    जो आशामय दिव्याभा की नवागता किरण थी |

    कितना जीवंत , सुन्दर चित्रण किया है कवी ने
    फिर आज के हालत थोड़ा मायूस कर जाते हैं

    जोशी जी व उनकी कृतियों को नमन है

    धन्यवाद हेम जी कवि परिचय के लिए

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  15. बहुत आनन्द आया जोशी जी की ये कविता पढकर.....आभार

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  16. Hi,

    Thank You Very Much for sharing this informative helpful article here.

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