सोमवार, 26 जुलाई 2010

मोबाइल कंपनी की दादागिरी !

मोबाइल कंपनियों के लूट और डकैती के किस्से मैं पहले भी बता चुका हूँ|आज एक और किस्सा केवल इस लिये सुन लीजिये ताकि आप इस लूट से अपने आप को बचा सकें-
मेरे मोबाइल पर कुछ दिनों से बाइबिल के उपदेश बार बार आ रहे थे|मैंने सोचा शायद कोई धार्मिक संस्था अपने प्रचार के लिये ऐसा कर रही है|सहसा एक दिन एक मेसेज आया-आपका बाइबिल मेसेज अलर्ट रीन्यू कर दिया गया है और आपके खाते से तीस रुपये की कटौती की गयी है|जब मैंने कंपनी के कॉल सेंटर से संपर्क साधा कि बिना मेरी सहमति के यह एलर्ट चालू और रीन्यू कैसे हो गया ? तो बताया गया कि अलर्ट चालू तो आपने ही किया है( हो सकता है आपसे गलती से ओ के का बटन दब गया हो ) और एक बार चालू होने पर अपने आप रीन्यू हो जाता है|मैंने अपनी गलती मानते हुए इस सुविधा को तुरंत डीएक्टिवेट करने का आदेश दे दिया और आग्रह किया कि चूंकि रीन्यू मेरी मर्जी के बिना अभी अभी हुआ है और मैं इस सुविधा का उपयोग नहीं करूंगा, इस लिये पैसे मेरे खाते में रीफंड किये जाएँ|सुविधा तो डीएक्टिवेट हो गयी लेकिन पैसे रीफंड के लिये साफ़ मना कर दिया गया|अर्थात मेरी जेब में हाथ डाल कर उन्होंने सुविधा देने के लिये जो पैसे अभी अभी निकाल लिये थे वे उसे,मेरे द्वारा सुविधा न लेने पर भी वापस नहीं करेंगे | एक और बात ध्यान देने योग्य है, इस तरह का छल केवल उन्हीं ग्राहकों से किया जाता है जिनके पास पर्याप्त बेलेंस होता है|यदि बेलेंस निर्धारित राशि से कम होगा तो ऐसी वारदात नहीं होगी | इस घटना के कुछ दिनों बाद मेरे पास फिर एक मेसेज आया - मूवी अलर्ट चालू करवाने के लिये धन्यवाद,आपके खाते से तीस रुपये काट लिये गए हैं(मूवी अलर्ट सेवा क्या होती है और कैसे एक्टिवेट होती है,मुझे नहीं मालूम और न मैंने कभी यह सुविधा अपने फोन पर चाही)|मैंने फिर तुरंत कंपनी के कॉल सेंटर सम्पर्क साधा |फिर वही उत्तर मिला - सुविधा डीएक्टिवेट कर दी जायेगी,लेकिन पैसे रीफंड नहीं होंगे|अंततः तंग आ कर मुझे सारे प्रोमोशनल कॉल और मेसेज बंद करवाने पड़े|बाद में मैंने ध्यान दिया कि मेरे फोन पर अनेक बार बिना किसी रिंगटोन के मेसेज आते हैं और ऊपर लिखा होता है- सूचना | फिर नीचे सम्बंधित सूचना होती है और केवल एक ऑप्शन होता है- ओ. के.यदि यह बटन गलती से दब गया तो पैसे कट कर सुविधा चालू हो जायेगी|लेकिन जब हम तुरंत ही इस गलती की ओर सुविधा शुरू होने से पहले ही कंपनी का ध्यान दिला देते हैं तो कंपनी द्वारा पैसे काट लिये जाना उनकी दादागिरी नहीं तो और क्या है ?

मेरे कुछ परिचितों ने भी ऐसे ही तथ्यों से मुझे अवगत कराया, जिसमें उनकी सहमति के बिना कोई सुविधा चालू कर के पैसे काट लिये गए और शिकायत करने पर पैसे लौटाने से साफ़ मना कर दिया गया|उन्हें भी यही उत्तर मिला कि आपके द्वारा अनजाने में सुविधा चालू कर दी गयी होगी| मुझे इन बेईमानों की बात पर विश्वास नहीं| हो सकता है ग्राहक द्वारा गलती से भी सुविधा चालू न करवाने पर भी ये अपनी मर्जी से सुविधा चालू कर के पैसे लूट लेते हों|

सोमवार, 19 जुलाई 2010

गाली या आशीष ?

'तुम्हारा   एक  भी  दांत  न  बचे ताकि  तुम भात  भी पीस कर खाओ, तुम इतने अशक्त हो जाओ कि शौच जाने के लिये भी लाठी का सहारा लेना पड़े'- यह वाक्य किसी व्यक्ति के लिए गाली की तरह ही प्रयुक्त  किया जा सकता है. किन्तु कूर्मांचल के त्यौहार 'हरेला' में कुछ इसी तरह के वाक्यों से आशीष दी जाती है.  कूर्मांचल में हरेला त्यौहार का  महत्व इस तथ्य से भी पता लगता है कि  इस दिन उत्तराखंड  में शासकीय अवकाश  रहता है.१७ जुलाई संक्रांत को हरेला था.साल भर में तीन हरेला  पर्व होते हैं . इस त्यौहार  में विभिन्न अनाजों को एक डलिया में  ठीक उसी तरह बोया जाता है जैसे कई स्थानों में नवरात्र पर जवारे बोये जाते हैं. पर्व के दिन उन अनाजों के उगे पौधों को काट कर तिलक लगाने के बाद सर पर रखा जाता है. सर पर रखने की एक विशेष पद्धति होती है. पहले पैर. फिर घुटने , फिर कंधे को छुआते  हुए अंत में सर पर  रखे जाते हैं.त्यौहार की विस्तृत जानकारी के लिये लेख के अंत में , मैं लिंक दे रहा हूँ. यहाँ तो मैं सिर्फ हरेले के टीके के बाद दी जाने वाली आशीष का जिक्र करना चाहता हूँ.

जी रये, जागि रये
धरती जस आगव, आकाश जस चाकव है जये
सूर्ज जस तराण, स्यावे जसि बुद्धि हो
दूब जस फलिये,
सिल पिसि भात खाये, जांठि टेकि झाड़ जाये।
 
{जीते रहो,पृथ्वी के समान धैर्यवान,आकाश की तरह प्रशस्त( उदार) बनो,सूर्य के समान तेज, सियार के समान बुद्धि हो,दूब की तरह पनपो, इतने दीर्घायु हो कि ( दांतों से रहित )तुम्हें  भात भी पीस कर खाना पड़े और शौच (जंगल) जाने के लिये भी लाठी का सहारा लेना पड़े.}

देखिये  कैसे एक गाली सी लगने वाला वाक्य आशीष और शुभकामना में बदल गया.  गाली को  यह सौभाग्य पर्व के कारण मिल गया. धन्य हैं हमारे ऐसे पर्व जो गाली को भी आशीष  में बदल देते हैं. 

हरेला त्यौहार के लिंक -

गुरुवार, 15 जुलाई 2010

दो फूलों की कहानी


वैसे तो बालकनी में और भी गमले हैं, लेकिन यहाँ मैं केवल दो की कहानी कहूंगा. इनमें से एक गमला सफ़ेद फूल वाला है, जो लगभग बारहों मास फूल देता है, जिन्हें मैं प्रायः नित्य पूजा हेतु तोड़  लिया करता हूँ.इस तरह यह गमला मेरे  लिये एक उपयोगी पौधे वाला गमला है. यह किसी न किसी तरह से मेरी सहायता कर रहा है और लाभ पंहुचा रहा है.इसलिए  मुझे  इससे ज्यादा लगाव होना चाहिए. लेकिन शायद ऐसा है नहीं. यह पौधा नित्य फूल देता है- इसे मैं इसका स्वाभाविक गुण मान लेता हूँ.इसके प्रति कृतज्ञता का भाव मुझमें नहीं है.

दूसरा गमला गुलाब के फूल का है.कुछ वर्ष पूर्व जब मैंने इस गुलाब के पौधे को गमले पर रोपा था और कुछ समय बाद एक सुन्दर गुलाब का फूल खिला था, तो मेरा पूरा परिवार रोमांचित था.तब शायद इसकी सुन्दरता हम लोगों को आकर्षित करती थी. (लगाव का एक कारण सौन्दर्य भी है).आज इस गुलाब में वैसा आकर्षण नहीं है.फूल की गुणवत्ता का ह्रास हुआ है.खिलने के बाद डाली में अधिक टिकता भी नहीं है.अर्थात इसकी उपयोगिता सफ़ेद फूल  के मुकाबले कुछ भी नहीं.लेकिन जब मौसम  आने पर गुलाब के पौधे में कलियाँ आने लगती हैं तो मेरा पूरा परिवार आज भी रोमांचित होता है, एक दूसरे को वह कली दिखाता है जिसमें कुछ दिनों बाद फूल खिलेगा.हमें गुलाब के खिलने की प्रतीक्षा आज भी रहती है.

आखिर क्यों हम , सफ़ेद फूल की अपेक्षा गुलाब के प्रति  अधिक  संवेदनशील हैं. क्या इस लिये कि उसकी सुन्दरता सफ़ेद फूल की अपेक्षा अधिक है, या इसलिए कि गुलाब केवल मौसम पर ही खिलता है और फिर अगले मौसम  पर आने का वादा कर चला जाता है जबकि  सफ़ेद फूल नित्य ही हमारे पास बने रहता है. क्या गुलाब विदेश जा  कर नौकरी करने  वाला बेटा है, जो कभी कभार आकर दिलासा दे जाता है और सफ़ेद फूल पास में रहने वाली संतान जो हर सुख दुःख में काम आती है?   

शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

स्कूल चलो - हिन्दू मुसलमान का भेद समझें.

मेरी नातिन पहली बार स्कूल गयी। स्कूल जाने के नाम पर वह बहुत खुश थी। उसके माता पिता भी खुश थे। आखिर यह उनकी संतान के जीवन का एक महत्वपूर्ण दिन था। मैंने भी उसे आशीर्वाद दिया- खूब पढ़ना, पढ़ - लिख कर अच्छा इंसान बनाना।

क्या नातिन पढ़ लिख कर एक अच्छा इंसान बनेगी ? क्या बहुत पढ़े लिखे व्यक्ति अच्छे इंसान होते हैं और अनपढ़ नहीं ? आखिर नातिन स्कूल क्यों जा रही है ? इस उम्र में सभी बच्चे स्कूल जाते हैं , इसलिए उसका जाना भी जरूरीहै। यदि नहीं जायेगी तो सरकार खुद आकर उसको स्कूल ले जायेगी। स्कूल जा कर नातिन ए से एप्पल से पढ़ना शुरू करेगी। अ से अनार भी पढेगी। वन, टू और एक दो भी। मुझे पूरा विश्वास है कि कुछ समय बाद उसे ए बी सी डी और वन टू तो याद रहेंगे लेकिन क से ज्ञ तक पूरे व्यंजन क्रम से नहीं बोल पायेगी और उनतिस, उनतालीस का फर्क ट्वेंटीनाइन और थर्टीनाइन बोल कर ही समझ पायेगी। वहाँ उसे सामाजिक अध्ययन पढ़ाया जाएगा। वहाँ उसे पढ़ाया जाएगा- हिन्दू मंदिर में जाते हैं, मुसलमान मस्जिद में जाते हैं, ईसाई चर्च में जाते हैं। नातिन ने केवल मंदिर देखा है। लेकिन उसे नहीं मालूम कि वह हिन्दू है। वह हिन्दू मुसलमान का फर्क करने में कन्फ्यूज हो जायेगी। उसकी माँ को समझाना पड़ेगा - उसकी दोस्त सालेहा मुसलमान है और मस्जिद में जाती हैपड़ोसी का बेटा जार्ज ईसाई है और चर्च में जाता है। धीरे धीरे उसकी समझ में आ जाएगा कि सालेहा और जार्ज भले ही उसके दोस्त हैं और उसे बहुत अच्छे लगते हैं, लेकिन वे विधर्मी हैं। यह ज्ञान उसको उसके घर पर नहीं मिल सकता था। क्योंकि जार्ज और सालेहा के मम्मी पापा से नातिन के मम्मी पापा की अच्छी मित्रता है और इन लोगों का एक दूसरे के घरों में जाना, दावतें करना चलता रहता है।सरकार 'स्कूल चलो' का नारा शायद इसी लिये लगाती है ताकि बच्चों को हिन्दू मुसलमान का फर्क अच्छी तरह समझ में आ जाए।


नातिन कुछ और बड़ी होगी तो उसे किसी फॉर्म में जाति भरने को कहा जाएगा।
उसके समझ में आने लगेगा कि सालेहा और जार्ज दूसरे धर्म वाले और वर्षा यादव और सीमा बाकोडे दूसरी जाति वाले हैं। स्कूली पढाई की एक जरूरत तो मेरे समझ में आ गयी - जिस धर्म भेद और जाति भेद को समझने में नातिन को वर्षों लग जाते उसे यह शिक्षा कुछ ही वर्षों में सिखा देगी।

धर्म और जाति का भेद यदि समाज मिटाना या कम करना भी चाहे तो सरकार की नीतियाँ उसे ऐसा नहीं करने देगी। वोट बैंक की राजनीति उसका एक बहुत बड़ा कारण है।

मैं कामना करता हूँ कि नातिन वाली पीढ़ी इस राजनीति को समझ सके और इसका प्रतिकार कर सके।